आम आदमी को अपने लिए सपने देखना या संजोना जैसे गुनाह हो गया है। इन सपनों को साकार करने के लिए उसे न तो अपने देश की धरती पर जगह मिलती है और न उन समृद्ध देशों में जहां श्रम करने जाते हैं। अब उसे बिना किसी औपचारिकता के निकाल देने की कवायद हो रही है। यह पूरा सिलसिला अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप के सत्ता संभालने के बाद हुआ है। इससे पहले आस्ट्रेलिया और कनाडा में प्रवासियों के आव्रजन पर प्रतिबंध लगाना शुरू हो गया था। मगर अब तो अवैध बता कर उन्हें सीधे बाहर किया जा रहा है। अमेरिका में बड़ी संख्या में ऐसे प्रवासी चिह्नित किए गए हैं, जिनका आव्रजन अवैध माना जा रहा है। इसी के समांतर कनाडा, आस्ट्रेलिया और ब्रिटेन में भी सख्ती बढ़ गई है। जबकि सच्चाई यह है कि इन देशों में श्रम करने के लिए तीसरी दुनिया के देशों की श्रमशक्ति और भारतीयों की समर्पित मेहनत के सिवा कोई और विकल्प नहीं है।

जिस तरीके से प्रवासी भारतीयों को पहले अमेरिका से निकाला गया और उसके बाद आव्रजन का खर्चा अधिक जान कर उन्हें पनामा में तड़ीपार किया जा रहा है, वह बेहद ही आपत्तिजनक है। याद रखा जाए कि भारतीय मेहनत करने के लिए गए थे। किसी भी तरह का अपराध या सामाजिक जीवन में गतिरोध पैदा करना उनकी मंशा नहीं है। सर्वेक्षण बताते हैं कि जितना प्रवासी श्रमिकों ने इन देशों की समृद्धि के लिए खासकर अमेरिका के लिए काम किया है, उतना उनके मूल नागरिक नहीं कर पा रहे। मगर सत्ता परिवर्तन के बाद ‘अमेरिका अमेरिकियों के लिए’ का जो नारा उठा और जिस अशालीन तरीके से हथकड़ियों और बेड़ियों में अवैध प्रवासियों को भेजा गया, इससे अधिक दुखद घटना नहीं हो सकती।

अमेरिका ने आप्रवासी कानून में थोड़ा संशोधन कर दिया

हालांकि जब इसकी निंदा हुई, तो अमेरिका ने आव्रजन कानून में थोड़ा संशोधन कर दिया कि अगर तकनीकी ज्ञान से निपुण भारतीय यहां आना चाहते हैं, तो उनका स्वागत है। यह हैरत की बात है कि जो मेहनतकश श्रमिक अमेरिका की समृद्धि के लिए धरती पर खटते रहे, वे आज अनचाहे मेहमान हो गए और उनको अपराधियों की तरह वापस भेजा जा रहा है। उन्हें अपने देश के शीर्ष नेतृत्व से उम्मीद थी कि शायद वह अमेरिका से बात करेगा। मगर ऐसा नहीं हो हुआ। कड़ा विरोध न होने के कारण अमेरिकी राष्ट्रपति अपने देश से भारतीयों को ही नहीं, तीसरी दुनिया के कई देशों के लोगों को बाहर करने पर अड़े हुए हैं।

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अभी नई खबर आई है कि प्रवासी लोगों का निर्वासन न केवल जारी रहेगा, बल्कि इसको और तेज कर दिया जाएगा। अमेरिकी राष्ट्रपति ने अठारहवीं सदी के एक कानून का इस्तेमाल करने की घोषणा कर दी है। इसमें उन लोगों का तत्काल निर्वासन करने की इजाजत है, जो देश के लिए खतरा हो सकते हैं। अमेरिकी प्रशासन का दावा है कि ट्रंप की घोषणा के अनुसार इन प्रवासियों को नए सिरे से निर्वासित किया जा सकता है। उन्हें अल सल्वाडोर और होंडुरास में कैद किया जा सकता है। डेमोक्रेसी फारवर्ड द्वारा अदालत में जो याचिका दायर की गई, उसके जवाब में ऐसे अनचाहे प्रवासियों को गिरोह कहा गया और उनके तत्काल निर्वासन का सिलसिला जारी रखने का सरकार ने जवाब दिया। मगर यह बहुत सख्त कानून है। अमेरिकी इतिहास में इस कानून का इस्तेमाल केवल तीन बार हुआ, वह भी युद्ध के दौरान। पहला इस्तेमाल द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान हुआ था।

