गोधरा रेलवे स्टेशन से कुछ ही मीटर की दूरी पर पटेल नी चाली यानी कि पटेलों का घर है। अब्दुल सत्तार पटेल भी पटेल नी चाली में ही रहते थे। वह साल 1954 में पाकिस्तान की यात्रा करते हैं और उनका पासपोर्ट उनके ससुर ने छीन लिया था। इसके बाद जब वह वापस भारत आते हैं तो उनको अपनी नागिरकता साबित करने के लिए छह साल तक कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ती है। अब्दुल सत्तार की यह कानूनी जंग आगे चलकर दूसरे मामलों में एक मिसाल भी बनी।

अब्दुल सत्तार हाजी इब्राहिम पटेल का जन्म 1936 में पटेल नी चाली में हुआ था। वह पोलन बाजार के एक स्कूल में पढ़ाई करते थे। अब्दुल सत्तार ने अपनी पूरी जिंदगी पटेल नी चाली में ही बिताई। वह साल 1954 से लेकर 1957 तक अपनी पत्नी को पाकिस्तान से लेने के लिए गए थे। इन तीन सालों में ही उनकी नागरिकता पर सवाल उठे। 2019 में उनकी मृत्यु हो गई।

सुप्रीम कोर्ट तक ले गए अपनी लड़ाई

अब्दुल सत्तार पटेल ने दावा किया कि वे संविधान के अनुच्छेद 5 के तहत भारत के नागरिक हैं और इस लड़ाई को सुप्रीम कोर्ट तक ले गए। 1964 में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने तय किया कि वे वास्तव में पटेल नी चाली में रह सकते हैं। अब्दुल सत्तार हाजी इब्राहिम पटेल बनाम गुजरात राज्य का फैसला भले ही ज्यादा चर्चा में ना रहा हो, लेकिन इसने इस बात का उदाहरण दिया कि पटेल जैसे साधारण लोगों ने संविधान में अपनी असाधारण आस्था कैसे रखी। गोधरा में मौजूद वकील यूसुफ चरखा ने कहा कि यह एक ऐतिहासिक मामला रहा था। इसमें यह प्रावधान किया गया कि केंद्र सरकार को पहले किसी शख्स की नागरिकता तय करनी होगी। उसके बाद ही उस व्यक्ति को विदेशी माना जा सकता है और उसके खिलाफ डिपोर्टेशन की कार्रवाई की जा सकती है।

गोधरा कांड पर अमेरिकी पॉडकास्टर के सवाल पर पीएम मोदी ने दिया जवाब

आखिर क्या था पूरा मामला?

2002 के दंगों पर जस्टिस नानावटी-मेहता जांच आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक, गोधरा में देश के बंटवारे के बाद 1948 में दंगे भड़क गए थे। शुरू में मुसलमानों ने हिंदुओं के 869 घर जला दिए। उसके बाद हिंदुओं ने मुसलमानों के 3,071 घर जला दिए। करीब 11,000 घांची मुसलमानों ने गोधरा छोड़ दिया। उनमें से कुछ पाकिस्तान चले गए। 1948 में पलायन करने वालों में पटेल के ससुर यूसुफ हाजी इस्माइल भी शामिल थे। वह अपनी बेटी यानी पटेल की पत्नी के साथ चले गए थे। बता दें कि पटना के कराची में भी एक गोधरा कॉलोनी है।

इसके कई लोग भारत में पिछले कुछ सालों में आकर बसे हैं। आज भी गुजरात के गोधरा में रहने वाले परिवारों के बीच में अच्छे संबंध हैं। गुजरात के गोधरा से कराची का गोधरा दिल्ली जितनी ही दूर है। कोर्ट के रिकॉर्ड के मुताबिक, छह साल बाद पटेल ने पासपोर्ट के लिए आवेदन दिया था और अपनी पत्नी को वापस लाने के लिए कराची गए थे। वह अपनी पत्नी को वापस भारत लाना चाहते थे, लेकिन उन्होंने कोर्ट को बताया कि उनका पासपोर्ट उनके ससुर ने जानबूझकर छीन लिया। ऐसा उन्होंने इस वजह से किया ताकि वह भारत वापस ना जा सके और कराची में ही रुका रहे।

पटेल किसी भी हाल में भारत वापस लौटना चाहते थे। उन्होंने इसके लिए कई लोगों से मदद भी मांगी। पटेल को सलाह दी गई कि जब तक वह पाकिस्तान का पासपोर्ट हासिल नहीं कर लेते तब तक वह भारत वापस नहीं जा सकेंगे। उन्होंने पाकिस्तान के पासपोर्ट के लिए आवेदन दिया। किसी तरह उन्हें पाकिस्तान का पासपोर्ट मिल गया और 13 अक्टूबर 1957 को भारत लौट आए। यह साफ नहीं है कि पटेल अपनी पत्नी के साथ भारत लौटे या नहीं, लेकिन उन्होंने गोधरा में ही रहने फैसला लिया। यहां उनके माता-पिता और भाई-बहन रहते थे। उन्होंने अपनी वापसी के लिए छह साल तक कानूनी संघर्ष किया।

