अनिल बंसल 

उत्तर प्रदेश की अखिलेश यादव सरकार भ्रष्ट अफसरों को संरक्षण देने के नए कीर्तिमान बना रही है। सरकार की कार्यप्रणाली ने लोगों को तुगलकी राज की याद दिलाई है। नोएडा के भ्रष्ट इंजीनियर यादव सिंह की करतूतों और काली कमाई का भांडा फूटने के बाद भी अखिलेश यादव ने उन्हें निलंबित तक करना जरूरी नहीं समझा। अन्यथा कायदे से तो उनके खिलाफ भ्रष्टाचार का मुकदमा कायम कर उनकी तत्काल गिरफ्तारी की जानी चाहिए थी। इसी तरह मेरठ के चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय में तैनात एक अदने से अधिकारी को संरक्षण देकर सपा सरकार ने विश्वविद्यालय की पूरी व्यवस्था को ही चौपट कर दिया है।

मेरठ का चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय संबद्ध कालेजों की संख्या के हिसाब से सूबे का सबसे बड़ा विश्वविद्यालय है। पिछले दिनों राज्य सरकार ने रजिस्ट्रार के पद पर इस विश्वविद्यालय में एक पीसीएस अफसर मनोज कुमार चौहान को तैनात कर दिया। आमतौर पर विश्वविद्यालयों में रजिस्ट्रार उच्च शिक्षा सेवा कैडर के अफसर ही लगाए जाते हैं। मनोज चौहान ने तैनाती के बाद विश्वविद्यालय की व्यवस्था को चौपट कर दिया। नियम विरुद्ध कामकाज किए, भ्रष्टाचार को बढ़ावा दिया और नियमित कामकाज में रोड़े डाल विश्वविद्यालय की व्यवस्था को चौपट कर दिया। इस पर विश्वविद्यालय के कुलपति और कार्यकारी परिषद ने शासन से उनके तबादले की सिफारिश कर दी। लेकिन उच्च शिक्षा विभाग उस पर कुंडली मार कर बैठा रहा।

विश्वविद्यालय के कुलपति वीसी गोयल पहले राज्य पुलिस में महानिदेशक थे। उन्होंने तब पुलिस में सिपाहियों की जिस पारदर्शिता से भर्ती की थी, उसकी सराहना तब के केंद्रीय गृहमंत्री पी चिदंबरम ने भी की थी। गोयल से पहले राज्यपाल ने आइआइटी, दिल्ली के प्रोफेसर हेमचंद गुप्ता को कुलपति नियुक्त किया था। लेकिन वे दो महीने में ही इस्तीफा देकर वापस चले गए थे। वजह थी विश्वविद्यालय की अराजकता। ईमानदार माने जाने वाले गोयल ने न केवल विश्वविद्यालय की व्यवस्था को सुधारा, बल्कि भ्रष्टाचार पर भी अंकुश लगा दिया। दाखिलों में अनियमितताओं को खत्म किया और व्यवस्था को आॅनलाइन कर सत्र नियमित करने से लेकर समय पर परीक्षाओं का बंदोबस्त कराया। लेकिन रजिस्ट्रार मनोज चौहान ने आते ही पूरी व्यवस्था को चौपट करने का कुचक्र चला दिया। संविदाकर्मचारियों को हड़ताल और अराजकता के लिए उकसाया तो कुलपति से सीधे टकराव भी ले लिया। सरकार से एचआरए भी लिया और विश्वविद्यालय के गेस्ट हाउस में गैरकानूनी तरीके से कब्जा भी जमाए रखा।

उम्मीद की जा रही थी कि विश्वविद्यालय की व्यवस्था को बनाए रखने के लिए अखिलेश यादव सरकार मनोज चौहान को हटा देगी। लेकिन सवा महीने बाद सूबे के उच्च शिक्षा विभाग ने कुलपति के फैसले को ही अनुचित बता दिया। नतीजतन अब कुलपति ने इसे प्रतिष्ठा का सवाल बनाकर इस्तीफे की धमकी दे डाली है। अगले हफ्ते विश्वविद्यालय में दीक्षांत समारोह होना है। मनोज चौहान की जगह उप कुलसचिव प्रभाष द्विवेदी को कार्य परिषद ने कुलपति का काम सौंप रखा है। लेकिन मनोज चौहान फिर भी विश्वविद्यालय का पीछा छोड़ने को तैयार नहीं।

यादव सिंह के मामले ने अखिलेश सरकार की कार्यप्रणाली पर पहले ही गंभीर सवाल उठाए हैं। एक भ्रष्ट इंजीनियर के खिलाफ कार्रवाई के बजाए सूबे की सपा सरकार ने उसे और ज्यादा अधिकार सौंपकर लूट और भ्रष्टाचार का लाइसेंस थमा दिया। बेशर्मी का आलम तो यह है कि आयकर विभाग के छापों में अरबों की काली कमाई का खुलासा होने के बाद भी यादव सिंह के खिलाफ राज्य सरकार ने भ्रष्टाचार का कोई मामला दर्ज कराने की जरूरत नहीं समझी। दागी अफसरों को प्रोत्साहन देने का ही अंजाम है कि अच्छे और काबिल अफसर अब सूबे में रुकने को तैयार नहीं। ज्यादातर केंद्र सरकार में प्रतिनियुक्ति पर हैं।

मुख्य सचिव आलोक रंजन पर भी भ्रष्टाचार के आरोप लग चुके हैं। पर अखिलेश यादव को इसकी कोई परवाह नहीं। नियुक्ति महकमे का प्रमुख सचिव भी उन्होंने एक दागी अफसर राजीव कुमार को बना रखा है। हालांकि उन्हें नोएडा जमीन घोटाले में सीबीआइ अदालत तीन साल कैद की सजा सुना चुकी है और वे फिलहाल हाई कोर्ट से जमानत पर हैं। मुलायम सिंह यादव ने 2003 से 2007 तक मुख्यमंत्री रहते हुए भी इसी तरह भ्रष्ट अफसरों अखंड प्रताप सिंह और नीरा यादव को सूबे का मुख्य सचिव बनाया था। इस चक्कर में अदालतों में फजीहत भी हुई थी। बाद में इन दोनों को भ्रष्टाचार के लिए अदालत ने जेल भी भेजा था। अहम पदों पर दागी अफसरों की तैनाती में लगता है अखिलेश भी पूर्ववर्ती सपा सरकारों के नक्शे कदम पर हैं।