अमेरिका की न्यायपालिका स्वतंत्र

अमेरिका की न्यायपालिका स्वतंत्र है। उसने इस निर्मम कानून पर अमल की इजाजत नहीं दी और कुछ ही घंटे बाद संघीय अदालत के न्यायाधीश ने ट्रंप प्रशासन को इसे लागू करने से रोक दिया। दुखद है कि आज भी बड़े और समृद्ध देशों की गरीब देशों पर दादागीरी जारी है। उनके लिए प्रवासी भारतीय अवांछित हो गए और उन्हें एक तरह से घुसपैठिया मानते हुए देश से बाहर निकाला जा रहा है। इस सिलसिले को अमेरिका और उसके साथ जुड़े कुछ अन्य देश अभी रोकने के लिए तैयार नहीं। त्रासद स्थिति यह है कि भारतीय नौजवानों के सपने बिखर रहे हैं। उनके रोजगार की कोई गारंटी नहीं। उनके लिए सिर्फ रियायत और अनुकंपा की बारिश होती है, जो उन्हें जीने का अवसर तो देती है, लेकिन सपने देखने का नहीं। अपने सपनों को साकार करने के लिए जब वे अवैध तरीके से या किसी दूसरे रास्ते से अमेरिका और दूसरे देशों की ओर रुख करते हैं, तो वहां की सत्ता उन्हें अपराधी या घुसपैठिया मान कर वापस उनके देशों में भेजने का इंतजाम करती है।

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इसमें दोष तो अपने देश का भी है, जो विश्व में सबसे तेज विकास दर प्राप्त करने और सकल घरेलू उत्पादन के बढ़ने का दावा तो करता है, लेकिन काम करने के लिए उत्सुक नौजवानों के उज्ज्वल भविष्य का वादा नहीं किया। यह जरूर है कि उन्हें भूख से मरने नहीं दिया जाएगा। उनके लिए मुफ्त अनाज बांटा जाएगा। अभी इसका विस्तार 2029 तक कर दिया गया है। फिर भी अर्थशास्त्रियों का यह कहना है कि 2047 तक भारत पूर्ण रूप से एक विकसित देश बन भी जाए, तो शायद ऐसे लोगों की संख्या में कमी नहीं आएगी और उनके लिए मुफ्त अनाज की अनुकंपा जारी रखनी पड़ेगी।

भारत के अरबपतियों की संख्या एशिया में हो गई है सबसे अधिक

सामाजिक व्यवस्था पर भाषणबाजी तो होती है, लेकिन समरसता बनाने की कोशिश नजर नहीं आती। अमीर और गरीब का भेद बढ़ता जा रहा है। अभी नया आंकड़ा आया है कि भारत के अरबपतियों की संख्या एशिया में सबसे अधिक हो गई है, लेकिन जहां तक गरीबों का संबंध है, इनकी दर में कोई कमी नहीं आई। जिन लोगों को गरीबी रेखा से बाहर निकालने का दावा किया जाता है, वह दावा भी इसलिए सत्य हो जाता है, क्योंकि अब गरीबी रेखा की परिभाषा ही बदल दी गई है। यह कह दिया गया कि जो दिन में एक वक्त का भोजन प्राप्त कर लेता है, वह गरीब नहीं है। एक नया निम्न मध्यवर्ग बन गया है। इसी वर्ग से नौनिहाल देश से बाहर भागने के लिए उतावले हैं। उन्हें बाहर भिजवाने के लिए जगह-जगह एजंसियां खुल गई हैं। अब जब उनकी वापसी होने लगी है, तो इन्हीं एजंटों पर मुर्दनी छा गई है और उन पर छापामारी हो रही है।

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सवाल है कि नौजवान क्या करें? अपने देश में उनके सपने साकार नहीं हो रहे हैं और समृद्ध देश उन्हें सहन करने से इनकार कर रहे हैं। वे बैरंग लौटाए जा रहे हैं, जबकि ये लोग कई वर्षों से वहां दूसरे दर्जे के नागरिकों की जिंदगी जीते हुए भी खुश थे और अपने स्थायी निवासी होने के स्वीकृति का इंतजार कर रहे थे, अब उनके लिए ये दरवाजे भी बंद कर दिए गए है। घोषणा की गई है कि जिन्हें नागरिकता मिल भी गई है, उनकी जांच होगी और जो अवैध पाया जाएगा, उन्हें वापस लौटा दिया जाएगा। क्या यह हमारी आर्थिक प्रगति के लिए एक चिंतनीय विषय नहीं है?