गैर भाजपा शासित कुछ राज्यों के कड़े विरोध के बीच केन्द्र सरकार ने मंगलवार को स्पष्ट किया कि राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) की कवायद में सूचना का खुलासा करना अनिवार्य नहीं है बल्कि स्वैच्छिक है। केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री जी किशन रेड्डी ने कहा कि एनपीआर पहली बार 2010 में कांग्रेस के नेतृत्व वाली संप्रग सरकार द्वारा शुरू की गई थी और यह एक संवैधानिक दायित्व है। उन्होंने यहां पत्रकारों से कहा, ‘‘एनपीआर में सूचना का खुलासा करना स्वैच्छिक है।’’ रेड्डी ने कहा कि एनपीआर एक संवैधानिक दायित्व है, राज्यों को इस पर आपत्ति नहीं करनी चाहिए।
मंत्री ने कहा कि राज्य संवैधानिक रूप से एनपीआर कवायद चलाने के लिए बाध्य है, जिसे पहले ही केन्द्र द्वारा अधिसूचित किया जा चुका है और सभी राज्यों द्वारा इसे दोबारा अधिसूचित किया जा चुका है। उन्होंने कहा कि केन्द्र सरकार एनपीआर कवायद के विभिन्न पहलुओं के बारे में राज्यों को जागरूक करेगी। एनपीआर की कवायद एक अप्रैल से 30 सितंबर 2020 के बीच की जायेगी।
रेड्डी ने कहा कि तेलंगाना सरकार ने 2014 में ‘समग्र कुटुंब सर्वे’ किया था और राज्य के निवासियों से उनके बैंक खाते की जानकारियां, चिकित्सा इतिहास आदि समेत कई जानकारियां मांगी गई थी लेकिन तब कोई सवाल नहीं उठाया गया। उन्होंने कहा, ‘‘(असदुद्दीन) ओवैसी जैसे राजनीतिज्ञों की ओर से तब कोई सवाल नहीं उठाया गया था। इससे पता चलता है कि एनपीआर का विरोध काफी हद तक राजनीति से प्रेरित है।’’ कुछ राज्य सरकारों ने घोषणा की है कि वे एनपीआर कवायद में शामिल नहीं होंगी। उनका कहना है कि यह देशव्यापी राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) से पहले का चरण है।
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने पूर्वोत्तर और गैर-भाजपा शासित राज्यों में अपने समकक्षों से एनपीआर प्रपत्र का ध्यानपूर्वक अध्ययन करने की अपील की है। केरल सरकार ने घोषणा की है कि वह जनगणना की कवायद को लागू करेगी लेकिन एनपीआर के साथ सहयोग नहीं करेगी।