कोरोना वायरस महामारी के चलते व्याप्त संकट के बीच प्रवासी मजदूरों का अपने घरों की ओर लौटना जारी है। इस बीच सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों को मजदूरों को उनके निवास स्थानों पर पहुंचाने की 15 दिन की मोहलत दी है। इतना ही नहीं कोर्ट ने सरकारों को रोजगार के साथ रजिस्ट्रेश करने का बंदोबस्त करने के लिए भी कहा है। कोर्ट का कहना है कि दूसरे राज्यों से पहुंचे मजूदरों का रजिस्ट्रेशन किया जाए और उनके लिए रोजगार के अवसर बनाए जाएं। उनकी परेशानियों को दूर किया जाए।

न्यायमूर्ति अशोक भूषण, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति एम आर शाह की पीठ ने इन प्रवासी कामगारों की दयनीय स्थिति का स्वत: संज्ञान लिये गये मामले की वीडियो कांफ्रेन्सिंग के जरिये सुनवाई के दौरान अपनी मंशा जाहिर की। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में आदेश सुरक्षित रखा हुए मंगलवार, 9 जून को आदेश देने की बात कही है।

केन्द्र की ओर से सालिसीटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ को सूचित किया कि इन प्रवासी श्रमिकों को उनके पैतृक स्थान तक पहुंचाने के लिये तीन जून तक 4,200 से अधिक ‘विशेष श्रमिक ट्रेन’ चलाई गयीं हैं। इस दौरान उन्होंंने कहा कि किसी भी राज्य में कोई भी प्रवासी भूख प्यास से नहीं मरा जो भी मौतें हुईं हैं वो बीमारी के चलते हुई हैं।

मेहता ने कहा कि अभी तक एक करोड़ से ज्यादा श्रमिकों को उनके गंतव्य तक पहुंचाया गया है और अधिकांश ट्रेनें उत्तर प्रदेश और बिहार में खत्म हुयी हैं। उन्होंने कहा कि राज्य सरकारें बता सकती है कि अभी और कितने प्रवासी कामगारों को स्थानांतरित करने की आवश्यकता है ओर इसके लिये कितनी रेलगाड़ियों की जरूरत होगी।शीर्ष अदालत ने 28 मई को निर्देश दिया था कि अपने पैतृक स्थान जाने के इच्छुक सभी प्रवासी कामगारों से ट्रेन या बसों का किराया नहीं लिया जाये। न्यायालय ने यह भी निर्देश दिया था कि रास्ते में फंसे श्रमिकों को संबंधित प्राधिकारी नि:शुल्क भोजन और पानी मुहैया करायेंगे।