Kapil Sibal: दिल्ली दंगों की बड़ी साजिश के मामले में आरोपी उमर खालिद को दिल्ली हाई कोर्ट द्वारा जमानत देने से इनकार किए जाने के बाद वरिष्ठ अधिवक्ता और राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल ने सवाल उठाए हैं।

लाइव लॉ की रिपोर्ट, कपिल सिब्बल ने कहा कि न्यायपालिका मामले में सुनवाई में देरी कर रही है और संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन किया गया है। और हम इस अन्याय के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे।

सिब्बल ने कहा, “अगर अदालत सालों तक फ़ैसला नहीं देती, तो क्या हम ही दोषी हैं? अदालतों का यही हाल है। अगर आप ज़मानत नहीं देना चाहते, तो केस खारिज कर दीजिए। आपको सालों तक 20-30 सुनवाई क्यों करनी पड़ती है?…हमारी राय में, यह अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है। यह अन्याय नहीं होना चाहिए। अगर कोई भारत की अखंडता के लिए ख़तरा बनता है, तो हम देश के साथ खड़े होंगे, उनके साथ नहीं। लेकिन हमें निर्दोषों के साथ खड़ा होना होगा। “

वरिष्ठ वकील ने आगे बताया कि खालिद (और अन्य) दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाएंगे और विश्वास व्यक्त किया कि उनकी बात सुनी जाएगी। उन्होंने कहा कि विरोध प्रदर्शन एक नागरिक का संवैधानिक अधिकार है। इसका मतलब यह नहीं कि एजेंसियां ​​यूएपीए के तहत लोगों को जेल भेज देंगी।

सिब्बल ने बिना किसी स्पष्टीकरण के कुछ जजों के मामले से खुद को अलग करने पर भी सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि जजों को अपने अलग होने का कारण बताना चाहिए… कोई न कोई वजह तो होगी ही। कोई खास बात तो होगी ही, जो हमें नहीं पता। जिस व्यक्ति ने राहत के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया है, उसे पता होना चाहिए कि कोई जज उसके मामले की सुनवाई क्यों नहीं कर रहा है।

न्यायपालिका की ओर से मामले में हुई देरी का हवाला देते हुए और दिल्ली उच्च न्यायालय के इस विचार की निंदा करते हुए कि अभियुक्तों के वकीलों ने देरी की, सिब्बल ने ज़ोर देकर कहा कि उच्च न्यायालय में पहली अपील पर 180 दिनों में 28 सुनवाई हुईं। जब राहत नहीं मिली, तो खालिद ने सर्वोच्च न्यायालय का रुख किया, लेकिन उनका मामला 272 दिनों तक वहां लंबित रहा। गौरतलब है कि न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा ने उनके मामले की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था। अंततः, खालिद ने निचली अदालत का रुख करने के लिए अपना मामला वापस ले लिया।

सिब्बल ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने बार-बार कहा है कि ज़मानत के मामलों की जल्द से जल्द सुनवाई होनी चाहिए। फिर भी, खालिद द्वारा हाईकोर्ट में दायर दूसरी आपराधिक अपील पर एक खंडपीठ ने लगभग 407 दिनों तक सुनवाई की। 09.07.2025 को आदेश सुरक्षित रख लिया गया, लेकिन कभी सुनाया नहीं गया। जब मामला दूसरी खंडपीठ के पास गया, तो उसने भी सुनवाई करने से इनकार कर दिया।

दिल्ली हाई कोर्ट की इस राय पर कि आरोपियों के वकीलों ने मामले में देरी की, सिब्बल ने स्पष्ट किया कि यद्यपि आरोप 7 स्थगन का है, उन्होंने केवल दो बार स्थगन की मांग की – एक बार, स्वास्थ्य संबंधी मुद्दे के कारण, और दूसरी बार, क्योंकि सिब्बल अनुच्छेद 370 मामले में संविधान पीठ के समक्ष थे।

वरिष्ठ वकील ने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि खालिद ने यह भाषण मुंबई में दिया था और दंगों के समय वह दिल्ली में नहीं था। कोई प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं है, फिर भी, वह पांच साल जेल में बिता चुका है और उसे ज़मानत नहीं मिली है। उन्होंने आगे ज़ोर देकर कहा कि कथित अपराध के लिए मृत्युदंड भी हो सकता है और अभियोजन एजेंसियां दिल्ली दंगों के वीडियो साझा नहीं कर रही हैं, जबकि अभियुक्तों ने अदालत को दिखाने का अनुरोध किया था। सिब्बल ने कहा कि मैं आज पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूँ कि अगर इस मामले की सुनवाई होती है, तो वे सभी बरी हो जाएंगे। इस साज़िश का पर्दाफ़ाश हो जाएगा।

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एक सवाल के जवाब में, उन्होंने आगे दावा किया कि अभियोजन एजेंसी ने “संरक्षित गवाहों” के बयान दर्ज किए हैं। उन्होंने पूछा कि चूँकि ये बयान अभियुक्तों के पास उपलब्ध नहीं हैं, तो वे कैसे बहस कर सकते हैं। सिब्बल ने कहा कि आरोपपत्र किसी भी बात का सबूत नहीं है, यह एजेंसी की राय है… अगर आरोपपत्र को सबूत मान लिया जाए, तो किसी को भी ज़मानत नहीं मिलेगी।

वरिष्ठ वकील ने राजनेताओं, वकीलों आदि को भी आवाज़ न उठाने के लिए आड़े हाथों लिया। सिब्बल ने कहा, “53 लोग मारे गए, दो-तिहाई एक ही समुदाय के थे… जिन राजनेताओं ने भड़काऊ भाषण दिए, क्या उनके ख़िलाफ़ कार्यवाही शुरू की गई? और जिस जज ने पूछा कि उन पर मुकदमा क्यों नहीं चलाया जा रहा, उसका तबादला कर दिया गया। न्यायपालिका और सरकार का यही हाल है। कोई कहां जाए? हमारे राजनीतिक दल भी इन मुद्दों को नहीं उठाते। एक सार्वजनिक अन्याय हो रहा है। इसके ख़िलाफ़ कौन आवाज़ उठाएगा? हमारे वकील, मध्यम वर्ग, समाज सब चुप हैं। “

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