ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) ने अयोध्या में राम मंदिर में 22 जनवरी को भगवान राम की प्राण प्रतिष्ठा में मुख्य यजमान पीएम नरेंद्र मोदी के बनने पर कड़ा एतराज जताया है। बोर्ड ने कहा कि यह न्याय और सेक्युलरिज्म की हत्या है। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के अध्यक्ष खालिद सैफुल्लाह रहमानी (Khalid Saifullah Rahmani) सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म फेसबुक पर जारी एक प्रेस नोट में कहा कि अगर कोई मुसलमान 22 जनवरी को दीपक जलाता है या बहुदेववादी नारे लगाता है तो यह नाजायज होगा।

बोर्ड के अध्यक्ष ने कहा- इस्लाम की सोच बिल्कुल साफ है

उन्होंने कहा कि यह संसार और इसके बनाने वाले के बारे में इस्लाम की सोच बिल्कुल साफ है और वह यह है कि केवल एक ही ख़ुदा है, जिसने इसे बनाया है। संसार और इसकी सभी वस्तुएं उसी ने बनाई है। वह जीवन देता है और ज्ञान देता है। ऐसा नहीं हो सकता है कि अलग-अलग ख़ुदा एक साथ संसार का प्रबंधन करते हों। यही मुसलमानों का बुनियादी विश्वास है, यही अक़ीदा (विश्वास) मानवीय समानता की भावना पैदा करता है; क्योंकि इस पर विश्वास करने वाले हर व्यक्ति का मानना है कि हम सभी ख़ुदा द्वारा बनाए गए हैं और हम सभी मनुष्य के रूप में समान हैं और इसी विश्वास के कारण व्यक्ति के मन में सभी प्राणियों के प्रति प्रेमभाव भी पैदा होता है।

रहमानी ने कहा, “अयोध्या में राम मंदिर निर्माण सरासर क्रूरता पर आधारित”

खालिद सैफुल्लाह रहमानी ने कहा, “अयोध्या में जो राम मंदिर निर्माण की प्रक्रिया होने जा रही है, यूं तो यह सरासर क्रूरता पर आधारित है; क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि उसके नीचे कोई मंदिर नहीं था जिसे तोड़कर मस्जिद बनाई गई हो और इस बात का भी कोई साक्ष्य (सबूत) नहीं है कि श्री रामचन्द्रजी का जन्म उस स्थान विशेष पर हुआ था; लेकिन कोर्ट ने क़ानून से अलग बहुसंख्यक संप्रदाय के एक वर्ग की ऐसी आस्था के आधार पर यह फैसला दिया है जिसका उल्लेख हिंदू भाइयों के पवित्र ग्रंथों में नहीं है, यह निश्चित रूप से देश के लोकतंत्र पर एक बड़ा हमला है।”

अध्यक्ष ने कहा, “सियासी उद्देश्यों के लिए प्रचार घावों पर नमक छिड़कना है”

उन्होंने कहा, “इसलिए मुसलमान सुप्रीम कोर्ट का सम्मान करते हुए उस फ़ैसले पर मौन रहे हैं। फ़ैसले ने उनके दिलों को ठेस पहुंचाई है, अब उस फ़ैसले का आधार एक मस्जिद की जगह पर राम मंदिर का निर्माण करना है जिसमें सैकड़ों वर्षों से नमाज़ अदा की जाती रही हो, उसमें सरकार और मंत्री की विशेष रुचि और प्रधानमंत्री द्वारा इसका उद्घाटन न्याय और धर्मनिरपेक्षता की हत्या है और राजनीतिक उद्देश्यों के लिए देशभर में इसका प्रचार अल्पसंख्यकों के घावों पर नमक छिड़कना है।”

इसलिए ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड सरकार के इस ग़ैर-धर्मनिरपेक्ष और अलोकतांत्रिक रवैये की कड़ी निंदा करता है। यह भी सवाल उठाया जा रहा है कि क्या 22 जनवरी को दीपक जलाया जाना चाहिए और जयश्री राम का नारा लगाया जाना चाहिए? तो मुसलमानों को समझ लेना चाहिए कि यह एक बहुदेववादी कृत्य और बहुदेववादी नारा है। यदि हिन्दू भाई मन्दिर के निर्माण की ख़ुशी में द्वीप जलाएं तो हमें इस पर आपत्ति नहीं; लेकिन मुसलमानों के लिए इस प्रक्रिया (कृत्य) में भाग लेना जायज़ नहीं है।

उन्होंने कहा, “इस्लाम ने सभी धार्मिक पवित्र विभूतियों का सम्मान करने को कहा है, हम श्रीरामजी सहित हिंदू पवित्र विभूतियों का सम्मान करते हैं; लेकिन हम उन्हें ख़ुदा नहीं मानते, मुसलमान केवल अल्लाह की तौहीद (एकेश्वरवाद) और किबरियाई का नारा लगाते हैं, किसी अन्य व्यक्तित्व का नहीं; इसलिए मुसलमानों को बहुत सावधान रहना चाहिए और ऐसी हरकत कदापि नहीं करनी चाहिए।”