गोधरा कांड के 14 गवाहों की हटाई गई सुरक्षा

पटेल के पास में एक रेजिडेंशियल परमिट था। वह भी साल 1958 में खत्म हो गया। पटेल पर अपने रेजिडेंशियल परमिट की अवधि से ज्यादा वक्त तक रहने के लिए विदेशी अधिनियम की धारा 14 के तहत आरोप लगाया गया। पटेल ने तर्क दिया कि उन्होंने अगस्त 1954 से पहले पाकिस्तान में कदम नहीं रखा था। उन्होंने कोर्ट को बताया कि उनके माता-पिता गोधरा में पैदा हुए थे और उनके परिवार ने अपनी पूरी जिंदगी उसी शहर में बिताई है। उन्होंने स्कूल के रिकॉर्ड समेत 1945 तक गोधरा में रहने के सबूत भी पेश किए।

सुप्रीम कोर्ट ने पलटा हाईकोर्ट का फैसला

निचली अदालत ने तो उन्हें बरी कर दिया था, लेकिन गुजरात हाईकोर्ट ने उन्हें एक साल की जेल की सजा सुनाई थी। पटेल ने इस फैसले के खिलाफ अपील की और सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। सुप्रीम कोर्ट ने न केवल हाई कोर्ट के फैसले को पलट दिया, बल्कि उनके मामले को फिर से विचार करने के लिए मजिस्ट्रेट के पास वापस भेज दिया।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पटेल ने पाकिस्तानी पासपोर्ट हासिल करने के अपने आचरण को इस आधार पर क्लियर किया था कि चूंकि वह कराची में थे, इसलिए वह मजबूर थे और उन्होंने ऐसा रास्ता अपनाया जो उन्हें भारत वापस आने के लिए इकलौता रास्ता लगा। लेकिन पटेल के वंशजों का कहना है कि उन्हें इस मामले के बारे में बहुत कम जानकारी है। पटेल के बारे में एक रिश्तेदार का कहना है कि वह बहुत गरम दिमाग वाले थे, लेकिन उन्होंने कभी भी अपने निजी संघर्षों को दूसरों को नहीं बताया।

शहर के घांची मुस्लिम समुदाय में पटेल को धूमा हाजी काका के नाम से जाना जाता है। एक स्थानीय निवासी जाबिर रशीदभाई ने कहा कि धूमा हाजी काका और उनके भाई का प्लाइवुड का कारोबार था। जबकि धूमा हाजी काका ने गुस्ल अनुष्ठान के लिए अपनी सेवाएं दीं। उनके भाई ने ताबूत के लिए फ्री में लकड़ी मुहैया कराई। एडवोकेट चरखा ने कहा, ‘एक बार जब मामला मजिस्ट्रेट कोर्ट में वापस भेज दिया गया, तो मेरा मानना ​​है कि इसके बाद कभी इस पर विचार नहीं किया गया और न ही इस पर कोई फैसला लिया गया। पटेल और उनकी पत्नी यहीं रहते रहे। उनकी पत्नी का निधन उनके निधन से कुछ साल पहले ही हो गया था।’

गुजरात दंगों पर अटल जी की राजधर्म वाली टिप्पणी स्कूली किताब से हटी

पटेल का मामला बना एक मिसाल

गोधरा में पटेल का स्कूल भी था। इसकी वजह से उन्हें अपनी डोमिसाइिल को साबित करने में काफी मदद की। यहां पर अब एक मस्जिद है। मस्जिद के सामने एक नया स्कूल भवन है, जिसका उद्घाटन 2013 में हुआ था। नागरिकता से जुड़े कई मामलों में पटेल के मामले को मिसाल के तौर पर पेश किया गया। 2013 में दिल्ली हाई कोर्ट ने भी 2013 के मुमताज परवीन बनाम राज्य मामले के सिलसिले में पटेल के फैसले पर भरोसा किया।

इसी तरह की अजीब परिस्थितियों में एक भारतीय नागरिक परवीन की शादी एक पाकिस्तानी नागरिक से हुई। इसने उसका भारतीय पासपोर्ट छीन लिया। घर वापस आने के लिए परवीन वीजा के साथ पाकिस्तानी पासपोर्ट पर भारत आई। विदेशी अधिनियम की धारा 14 के तहत दोषी ठहराए जाने के बाद दिल्ली हाईकोर्ट ने उसके पक्ष में दखल दिया। एक महीने की जेल की सजा को स्थगित रखने के अलावा, दिल्ली हाईकोर्ट ने उसके डिपोर्टेशन आदेश पर भी रोक लगा दी। इसके अलावा, कोर्ट ने केंद्र को यह भी निर्देश दिया कि वह इस बात पर फैसला ले कि क्या उसने भारतीय नागरिकता खो दी है या नहीं।