पूर्वी पाकिस्तान (आज के बांग्लादेश) के समुद्र तट से 12 नवंबर 1970 को एक तूफान टकराया था, जिसे बाद में विश्व मौसम विज्ञान संगठन द्वारा विश्व का सबसे विनाशकारी उष्ण कटिबंधीय चक्रवात घोषित करना पड़ा। इससे मची तबाही ने पूर्वी पाकिस्तान में एक गृह युद्ध छेड़ दिया और आखिरकार भारत के सैन्य हस्तक्षेप के बाद बांग्लादेश के रूप में एक नए राष्ट्र का उदय हुआ।

किसी चक्रवात के राजनीतिक और सामाजिक परिणाम और इतिहास की धारा बदलने का यह एक अन्यतम उदाहरण है। तब चक्रवात ‘भोला’ ने 300,000 से 500,000 लोगों की जान ली, जिनमें से ज्यादातर की मौत बंगाल की खाड़ी के तट पर स्थित निचले इलाकों में हुई। लाखों लोग रातों-रात इसके शिकार हो गए।

जानकारों के मुताबिक, अपर्याप्त राहत से असंतोष बढ़ा, जिसका अत्यधिक राजनीतिक प्रभाव पड़ा, सामाजिक अशांति पैदा हुई और गृह युद्ध हुआ तथा नया राष्ट्र सृजित हुआ। विशेषज्ञों का कहना है कि यह दस्तावेजों में उपलब्ध सर्वाधिक विनाशकारी प्राकृतिक आपदाओं में शामिल है और 20वीं सदी का सबसे भयावह प्राकृतिक आपदा है।

तूफान के तट से टकराने से ठीक पहले, रेडियो पर बार-बार विवरण के साथ ‘रेड-4, रेड-4’ चेतावनी जारी की गई। हालांकि, लोग चक्रवात शब्द से परिचित थे, लेकिन उन्हें यह नहीं पता था कि रेड-4 का मतलब ‘रेड अलर्ट’ है। वहां 10 अंकों वाली चेतावनी प्रणाली का इस्तेमाल किया जाता था, जिसमें तूफान की भयावहता को बताया जाता था।

पश्चिमी पाकिस्तान (आज के पाकिस्तान) में जनरल याह्या खान के नेतृत्व वाली तत्कालीन सरकार ने दावा किया था कि करीब 191,951 शव बरामद किए गए और करीब 150,000 लोग लापता बताए गए। विश्लेषकों ने दलील दी कि राजनीतिक उथल-पुथल और अलगाव के लिए 1970 के चक्रवात को श्रेय दिया जाना चाहिए।

उन्होंने कहा कि ‘भोला’ ने पूर्वी पाकिस्तान में मौजूद सामाजिक-राजनीतिक और आर्थिक तनाव को बढ़ाया। 1970 के चक्रवात ने पूर्वी पाकिस्तान की राजनीतिक संरचना को नहीं बदला, बल्कि इसने पूर्वी पाकिस्तान की स्वायत्तता की मांग को हवा दी। अवामी लीग के नेता शेख मुजीब ने चक्रवात भोला के पीड़ितों के लिए आवाज उठाई। इस तरह, प्राकृतिक आपदा को राजनीतिक रंग दे दिया गया।