आयोग के अध्यक्ष जगदीश कुमार ने सभी विश्वविद्यालयों के कुलपतियों को पत्र लिख कर यह आग्रह किया है। आयोग ने कहा कि उच्च शिक्षण संस्थान पाठ्यपुस्तकें तैयार करने और मातृभाषा/स्थानीय भाषाओं में शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया का समर्थन करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

आयोग ने जोर देकर कहा कि इन प्रयासों को मजबूत करना और मातृभाषा/स्थानीय भाषाओं में पाठ्यपुस्तकों को लिखने और अन्य भाषाओं से मानक पुस्तकों के अनुवाद सहित शिक्षण में उनके उपयोग को प्रोत्साहित करने जैसी पहल को बढ़ावा देना आवश्यक है।

कुमार ने पत्र में लिखा कि इसलिए आयोग अनुरोध करता है कि आपके विश्वविद्यालय में विद्यार्थियों को परीक्षाओं में स्थानीय भाषाओं में उत्तर लिखने की अनुमति दी जाए, भले ही पाठ्यक्रम अंग्रेजी माध्यम में हों। मौलिक लेखन का स्थानीय भाषा में अनुवाद तथा शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में स्थानीय भाषा के उपयोग को विश्वविद्यालयों में बढ़ावा दिया जाना चाहिए।

पत्र में कहा गया है कि उपरोक्त कदमों के संदर्भ में रणनीति बनाने के लिए निम्नलिखित जानकारी प्रदान करने का आग्रह किया जाता है। इसमें मुख्य विषयों/पाठ्यक्रमों की विषयवार सूची जिसके लिए पाठ्यपुस्तकों/ संदर्भ पुस्तकों/ अध्ययन सामग्री को स्थानीय भाषाओं में अवश्य लिखा या अनुवादित किया जाना चाहिए।

इसमें संस्थानों/ विश्वविद्यालयों में वैसे शिक्षकों/ विषय विशेषज्ञों/ अध्येताओं की विषयवार उपलब्धता के बारे में बताने को कहा गया है जो स्थानीय भाषाओं में पाठ्यपुस्तकों/ संदर्भ पुस्तकों/ अध्ययन सामग्री का अनुवाद कर सकते हैं। इसमें स्थानीय भाषाओं में पाठ्यपुस्तकों के मुद्रण के लिए स्थानीय प्रकाशकों की उपलब्धता के बारे में बताने और अध्ययन सामग्री को स्थानीय भाषाओं में लाने की सफलता की योजना पर चर्चा करने को कहा गया है।

पत्र में कहा गया है कि, ‘उपरोक्त संदर्भ में यह अनुरोध किया जाता है कि निर्धारित एक्सेल प्रारूप में जानकारी संकलित करें और अन्य आवश्यक विवरणों के साथ इसे गूगल फार्म में लिंक पर डालें। कुमार ने कहा कि शिक्षा में भारतीय भाषाओं का संवर्धन और नियमित उपयोग राष्ट्रीय शिक्षा नीति में ध्यान देने योग्य एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्र है। यह नीति मातृभाषा/स्थानीय भाषाओं में शिक्षण और संप्रेषण के महत्त्व पर जोर देती है।