तालिबान के कब्जे के बाद पहली बार भारत अफगानिस्तान पहुंचा है। बीते हफ्ते भारत की ओर से वरिष्ठ राजनयिक जेपी सिंह के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल अफगानिस्तान पहुंचा। वहां उन्होंने तालिबान के नेताओं से मुलाकात की। अफगानिस्तान की अंतरिम सरकार के विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी से भी भारतीय प्रतिनिधिमंडल मिला और अफगानिस्तान में चल रहे भारतीय परियोजनाओं का हाल देखा।

तालिबान के सत्ता संभालने से पहले भारत पर्दे के पीछे से उसके संपर्क में रहा है। अब सीधे भारत अफगानिस्तान में प्रवेश कर रहा है। भारत ने इसे मानवीय सहायता से जुड़ी मुलाकात बताया है। हालांकि, पाकिस्तान भारत के इस रुख से चौकन्ना हो गया है। पाकिस्तान अपने आप को हमेशा अफगानिस्तान का मददगार दिखाने में लगा रहा है, लेकिन असल में मदद हमेशा भारत ने की है। गेहूं, दवाई की मदद भारत ने की है।

सवाल उठता है कि भारत असल में तालिबान शासित अफगानिस्तान में प्रवेश क्यों करना चाहता है? अंतरराष्ट्रीय संबंधों में ज्यादातर फैसले लंबी अवधि के फायदों के लिए होते हैं। वरिष्ठ राजनयिकों के मुताबिक, भारत को भले ही फायदा मिले या न मिले, लेकिन नुकसान नहीं होना चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि भारत के दो पड़ोसी, चीन और पाकिस्तान – अफगानिस्तान में अपनी पकड़ बनाने में लगे हैं। बीते हफ्ते गुरुवार को जब भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने तालिबान के नेताओं के साथ मुलाकात की, तो ठीक उसी दिन चीन के राजदूत डिंग यिनां ने भी तालिबान के उप विदेश मंत्री शेर मोहम्मद अब्बास से मुलाकात की। चीन की चिंता उसकी पश्चिमी सीमा और पाकिस्तान में उसकी परियोजनाएं हैं, जिन्हें आतंकवाद, अलगाववाद, और धार्मिक कट्टरवाद से नुकसान हो सकता है।

अमेरिका के अफगानिस्तान से निकलने के बाद अब अगर चीन और पाकिस्तान तालिबान के करीब हो जाते हैं तो इसका सबसे बड़ा नुकसान भारत को ही होगा। तालिबान के जरिए पाकिस्तान भारत में आतंकवाद बढ़ा सकता है, तो वहीं चीन आर्थिक मोर्चे पर भारत को नुकसान पहुंचा सकता है। पुराने तलिबान के साथ भारत का अनुभव अच्छा नहीं रहा है, लेकिन नया तालिबान लगातार इस बात को कहता रहा है कि वह भारत के खिलाफ अपनी जमीन को इस्तेमाल नहीं होने देगा। इसके साथ ही तालिबान 2.0 ने कहा है कि वह कश्मीर जिहाद को समर्थन नहीं देगा।

पाकिस्तान इस मुलाकात से चौकन्ना हो गया है। क्योंकि भारत तालिबान को पाकिस्तान का प्राक्सी बताता रहा है। पाकिस्तानी अखबार ट्रिब्यून के मुताबिक एक अधिकारी ने कहा कि भारत का हृदय परिवर्तन दिखाता है कि वह तालिबान के अस्तित्व को स्वीकार कर रहा है। अधिकारी ने ये भी माना कि दोनों देशों के बीच बातचीत को बारीकी से देखा जा रहा है। अधिकारी ने कहा कि अगर भारत अफगानिस्तान में अपना दूतावास खोलता है तो ये तालिबान विरोधी ताकतों को एक करारा जवाब है।

पाकिस्तान ये भी मान रहा है कि ये मुलाकात मानवीय मदद से कहीं ज्यादा और महत्त्वपूर्ण थी, लेकिन भारत ने जानबूझकर इसे लेकर कोई शोरशराबा नहीं किया। एक पाकिस्तानी अधिकारी के मुताबिक, अफगानिस्तान में भारत के आने से कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन इसमें हमारे हित प्रभावित न हों। दूतावास के खुलने में कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन अफगान-पाकिस्तान सीमा पर भारतीय वाणिज्यिक दूतावास की कोई जरूरत नहीं है।

दूसरी ओर, भारतीय दल ने अपनी यात्रा के दौरान उन सभी जगहों के दौरे किए, जहां पर भारतीय सहायता से कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। भारत ने पूर्ववर्ती सरकार के दौर में अफगान संसद और हेरात प्रांत में मित्रता बांध का निर्माण किया था। इससे पहले तालिबान के विदेश मंत्री अमीर खान मुत्ताकी ने दावा किया था कि अगर भारत काबुल स्थित अपने दूतावास को खोलता है तो उसकी सुरक्षा पर विशेष ध्यान दिया जाएगा। मुत्ताकी ने भारत पहुंच रहे ड्रग्स का ठीकरा अमेरिका के सिर पर फोड़ा था।

तालिबान ने जताई उम्मीद

तालिबानी विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी ने कहा कि भारत में मादक पदार्थों की तस्करी अफगानिस्तान में अमेरिकी शासन के दौरान नशीले पदार्थों के उत्पादन में वृद्धि का परिणाम है। तालिबानी नेता अनस हक्कानी ने भी भारत की दिल खोलकर तारीफ की थी। अनस ने कहा कि भारत के लिए अफगानिस्तान के दरवाजे हमेशा खुले हुए हैं। हक्कानी ने क्रिकेट के जरिए भी भारत और अफगानिस्तान के संबंधों को मजबूत करने पर भी पूरा जोर दिया था।