उच्चतम न्यायालय ने सोमवार (19 सितंबर) को अहमदाबाद की एक निचली अदालत को वर्ष 2002 गुलबर्ग सोसायटी नरसंहार की कार्यवाही पूरी करने के लिए तीन और महीने का समय दिया। इन दंगों में कांग्रेस के पूर्व सांसद एहसान जाफरी और 67 अन्य की मौत हो गई थी। हालांकि प्रधान न्यायाधीश एचएल दत्तू की अध्यक्षता वाली पीठ ने आरोपियों को जमानत देने से इंकार कर दिया। आरोपियों ने इस आधार पर राहत मांगी थी कि चूंकि मामले की सुनवाई लंबी होती जा रही है, वे जेल से रिहा होने के हकदार हैं। जिला न्यायाधीश पीबी देसाई ने शीर्ष अदालत से इस मामले की सुनवाई पूरी करने के लिए तीन और महीने का समय मांगा थी जबकि आरोपियों ने उसे पत्र लिखकर कहा था कि कार्यवाही पूरी होने में देरी के कारण उन्हें जमानत मिलनी चाहिए क्योंकि वे 10 साल से जेल में हैं।

न्यायमूर्ति एमबी लोकुर और न्यायमूर्ति एमवाई इकबाल की पीठ ने गुजरात उच्च न्यायालय के 23 दिसंबर 2013 के उस आदेश में हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया, जिसमें वर्ष 2002 के दीपदा दरवाजा दंगों से जुड़े मामले में दोषी करार और उम्रकैद की सजा पाने वाले सभी 21 लोगों को सशर्त जमानत मंजूर की गई थी। इन दंगों में एक ही परिवार के 11 लोग मारे गये थे। इस मामले में दोषियों की अपील लंबित है। पीठ ने कहा कि शीर्ष अदालत में अपील दायर करने वाले पीड़ित के रिश्तेदार जमानत रद्द करने की मांग को लेकर इस मामले की जल्द सुनवाई के लिए उच्च न्यायालय से गुहार लगा सकते हैं। हालांकि पीठ ने उच्च न्यायालय को प्राथमिकता के आधार पर इस मामले पर विचार करने का निर्देश देने से इंकार कर दिया और कहा कि ऐसा निर्देश देना ‘उचित नहीं होगा।’

उच्च न्यायालय ने कहा था कि अगर कोई भी आरोपी किसी शर्त का उल्लंघन करता है तो राज्य प्राधिकार या एसआईटी किसी भी आरोपी की जमानत रद्द करने की याचिका दायर कर सकती है। यह मामला गोधरा ट्रेन अग्निकांड के बाद गुजरात के मेहसाणा जिले के विसनगर कस्बे के दीपदा दरवाजा क्षेत्र में 28 फरवरी 2002 को 65 साल की एक महिला और दो बच्चों सहित एक ही परिवार के 11 सदस्यों की हत्या से संबंधित है। यह उन नौ मामलों में से एक है, जिसकी जांच उच्चतम न्यायालय द्वारा नियुक्त विशेष जांच दल कर रहा है।