दिवाली नज़दीक आते ही राजधानी दिल्ली में प्रदूषण हर साल की तरह एक बड़ा मुद्दा बन जाता है। पिछले कई वर्षों का रुख देखें तो दिवाली से कुछ दिन पहले ही हवा ज़हरीली होने लगती है। इसके बाद दिवाली वाले दिन और उसके अगले दिन हालात और भी चिंताजनक स्तर पर पहुंच जाते हैं। सड़कों पर लोगों के चेहरे पर मास्क दिखने लगते हैं और घरों में एयर प्यूरीफायर चलाना आम बात बन जाती है।
इस बार भी दिवाली करीब है और सुप्रीम कोर्ट ने ग्रीन क्रैकर्स पर से प्रतिबंध हटाने का फैसला दे दिया है। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि क्या इस दिवाली फिर वही प्रदूषण की मार देखने को मिलेगी, या सरकार की नीतियाँ जमीन पर असर दिखाते हुए वायु गुणवत्ता को नियंत्रण में रख पाएँगी?
पिछले कुछ वर्षों का रिकॉर्ड देखें तो साफ समझ आता है कि दिवाली के समय दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण किस स्तर पर पहुँच जाता है। इसे स्पष्ट करने के लिए पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड और अन्य संस्थानों की रिपोर्ट्स के आधार पर एक टेबल तैयार की गई है, जिसमें यह दर्शाया गया है कि दिल्ली में दिवाली वाले दिन और उसके अगले दिन हवा की गुणवत्ता कैसी रहती है।
साल | दिवाली वाले दिन AQI | दिवाली के अगले दिन AQI |
2015 | 342 | 360 |
2016 | 431 | 445 |
2017 | 319 | 403 |
2018 | 281 | 390 |
2019 | 337 | 368 |
2020 | 414 | 435 |
2021 | 382 | 462 |
2022 | 312 | 303 |
2023 | 218 | 358 |
2024 | 339 | 362 |
अब ऊपर दी गई टेबल से साफ समझ आ रहा है कि दिल्ली में प्रदूषण का स्तर गंभीर श्रेणी में तो कई बार गया है। पटाखों पर जब प्रतिबंध भी लगा, तब भी हालात कुछ खास सुधरे नहीं। इसी टेबल से समझ आता है कि दिवाली के अगले दिन AQI में औसतन 15 फीसदी की बढ़ोतरी हो जाती है। 10 सालों का ट्रेंड बता रहा है कि अगर दिवाली से एक दिन पहले राजधानी में हवा सिर्फ खराब या बहुत खराब श्रेणी में है तो अगले दिन यानी कि दिवाली दिन वो गंभीर श्रेणी में पहुंच जाती है।
यहां पर एक दूसरी टेबल से समझ लेते हैं कि कितना AQI होना कितना खतरनाक होता है-
श्रेणी | AQI सीमा |
अच्छा | 0 – 50 |
संतोषजनक | 51 – 100 |
मध्यम | 101 – 200 |
खराब | 201 – 300 |
बहुत खराब | 301 – 400 |
गंभीर | 401 – 500 |
अब एक सवाल सभी के मन में आ रहा है- प्रदूषण की इतनी चर्चा हो रही है, पटाखों पर भी बहस है, लेकिन असल में इन पटाखों का प्रदूषण में कितना योगदान है? क्या पटाखे ही असली विलेन हैं या दूसरे फैक्टर दिवाली के समय दिल्ली की हवा को जहरीली बना देते हैं?
अब एयर कंट्रोल स्टार्टअप Airvoice ने एक रिपोर्ट तैयार की थी। उस रिपोर्ट में बताया गया कि पिछले साल दिवाली पटाखों के बाद देश के कई हिस्सों में प्रदूषण 875 फीसदी तक बढ़ गया था। उस रिपोर्ट में सबसे ज्यादा जिक्र PM2.5 का हुआ था। बताया गया था कि दिल्ली, उत्तर प्रदेश और हरियाणा में PM2.5 का स्तर सबसे ज्यादा रहा। कई जगह तो प्रदूषण का स्तर National Ambient Air Quality Standards (NAAQS) के मानकों से भी नौ गुना ज्यादा रहा। नीचे दी गई टेबल से समझते हैं कि 2019 से 2023 के बीच दिवाली की रात औसत PM2.5 स्तर कितना रहा-
राज्य | PM2.5 |
नई दिल्ली | 350 |
उत्तर प्रदेश | 260 |
हरियाणा | 210 |
बिहार | 170 |
पंजाब | 170 |
पश्चिम बंगाल | 110 |
महाराष्ट्र | 90 |
अब इस दिवाली ग्रीन क्रैकर्स को दिल्ली-एनसीआर में हरी झंडी दिखाई गई है। इन पटाखों की खासियत यह है कि जलने पर इनमें से जलवाष्प या धूल दबाने वाले तत्व निकलते हैं, जिससे वायु में पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) की मात्रा घट जाती है। प्रयोगशाला परीक्षणों में पाया गया कि इनसे लगभग 30 फ़ीसदी कम उत्सर्जन होता है। वायु प्रदूषण को घटाने के अलावा, इनका ध्वनि स्तर भी कम होता है। नीचे दी गई टेबल से हम आसानी से पुराने और ग्रीन क्रैकर्स के अंतर को समझ सकते हैं-
तुलना का आधार | पुराने पटाखे | ग्रीन पटाखे |
एलुमिनियम | 34% | 29% |
सल्फर | 9% | 5% |
पोटैशियम नाइट्रेट | 57% | 28% |
PM उत्सर्जन | ज़्यादा | कम से कम 30% कम |
कीमत (औसत) | ₹132 | ₹95 |
वैसे दिवाली के समय जिस तरह से सिर्फ पटाखों को विलेन की तरह पेश किया जाता है, असल आंकड़े वहां भी एक अलग ही कहानी बयां करते हैं। तमाम स्टडी, रिपोर्ट मौजूद हैं जो बताती हैं कि राजधानी दिल्ली में जहरीली हवा के कई दूसरे कारण भी हैं। बात चाहे वाहनों की हो, निर्माण कार्य की हो या फिर पराली की, उन फैक्टरों की वजह से हवा ज्यादा प्रदूषित हो जाती है। दिवाली के पटाखे तो सिर्फ पहले से खराब स्थिति में थोड़ा और योगदान देते हैं। नीचे दी गई टेबल से इस बात को भी समझ लेते हैं-
प्रदूषण का स्रोत | अनुमानित योगदान (प्रतिशत में) |
वाहन/ट्रैफिक | 17% – 39% |
निर्माण गतिविधियां | ~8% (PM2.5) |
निर्माण/ सड़क धूल | 35% – 66% (PM10) |
पराली/स्टबल बर्निंग | 8% – 20% |
घरेलू और कचरा जलाना | 8% – 15% |
औद्योगिक उत्सर्जन | 10% – 20% |
ऊपर दी गई टेबल से एक बात स्पष्ट है, राजधानी में प्रदूषण के कई दूसरे कारण भी हैं, सिर्फ पटाखों पर प्रतिबंध लगाने से कुछ नहीं होने वाला। सुप्रीम कोर्ट ने भी इन्हीं बिंदुओं को ध्यान में रखते हुए दिल्ली-एनसीआर में ग्रीन क्रैकर्स से प्रतिबध हटाया है। इन्हीं ग्रीन क्रैकर्स के बारे में पूरी जानने के लिए इस खबर का रुख करें