जम्मू-कश्मीर से धारा 370 को हटे चार साल के करीब हो चुके हैं। कश्मीर में स्थिति समय के साथ सामान्य हो गई है, लेकिन कई पार्टियां आज भी इसके विरोध में खड़ी हैं। ऐसे ही कुछ नाराज लोगों ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था और इस फैसले की संवैधानिक मान्यता पर सवाल उठा दिए थे। अब अगले महीने 2 अगस्त से सर्वोच्च अदालत में इस मुद्दे पर सुनवाई होने जा रही है। अब इस सुनवाई को सही तरह से तभी समझा जा सकता है, जब सभी बड़ी पार्टियों का इस मुद्दे पर रुख पता हो।
कांग्रेस
बात जब भी धारा 370 पर आती है, कांग्रेस की विचारधारा इस पर काफी कन्फ्यूज रही है। ऐसा इसलिए क्योंकि पहले पार्टी इसका विरोध कर रही थी, लेकिन बाद में देश का माहौल देखकर उसने सुरक्षित खेलने का सोचा। इसी वजह से कई मौकों पर पार्टी ने जम्मू-कश्मीर के लिए दोबारा पूर्ण राज्य की बात तो की, लेकिन धारा 370 पर चुप्पी साध ली। इसे ऐसे समझ सकते हैं कि पहले कांग्रेस कुछ सयम के लिए कश्मीर की उस गुपकार गठबंधन का हिस्सा थी जिसने साफ कर दिया था कि 370 को वापस लाया जाएगा। लेकिन बाद में कांग्रेस ने खुद को उस गठबंधन से ही दूर कर लिया।
इसी कड़ी में रायपुर में जो कांग्रेस का अधिवेशन हुआ था, वहां पर पार्टी ने पूर्ण राज्य के दर्जे पर तो बात की, लेकिन 370 पर कुछ भी बोलने से बचा गया। ये बताने के लिए काफी रहा कि इस मुद्दे पर कांग्रेस का स्टैंड क्लियर नहीं है।
आम आदमी पार्टी
आप संयोजक अरविंद केजरीवाल कई मुद्दों पर मोदी सरकार के खिलाफ आवाज बुलंद करते हैं। लेकिन बात जब 370 को हटाने की आई थी, आप ने भी इस फैसले का स्वागत किया था। एक ट्वीट कर यहां तक कहा था कि वे इस फैसले का समर्थन करते हैं और उम्मीद करते हैं कि अब घाटी में सुख-शांति स्थापित होगी। यानी कि पार्टी का स्टैंड एकदम साफ था। बड़ी बात ये है कि इतने सालों बाद भी आम आदमी पार्टी के रुख में कोई बदलाव नहीं आया है।
जनता दल यूनाइटेड
कुछ समय पहले तक एनडीए का हिस्सा रही जेडीयू ने इस मुद्दे पर पार्टी का साथ नहीं दिया था। जिस समय इस बिल को सदन में पेश किया गया था, जेडीयू ने वॉकआउट किया था, यानी कि उसने वोट ही नहीं दिया। बाद में जेडीयू नेता केसी त्यागी ने तर्क दिया था कि जेपी और राम मनोहर लोहिया की विचारधारा को समझते हुए पार्टी ने ये फैसला लिया था। ये अलग बात है कि बाद में पार्टी ने कहा था कि जो भी कानून पारित हुआ है, सभी को उसका सम्मान करना चाहिए।
तृणमूल कांग्रेस
कांग्रेस की तरह ममता बनर्जी की पार्टी का स्टैंड भी ज्यादा स्पष्ट नहीं है। इसका कारण ये है कि ममता बनर्जी ने खुद को हमेशा उस डिबेट से दूर रखा जहां 370 को सही-गलत को लेकर बात हुई। उनकी तरफ से तो बस तर्क ये दिया गया कि डर के माहौल में, बंदूक दिखाकर इसे पारित करवाया गया। उन्होंने उस बात पर नाराजगी जाहिर की थी कि कई कश्मीरी नेताओं को नजरबंद कर दिया गया था। उन्होंने यहां तक कहा था कि अभी भी कई नेताओं को लेकर कोई जानकारी नहीं है।
DMK
डीएमके ने धारा 370 को हटाना लोकतंत्र की हत्या बता दिया था। पार्टी का ये स्टैंड शुरुआत से कायम है। उसने जोर देकर कहा है कि लोगों से बिना बात किए इस तरह का फैसला लिया गया। इसके अलावा डीएमके ने इस बात पर भी नाराजगी जाहिर की कि AIDMK ने भी 370 वाले बिल का समर्थन कर दिया। वैसे डीएमके के अलावा लेफ्ट पार्टियों ने भी शुरुआत से ही इस फैसले का विरोध किया है।