हिमाचल प्रदेश में बीते एक सप्ताह में चौंका देने वाले राजनीतिक घटनाक्रम हुए हैं। प्रदेश की राजनीति में पहली बार ऐसा हुआ है कि राज्यसभा चुनाव में प्रचंड बहुमत वाली पार्टी को हार मिली है। 43 सदस्य साथ होने के बावजूद भी कांग्रेस के उम्मीदवार को 34 वोट मिले और फिर भाग्य ने भी देश के सबसे बड़े वकीलों में शुमार कांग्रेस के प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी को राज्यसभा से बाहर कर दिया।

क्रास वोटिंग करने वाले छह विधायकों को बजट पारित करने के मौके पर विप जारी होने के बावजूद भी गैरहाजिर रहने पर विधानसभा अध्यक्ष कुलदीप सिंह पठानिया ने बेहद तेजी दिखाते हुए दूसरे दिन ही उन्हें अयोग्य घोषित कर दिया। कुछ भी हो बजट सत्र खत्म हुआ, बजट पारित हो गया और सुखविंदर सिंह सुक्खू की 14 महीने पुरानी सरकार फिलहाल बच गई।

माना जा रहा है कि यह सारी पटकथा वीरभद्र समर्थकों की ओर से लिखी गई थी जिन्हें कथित तौर पर मुख्यमंत्री लगातार अनदेखा, अनसुना व दरकिनार करते आ रहे थे। प्रदेश कांग्रेस की अध्यक्षा दिवंगत वीरभद्र सिंह की सांसद पत्नी प्रतिभा सिंह बार बार सार्वजनिक तौर पर कह रही थीं कि जिन कर्मठ कार्यकर्ताओं की बदौलत कांग्रेस सत्ता में आई है उन्हें सरकार में पद दिए जाएं।

वीरभद्र के समर्थक सुधीर शर्मा को मंत्री पद से वंचित कर दिया गया, कांगड़ा से यादविंदर गोमा को मंत्री बना दिया गया। बकौल राजेंद्र राणा उनको मंत्री पद का वादा किया गया था मगर कुछ नहीं किया गया। संकटमोचन बने उपमुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री ने सरकार बचाने में प्रमुख भूमिका अदा की। यूं तो वे भी वीरभद्र समर्थक ही हैं और उपेक्षित नेताओं व मंत्रियों में उनका भी नाम लिया जाता रहा है मगर जिस तरह से विक्रमादित्य मुखर होकर सामने आए, ऐसा किसी और मंत्री ने नहीं किया। अब कुर्सी के बचते ही प्रदेश के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू यकायक सक्रिय हो गए।

एक ही दिन में वीरभद्र सिंह के खास रहे रामपुर के विधायक नंद लाल को वित्त आयोग का अध्यक्ष बना दिया। फतेहपुर कांगड़ा के विधायक भवानी सिंह पठानिया को भी केबिनेट स्तर का चेयरमैन बना दिया। वीरभद्र समर्थकों में शुमार वकीलों को उप व सहायक एडवोकेट जनरल के पद पर तैनात करने की अधिसूचना जारी कर दी गई।

अब चुनावी गारंटियों में से महिलाओं को पहली अप्रैल से 1500 रूपए हर महीने देने का ऐलान हो गया। इसके अलावा धड़ाधड़ घोषणाएं कर दीं। यह देखते हुए कि लोकसभा चुनावों के लिए कभी भी आदर्श चुनाव आचार संहिता लग सकती है, मुख्यमंत्री ने ऐसी तेजी दिखाई है जो इससे पहले 14 महीनों में कभी नहीं दिखी।

इसे देखते हुए कई दिनों से बागी विधायकों के साथ बैठकें करने वाले व दिल्ली में जाकर नेताओं से मिलने वाले विक्रमादित्य के तेवर भी कुछ नरम पड़ने लगे। कहा जा रहा है कि यदि यही सब कुछ मुख्यमंत्री पहले कर देते, प्रतिभा सिंह व विक्रमादित्य के बोलने पर कर देते तो शायद कांग्रेस को अपना बना बनाया राज्यसभा सदस्य नहीं खोना पड़ता औ जो फजीहत सहनी पड़ी है उससे भी बच जाती।

अब देखने को तो सुखविंदर सिंह सुक्खू की सरकार बच गई है मगर अंदर ही अंदर हिमाचल प्रदेश में सब कुछ अच्छा नहीं है, 6 बागी व अयोग्य विधायक भी आराम से बैठने वाले नहीं हैं, सुप्रीम कोर्ट तो पहुंच ही गए हैं। तीन निर्दलीय विधायक भी भाजपा के सुर में सुर मिला रहे हैं। विक्रमादित्य भी खुल कर मुख्यमंत्री के खिलाफत कर रहे हैं। धर्मपुर के कांग्रेस विधायक चंद्रशेखर भी अपनी ताजपोशी की राह देख रहे हैं। बड़े नेता भी अपने को सरकार में शामिल देखना चाहते हैं, ऐसे में राहें आसान नहीं है।