आन्ध्र प्रदेश की नई राजधानी अमरावती के निर्माण के लिए केन्द्र सरकार की ओर से विश्वबैंक से मिलने वाले ऋण आधी कटौती किए जाने से प्रदेश सरकार को भारी धक्का लगा है। वित्त मंत्रालय के अधीन कार्यरत आर्थिक मामलों के विभाग (डीईए) ने शुरुआत में विश्वबैंक से मिलने वाले एक अरब डॉलर के ऋण को सैद्धांतिक मंजूरी दे दी थी, लेकिन अब उसने यह राशि घटाकर केवल 50 करोड़ डॉलर पर सीमित कर दी है। मामले से जुड़े उच्च पदस्थ सूत्रों ने बताया कि डीईए ने पहले एक अरब डॉलर के ऋण की मंजूरी दे दी थी, लेकिन बाद में उसे एहसास हुआ कि नियमानुसार एक बार में ऋण की इतनी बड़ी राशि की अनुमति नहीं दी जा सकती।
विश्वबैंक के अधिकारियों ने इस बात की पुष्टि की है कि उन्हें भारत सरकार की ओर से अमरावती के विकास के लिए एक बार में केवल 50 करोड़ डॉलर का ऋण मंजूर किए जाने संबंधी अनुरोध मिला था। अधिकारी ने बताया, ‘विश्वबैंक ऋण मंजूरी करने की प्रक्रिया में है और अभी वह आन्ध्र प्रदेश सरकार और राजधानी क्षेत्र विकास प्राधिकरण (सीआरडीए) के साथ राजधानी के विकास के संबंध परियोजना तैयार कर रहा है।’ विश्वबैंक से इस मामले पर विशेष प्रतिक्रिया नहीं मिली है, लेकिन बताया जाता है कि अभी उसने रिण प्रस्ताव को रोक रखा है, क्योंकि राजधानी के निर्माण के लिए प्रदेश सरकार और राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) के बीच मुकदमा चल रहा है।
रघु केसवन के नेतृत्व में विश्वबैंक का दल परियोजना के अनुमान के लिए पिछले कुछ माह में दो बार अमरावती क्षेत्र का दौरा कर चुका है। जल्दी ही एक बार फिर से यहां का दौरा किया जाना है। सीआरडीए के अधिकारियों को डर है कि हो सकता है कि विश्वबैंक राजधानी के निर्माण के लिए एनजीटी की हरी झंडी मिलने तक उनका प्रस्ताव मंजूर नहीं करे। सीआरडीए के अधिकारियों ने बताया, ‘हमने इस परियोजना के संबंध में पर्यावरण से जुड़े तमाम मसलों पर अपनी स्थिति साफ कर दी है। उन्होंने यहां का दौरा भी किया है और हम विश्वबैंक के दौरा करने वाले दल से ऋण का जल्द स्वीकृत किए जाने के लिए बातचीत कर रहे हैं।’ उन्होंने कहा कि यदि ऋण देने में ज्यादा देरी होती है, तो आन्ध्र प्रदेश की 2018-19 तक विश्व-स्तरीय राजधानी बनाने की योजना खतरे में पड़ सकती है।