Lok Sabha Election: 2024 लोकसभा चुनाव के दिन जैसे-जैसे नजदीक आ रहे हैं, देश में सियासी पारा चढ़ता जा रहा है। सभी पार्टियां सियासी समीकरण कर गठबंधन करने के प्रयास में है। इसी कड़ी में कांग्रेस विपक्षी पार्टियों को लामबंद कर सामूहिक विपक्ष के रूप में चुनाव लड़ने की कोशिश में है। 26 पार्टियों के विपक्ष के नए गठबंधन का नाम ‘INDIA’ रखा गया है। वहीं बीजेपी ने भी चुनाव से पहले कमर कस ली है। उधर एनडीए का कुनबा भी बढ़कर 38 पार्टियों का हो गया है। इन सभी दलों का 5 राज्यों में खासा प्रभाव है। विपक्ष एक सीट एक उम्मीदवार के फॉर्मूले पर 2024 का लोकसभा चुनाव लड़ने के प्रयास में है। इससे पहले सभी दलों की नजर कोर्ट में चल रहे बड़े मामलों पर है। यह ऐसे मामले हैं जो चुनाव को लेकर राजनीतिक दलों की रणनीति पर बड़ा असर डाल सकते हैं।

प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट में बदलाव की मांग

वाराणसी के ज्ञानवापी मंदिर, मथुरा के श्रीकृष्ण जन्मभूमि के अलावा ताजमहल समेत कई धार्मिक और संरक्षित स्थलों को लेकर विवाद जारी है। प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 के खिलाफ बीजेपी नेता सुब्रमण्यन स्वामी ने सुप्रीम कोर्ट में एक और याचिका दाखिल की है। स्वामी ने कहा है कि उन्होंने पूरे एक्ट को चुनौती नहीं दी है, बल्कि केवल दो मंदिरों को इसके दायरे से बाहर रखने की मांग की है। स्वामी ने अपनी याचिका पर अलग से सुनवाई अपील की है, जिस पर कोर्ट जल्द ही इस पर फैसला ले सकता है। ताजा मामला ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर है। एक तरह यहां जिला अदालत के फैसले के बाद एएसआई का सर्वे शुरू हो चुका है। फिलहाल इस पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तहत रोक लगी हुई है। हिंदू पक्ष की मांग है कि उन्हें परिसर के भीतर शृंगार गौरी की नियमित पूजा करने की अनुमति दी जाए। मुस्लिम पक्षों का कहना है कि प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट के तहत इन मामलों की सुनवाई कोर्ट में नहीं हो सकती है। इसी विवाद को लेकर अगस्त 2021 में हिन्दू पक्ष वाराणसी कोर्ट पहुंच था और ज्ञानवापी परिसर के अंदर पूजा अर्चना करने की अनुमति मांगी थी। इस फैसले का असर उत्तर प्रदेश समेत पूरे देश में हो सकता है। बता दें कि बीजेपी ने अयोध्या में राम मंदिर बनने के बाद नारा दिया है कि अयोध्या तो झांकी है कशी-मथुरा बाकी है। उत्तरप्रदेश में कुल 80 लोकसभा सीट है और राजनीतिक विशेषज्ञ का मानन है कि दिल्ली का रास्ता यूपी होकर ही जाता है। बीजेपी ज्ञानवापी मुद्दे को सियासी रूप से भुनाना चाहती है। बीजेपी इस मुद्दे को हिन्दू आस्था और हिन्दू एकता से जोड़कर चुनाव में उतर सकती है।

दिल्ली बनाम केंद्र सरकार

दिल्ली सरकार बनाम केंद्र की शक्तियों को लेकर तकरार पिछले काफी समय से जारी है। एक लंबे कानूनी लड़ाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार को सिविल सेवकों को ट्रांसफर करने का अधिकार दिया था। इसके बाद केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ अध्यादेश ले आई। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने इस अध्यादेश के खिलाफ फिर से सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच इस केस पर सुनवाई करेगी। सुप्रीम कोर्ट को इस मामले में 2 सवालों के जवाब ढूंढने हैं। पहला सवाल है कि दिल्ली के लिए कानून बनाने की संसद की शक्तियों की सीमाएं क्या हैं? वहीं दूसरा सवाल यह है कि क्या संसद अपनी शक्तियों का इस्तेमाल कर प्रशासनिक सेवाओं पर नियंत्रण वापस लेने के संबंध में कानून बना सकती है। इस मामले को लेकर दिल्ली सीएम अरविंद केजरीवाल ने कई विपक्षी दलों से समर्थन मांगा था। कांग्रेस ने भी इस मामले में आम आदमी पार्टी का समर्थन किया है।

