देशभर में विरोध प्रदर्शन के बीच राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने कृषि क्षेत्र से जुड़े तीन बिल पर हस्ताक्षर कर दिए। राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद अब तीनों बिल कानून बन गए हैं। खबर है कि मोदी सरकार इस संबंध में जल्द ही अधिसूचना जारी कर सकती है। कृषि बिल को लेकर विपक्ष लगातार सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहा है। पंजाब, हरियाणा समेत देश के अन्य हिस्सों में विरोध प्रदर्शन काफी उग्र होता जा रहा है।
मालूम हो कि एक सप्ताह पहले 20 सितंबर को विपक्ष के विरोध के बावजूद कृषि क्षेत्र से जुड़े तीन बिलों कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) विधेयक 2020, कृषि (सशक्तिकरण और और संरक्षण) मूल्य आश्वासन और कृषि सेवा पर करार विधेयक और आवश्यक वस्तु संशोधन बिल को पारित कराया गया था। इनमें से दो बिल तो राज्यसभा में ध्वनिमत से ही पारित हो गए थे। वहीं, मानसून सत्र के पहले ही दिन पिछले गुरुवार को लोकसभा में पास हो गए थे।
किसानों (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) का मूल्य आश्वासन अनुबंध एवं कृषि सेवाएं विधेयक का उद्देश्य अनुबंध खेती की इजाजत देना है। आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक अनाज, दालों, आलू, प्याज और खाद्य तिलहन जैसे खाद्य पदार्थों के उत्पादन, आपूर्ति, वितरण को विनियमित करता है। इन विधेयकों को संसद में पारित किए जाने के तरीके को लेकर विपक्ष की आलोचना के बीच राष्ट्रपति ने उन्हें मंजूरी दी है।
लोकसभा में इस बिल का कांग्रेस, लेफ्ट और डीएमके ने तो विरोध किया ही, भाजपा की सहयोगी पार्टी अकाली दल ने भी विरोध किया। वहीं बिल पास होने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसानों को भरोसा दिया कि MSP और सरकारी खरीद की व्यवस्था बनी रहेगी। कृषि बिल के विरोध में एनडीए की दो दशक से पुरानी सहयोगी शिरोमणि अकाली दल भी सरकार के साथ ही गठबंधन से अलग हो गई है।
अकाली दल की वरिष्ठ नेता एवं पूर्व कैबिनेट मंत्री हरसिमरत कौर ने एनडीए से अलग होने के बारे में कहा कि केंद्र की भाजपा नीत सरकार ने पंजाब की ओर से आंखें मूंद ली हैं। उन्होंने कहा कि यह वह गठबंधन नहीं है जिसकी कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कल्पना की थी। हरसिमत कौर ने कहा, ‘‘जो अपने सबसे पुराने सहयोगी दल की बातों को अनसुना करे और राष्ट्र के अन्नदाताओं की याचनाओं को नजरंदाज करे, वह गठबंधन पंजाब के हित में नहीं है।