पूर्व केंद्रीय गृह सचिव माधव गोडबोले के बाबरी मस्जिद विध्वंस से जुड़े एक बयान पर AIMIM चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने चुप्पी तोड़ी है। उन्होंने कहा है कि गोडबोले ने जो कहा है, वह सच है। बाबरी मस्जिद के ताले राजीव गांधी ने ही खुलवाए थे। इस बात का दावा उस जज ने भी अपनी किताब में किया है, जिन्होंने इस केस में फैसला किया। जज ने दावा किया है कि उनके कोर्ट में तब एक काला बंदर आकर बैठ गया था, जबकि फैसला दिए जाने के बाद वह दोबारा उनके घर आया, जिससे जज ने समझा कि उनका फैसला भगवान ने कबूल लिया है।
सोमवार (चार नवंबर, 2019) को पत्रकार वार्ता के दौरान ओवैसी से गोडबोले के बयान पर राय मांगी गई थी। जवाब में उन्होंने कहा, “यह बिल्कुल सच है। राजीव गांधी ने ही तब बाबरी के ताले खुलवाए। ताले खुलाने का ताल्लुक शाह बानो से नहीं है। यह पहले से चल रहा था। जस्टिस पांडे ने फैसले के पीछे कारण बताया था। उन्होंने अपनी किताब में दावा किया था कि उन्होंने ताले खोलने का फैसला इसलिए दिया था, क्योंकि उनके कोर्ट में एक काला बंदर आकर बैठ गया था। लोग उसे बादाम और अखरोट खिला रहे थे, पर वह नहीं खा रहा था। जब उन्होंने फैसला दिया, जिसके बाद वह काला बंदर दोबारा उनके यहां आकर बैठ गया था। उन्होंने इसी से समझा कि प्रभु ने उनका फैसला कबूल कर लिया।”
बकौल ओवैसी, “हम इसलिए कह रहे हैं कि इस मामले में 1949 से ताले खुलाने तक, इसमें इंसाफ नहीं हुआ है। गोडबोले ने जो कहा, वह बिल्कुल सही है। जिसके पास चाभी थी, उसे बुलाया भी नहीं गया था। बाद में राजीव गांधी भी वहीं से चुनावी मुहिम का आगाज करते हैं। ये ऐतिहासिक तथ्य हैं और इनसे कोई इन्कार नहीं कर सकता है। गोडबोले जी ने जो कहा है, वह बिल्कुल सही और सच है।”
सुनें, उन्होंने आगे और क्या कहाः
क्या कहा है गोडबोले ने?: दरअसल, गोडबोले ने दावा किया है कि 1992 में केंद्र सरकार के समक्ष उन लोगों ने अनुच्छेद 355 लागू करने का प्रस्ताव रखा गया था। केंद्रीय बलों को इसके तहत मस्जिद की सुरक्षा के लिए यूपी भेजा जा सकता था। साथ ही वहां राष्ट्रपति शासन लागू किया जा सकता था, पर वैसा नहीं हुआ।
बकौल गोडबोले, “तत्कालीन पीएम राजीव गांधी ने ऐक्शन लिया होता, तो हल निकल सकता था। दोनों ही तरफ तब हालात मजबूत नहीं थे। राजीव ने ही ताले खुलवाए थे और उनके वक्त में ही मंदिर की आधारशिला रखने से जुड़ा कार्यक्रम हुआ था। ऐसे में उन्हें इस आंदोलन का दूसरा कारसेवक कहा जा सकता है और पहले कारसेवक वह डीएम थे, जिन्होंने इस सब की शुरुआत की थी।”
