जम्मू-कश्मीर में होने वाली वार्षिक अमरनाथ यात्रा शुरू हो गयी है। कश्मीर के हिमालयी क्षेत्र में 3,880 मीटर की ऊंचाई पर स्थित अमरनाथ गुफा में दर्शन करने वाले तीर्थयात्रियों की संख्या एक लाख को पार कर गई है। अब तक 3.5 लाख से अधिक लोगों ने तीर्थयात्रा के लिए ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन कराया है। इस साल अमरनाथ यात्रा के शिखर पर बर्फ का शिवलिंग जो परतों में जमते पानी की बूंदों से प्राकृतिक रूप से बनता है, कश्मीर घाटी में पड़ रही भीषण गर्मी के बीच धीरे-धीरे पिघल रहा है। इस बदलते मौसम ने तीर्थयात्रियों, स्थानीय कार्यकर्ताओं और सुरक्षाकर्मियों को भी हैरान कर दिया है।
श्री अमरनाथ श्राइन बोर्ड के अधिकारियों का कहना है कि अब वे यह अनुमान लगाने की कोशिश नहीं करते कि शिवलिंग कितने समय तक रहेगा। बोर्ड के एक वरिष्ठ सदस्य ने इंडियन एक्स्प्रेस से कहा, “हर साल, शिवलिंग तेज़ी से पिघलता है। सालों पहले, यह अगस्त तक रहता था। मौसम अप्रत्याशित है—भारी बारिश, तापमान में अचानक वृद्धि। हम भविष्यवाणी नहीं कर सकते कि क्या होगा। इसका भविष्य में यात्रा पर असर पड़ेगा। हम केवल सुविधाएं बढ़ा सकते हैं, मौसम नहीं बदल सकते।”
जयपुर से संकेत यादव और उनके 12 लोगों के समूह ने आंतरिक गर्भगृह के दर्शन किए। अपने दर्शन के बाद, वे जल्दी से बाहर निकलते हैं, अपने मोबाइल फ़ोन और बैग उठाते हैं और नीचे उतरने की तैयारी करते हैं। अपने रिश्तेदारों से फ़ोन पर बात करते हुए, संकेत ने जानकारी दी कि अंदर की बर्फ तेज़ी से पिघल रही है। उन्होंने कहा, ” आप देख लीजिए आना है तो।”
पहलगाम आतंकी हमले के बाद सेना ऐसे कर रही अमरनाथ यात्रियों की सुरक्षा
अमरनाथ से गायब हो रहा शिवलिंग
शिवलिंग आमतौर पर हिंदू महीने श्रावण (जुलाई-अगस्त) में बनना शुरू होता है लेकिन हाल के वर्षों में, इसका गायब होना इस क्षेत्र के जलवायु संकट का एक पैमाना बन गया है। 2018 में, यह बनने के मात्र 29 दिन बाद, 27 जुलाई तक पिघल गया। 2019 में, आतंकी धमकियों के कारण यात्रा रद्द कर दी गई थी। 2020 में, यह जून के मध्य तक बना और 23 जुलाई तक 80 प्रतिशत पिघल गया, यानी 38 दिनों तक चला। महामारी के कारण 2021 में इसे फिर से रद्द करना पड़ा। 2022 में, यह केवल 18 जुलाई तक चला, यानी 28 दिन। 2023 में, यह 47 दिनों तक चला, यानी 17 अगस्त तक पिघल गया। लेकिन 2024 में, यह केवल एक सप्ताह में, यानी 6 जुलाई तक, गायब हो गया।
2022 में, पूर्व बीएसएफ महानिरीक्षक (कश्मीर) राजा बाबू सिंह ने पहलगाम और बालटाल दोनों मार्गों पर सुरक्षा की निगरानी की थी। उन्होंने कहा, “अपने कार्यकाल के दौरान, मैंने देखा कि उस क्षेत्र में बर्फबारी कम हो गई थी। यात्रा मार्ग पहले एक खाली जमीन हुआ करती थी। अब वहां सशस्त्र बलों की भारी आवाजाही, हेलीकॉप्टरों की आवाजाही और लाखों तीर्थयात्रियों का आना-जाना लगा रहता है। इसका आसपास के पर्यावरण पर प्रभाव पड़ा है, साथ ही ग्लोबल वार्मिंग का भी असर पड़ा है।” पढ़ें- आज का मौसम कैसा रहेगा की जानकारी