Surya Hansda Encounter: झारखंड में आदिवासी नेता सूर्या हांसदा की मौत को लेकर ढेर सारे सवाल उठ रहे हैं। सूर्या हांसदा को 10 अगस्त की शाम को पुलिस ने एनकाउंटर में मार गिराया था। झारखंड के गोड्डा जिले के बोआरीजोर ब्लॉक में स्थित सूर्या हांसदा के गांव लालमटिया में मातम छाया हुआ है। बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी ने कहा है कि हांसदा की मौत की सीबीआई जांच होनी चाहिए।

आइए, जानते हैं कि कौन थे सूर्या हांसदा और उनकी मौत को लेकर पुलिस और हांसदा के परिवार वालों का क्या कहना है?

आदिवासी बच्चों के लिए स्कूल चलाते थे हांसदा

सूर्या हांसदा अपने गांव में आदिवासियों के कल्याण के लिए काम करते थे। वह आदिवासी बच्चों को फ्री शिक्षा और आवास देने वाला एक स्कूल चलाते थे। 45 साल के हांसदा कई राजनीतिक दलों में रहे। उनके खिलाफ 25 आपराधिक मामले भी दर्ज थे। इनमें हत्या, हत्या के प्रयास, फिरौती के लिए अपहरण, जबरन वसूली, दंगा फैलाने के आरोपों से जुड़े मुकदमे शामिल हैं।

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हांसदा के छोटे भाई प्रमोद कहते हैं, “सूर्या की हत्या सिर्फ एनकाउंटर नहीं है यह आदिवासी बच्चों के पूरे भविष्य का एनकाउंटर है।” उनके पिता राजा हांसदा लालमटिया गांव के मुखिया रहे थे और आदिवासियों को अच्छी शिक्षा दिलाना चाहते थे।

सूर्या हांसदा ने गांव के ही एक मिशनरी स्कूल से पढ़ाई की थी और बाद में गोड्डा के कॉलेज में दाखिला लिया लेकिन उन्होंने अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी। साल 2000 में झारखंड जब बिहार से अलग हुआ तो उन्हें एक कंपनी में कर्मचारी की नौकरी मिली। यह नौकरी इसलिए मिली थी क्योंकि सरकार ने उनके परिवार की एक एकड़ जमीन कब्जे में ले ली थी।

उनके भाई प्रमोद बताते हैं कि आदिवासियों के मुद्दों को उठाने की वजह से ही उन्हें उग्रपंथी करार दे दिया गया था। प्रमोद कहते हैं कि बच्चों ने न सिर्फ टीचर बल्कि एक पिता को भी खो दिया। 2009 में गांव के एक परिवार से दुश्मनी होने के बाद पुलिस ने उन्हें 2009 में गिरफ्तार कर लिया था।

हांसदा ने लड़े कई चुनाव, नहीं मिली जीत

हांसदा ने इसके बाद चुनाव लड़ने का फैसला किया। उन्होंने झारखंड विकास मोर्चा के टिकट पर 2009, 2014 में बोरियो विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा। 2019 में जब झारखंड विकास मोर्चा का बीजेपी में विलय हुआ तो उन्होंने बीजेपी के टिकट पर भी चुनाव लड़ा। 2024 में जब उन्हें टिकट नहीं मिला तो वह झारखंड लोकतांत्रिक क्रांतिकारी मोर्चा में शामिल हो गए और इस पार्टी से चुनाव लड़ा। हांसदा कभी भी चुनाव जीतकर विधानसभा नहीं पहुंच सके।

किताबों से लेकर यूनिफॉर्म तक सब फ्री

हांसदा के स्कूल का नाम ‘चांद भैरव राजा राज’ था। यहां पर न सिर्फ गोड्डा के आसपास के जिलों के बल्कि बिहार से भी बच्चे आते हैं। हांसदा की पत्नी सुशीला बताती हैं कि किताबों से लेकर यूनिफॉर्म तक उनके पति ने सब कुछ मुफ्त दिया।

पुलिस ने क्या कहा?

एनकाउंटर को लेकर उठ रहे सवालों के बीच पुलिस का कहना है कि जब पुलिस उन्हें पकड़ कर ले जा रही थी तभी उनके साथियों ने घात लगाकर हमला किया। पुलिस की जवाबी गोलीबारी में हांसदा की मौत हो गई। पुलिस ने दावा किया है कि उनके पास से हथियार और गोला बारूद मिले। पुलिस इंस्पेक्टर बलदेव यादव का कहना है कि खदान से जुड़े विवाद के मामलों में कई बार हांसदा का नाम सुनाई देता था।

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सीबीआई जांच की मांग

बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी ने कहा कि पुलिस के बयान अलग-अलग हैं और इस मामले से सीबीआई की जांच होनी चाहिए। हांसदा की पार्टी जेएलकेएम ने सवाल पूछा है कि अगर वह आरोपी थे तो उन्हें अदालत में पेश क्यों नहीं किया गया, मुकदमा क्यों नहीं चलाया गया और उन्हें एनकाउंटर में क्यों मार दिया गया?

हांसदा की मां नीलमणि मुर्मू गांव की मुखिया भी हैं। वह कहती है कि उन्हें उनके बेटे को पुलिस मुठभेड़ में मार दिया गया। उनका कहना है कि हांसदा टाइफाइड से पीड़ित थे और अपनी मौसी के घर पर थे, वहीं से उन्हें गिरफ्तार किया गया।

नीलमणि ने कहा कि हांसदा के हाथ और पैर बांध दिए गए थे। वह सवाल उठाती हैं कि जब हांसदा बीमार था और उसके हाथ-पांव बंधे थे तो वह भाग कैसे सकता था? उसके शरीर पर चोट के निशान थे। नीलमणि कहती हैं कि उसका सिर्फ एक ही दोष था कि वह आदिवासी था औ उसके खिलाफ अभी तक कोई भी आरोप साबित नहीं हुआ है।

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