राहुल गांधी की सदस्यता का मामला

2019 लोकसभा चुनाव के दौरान कर्नाटक के कोलर में रैली को संबोधित करते हुए राहुल गांधी ने कहा था कि सभी चोरों के उपनाम मोदी ही क्यों है? इसी वाक्य से आहत होकर गुजरात सरकार में पूर्व मंत्री और बीजेपी नेता पूर्णेश मोदी ने सूरत कोर्ट में राहुल गांधी के खिलाफ मानहानि का केस दर्ज कर दिया था। मानहानि केस में सूरत कोर्ट ने राहुल गांधी को 2 साल की सजा सुनाई। इसके अगले दिन ही राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता रद्द कर दी गई थी। राहुल गांधी ने सूरत कोर्ट के फैसले के खिलाफ गुजरात हाईकोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर की। गुजरात हाईकोर्ट ने भी सूरत कोर्ट के फैसले को सही मानते हुए फैसले को बरकरार रखा। राहुल गांधी की ओर से इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल की गई है। मानहानि केस में सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई शुरू कर दी है। फिलहाल राहुल गांधी जमानत पर बाहर हैं। बता दें कि अगर राहुल गांधी को सुप्रीम कोर्ट से भी राहत नहीं मिलती है तो राहुल गांधी 2031 तक चुनाव नहीं लड़ पाएंगे। सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद कांग्रेस इस मुद्दे को 2024 चुनाव में इस्तेमाल कर सकती है। कांग्रेस विपक्षी एकता को मजबूत कर बीजेपी पर जोरदार हमला कर सकती है। कांग्रेस को इस मामले में लोगों से सहानुभूति की उम्मीद है।

आर्टिकल 370 पर सुनवाई जारी

केंद्र सरकार ने 5 अगस्त 2019 को संसद में जम्मू-कश्मीर से जुड़े अनुच्छेद-370 को निरस्त कर दिया गया था। इसके बाद जम्मू-कश्मीर से विशेष राज्य का दर्जा छिन गया। विशेष राज्य के तहत रक्षा, विदेश, वित्त और संचार मामलों को छोड़कर भारत के किसी भी कानून को लागू करने के लिए जम्मू-कश्मीर सरकार बाध्य नहीं होती थी। जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल-370 निरस्त करने के अध्यादेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 20 याचिकाएं दाखिल की गई हैं। सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच इस मामले की सुनवाई 2 अगस्त से शुरू करेगी। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एफिडेविट दाखिल कर कहा है कि आतंकवाद पर कंट्रोल के लिए जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को खत्म किया गया। केंद्र ने कहा कि आर्टिकल-370 हटने के बाद आतंकी नेटवर्क पूरी तरह से तबाह हो गया है। कश्मीर में पत्थरबाजी की घटना अब अतीत का हिस्सा है। आर्टिकल-370 पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला 2024 की सियासत बदल सकता है। बीजेपी इस मुद्दा को आगामी लोकसभा चुनाव में भुनाने की कोशिश करेगी। जनसंघ के समय से ही पार्टी मैनिफेस्टो में जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल-370 हटाने का मुद्दा शामिल रहा है। वहीं विपक्ष इस मुद्दे पर सरकार का विरोध कर रही है। विपक्ष का कहना है कि आर्टिकल-370 को जिस तरह से हटाया गया है वह प्रक्रिया गलत है।

जातीय जनगणना मामला

बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जातीय जनगणना का आदेश दिया था। इसका सर्वे भी शुरू हुआ था लेकिन हाईकोर्ट ने इस पर रोक लगा दी। पटना हाईकोर्ट में इस मुद्दे पर सुनवाई पूरी हो चुकी है। जल्द ही इस मामले में हाईकोर्ट अपना फैसला सुना सकता है। हाईकोर्ट का फैसला भले की किसी पक्ष में आए लेकिन यह मामला सुप्रीम कोर्ट में जाना तय माना जा रहा है। हाईकोर्ट के फैसले के बाद यह मुद्दा उत्तर भारत की राजनीति में उबाल ला सकता है। विपक्षी गठबंधन इस मुद्दे पर सरकार को घेरना चाहता है। केंद्र सरकार ने जुलाई 2022 में संसद में कहा था कि वह जातीय जनगणना नहीं कराएगी। जातीय जनगणना का मुद्दा अन्य पिछड़ा जातियों (OBC) पर सीधे तौर से प्रभाव डालता है। सीएसडीएस के मुताबिक 2014 में ओबीसी समुदाय का 34 फीसदी और 2019 में 44 फीसदी वोट बीजेपी को मिला था। हिंदी हर्टलैंड में ओबीसी समुदाय का दबदबा है और जिस भी गठबंधन को ओबीसी समुदाय का समर्थन मिलेगा उस पार्टी का लोकसभा चुनाव जीतना तय माना जाएगा। राजनीतिक पार्टियों का कहना है कि जातीय जनगणना से वेलफेयर स्कीम को लागू करने में आसानी होगी। वहीं जानकारों का मानना है कि इससे आरक्षण का स्ट्रक्चर प्रभावित हो सकता है। जातीय जनगणना के बाद ओबीसी जाती आरक्षण में अपनी दावेदारी बढ़ाने की मांग कर सकती हैं।