बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव का बचपन बेहद आर्थिक तंगी में बीता था। गोपालगंज जिले के फुलवरिया गांव में जन्में लालू के पिता कुंदन राय ग्वाला थे और दूध-दही का व्यापार करते थे। हालांकि इससे इतनी आमदनी नहीं होती थी कि ठीक तरीके से परिवार का खर्च चल सके। पूरा परिवार कच्चे मकान में रहा करता था और बरसात के दिनों में यह चूने लगता था।

ठंड के दिनों में भी किसी तरह गुजारा होता है। पुआल की रजाई से काम चलाना पड़ता। लालू ने अपनी आत्मकथा ‘गोपालगंज से रायसीना’ में लिखा है कि बचपन में उनके और उनके भाई-बहनों के पास दो जोड़ी कपड़े ही हुआ करते थे, बमुश्किल इसी में गुजारा होता था। बाद में लालू जब पटना पहुंचे तो यहां मिलर हाईस्कूल में दाखिला लिया। यहीं उन्हें नेशनल कैडेट कोर यानी एनसीसी के बारे में पता लगा।

लालू के मुताबिक एनसीसी के प्रति उनके आकर्षण की बड़ी वजह यह थी कि इसमें कमीज, पतलून और जूता मिलता था। साथ ही कैडेट्स को नाश्ता भी दिया जाता था। लालू ने तुरंत एनसीसी जॉइन कर ली। वे लिखते हैं कि एनसीसी ज्वाइन करने के बाद मैं इतना उत्साहित था कि पूरे दिन ड्रेस उतारा ही नहीं। कुछ महीने के अंदर ही मुझे सर्वश्रेष्ठ कैडेट का पुरस्कार भी मिला और कैडेट्स को कमांड देने की जिम्मेदारी भी मिल गई।

बदल दिया था स्कूल का नाम: आपको बता दें कि लालू ने पटना के जिस मिलर हाईस्कूल में पढ़ाई की थी, मुख्यमंत्री बनने के बाद उस स्कूल का नाम बदल दिया था। बकौल लालू, उन्हें लगता था कि इस स्कूल का नाम बिहार के किसी सम्मानित व्यक्ति के नाम पर होना चाहिए। इसीलिए उन्होंने इसका नाम बदलकर देवीपद चौधरी के नाम पर रख दिया, जो स्वतंत्रा सेनानी थे और भारत छोड़ो आंदोलन में शहीद हुए थे।

क्लर्क की नौकरी भी की: कॉलेज के दिनों में लालू ने क्लर्क की नौकरी भी की थी। जब उन्होंने पटना लॉ कॉलेज में एलएलबी में दाखिला लिया तो वेटनरी कॉलेज में क्लर्क की नौकरी भी ज्वाइन कर ली। वे लिखते हैं कि इसके जीवन कुछ हद तक संभल गया था और कुछ पैसे बचने भी लगे थे। एलएलबी की कक्षाएं शाम को चलती थीं और वे दिन में नौकरी किया करते थे। हालांकि 1973-74 में जब वे अध्यक्ष पद का चुनाव जीते तो यह नौकरी छोड़नी पड़ी थी।  

सांसद बनते ही खरीदी थी सेकेंड हैंड जीप: आपको बता दें कि लालू जब पहली बार ही सांसद बने तो विल्स की एक सेकेंड हैंड जीप खरीद ली थी और इसी से चला करते थे। वरिष्ठ पत्रकार अनुरंजन झा अपनी किताब ‘गांधी मैदान: ब्लफ ऑफ सोशल जस्टिस’ में इस किस्से का जिक्र करते हुए लिखते हैं कि लालू को कलफदार कुर्ता और महंगी सैंडलों का शौक चुनाव जीतने से पहले से था।