Kisan Andolan: किसान आंदोलन पर पॉप सिंगर रिहाना, पर्यावरण एक्टिविस्ट ग्रेटा थनबर्ग और मिया खलीफा जैसी विदेशी हस्तियों के ट्वीट के बाद मामला और गरमा गया है। कंगना रनौत, अक्षय कुमार, अजय देवगन, एकता कपूर, विराट कोहली समेत कई हस्तियों ने इसके खिलाफ पलटवार किया है। इसी बीच भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत ने एक बार फिर साफ किया है कि जब तक कानून वापस नहीं लिये जाते और एमएसपी पर कानून नहीं बनता है, तबतक आंदोलन खत्म करने का सवाल ही नहीं है। वे जगह-जगह पंचायतों में भी शिरकत कर समर्थन मांग रहे हैं।

कई राजनीतिक पार्टियों ने राकेश टिकैत को समर्थन भी दिया है, जिसमें राष्ट्रीय लोकदल (RLD) भी शामिल है। बीते दिनों आरएलडी नेता जयंत चौधरी गाजीपुर बॉर्डर भी पहुंचे थे और टिकैत के साथ मंच भी दिखे। आपको बता दें कि इस किसान आंदोलन के बहाने राकेश टिकैत के पिता और किसानों के मसीहा कहे जाने वाले चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत का भी जिक्र किया जा रहा है। उन्होंने ताउम्र किसानों की आवाज उठाई।

महेंद्र सिंह टिकैत अपने आंदोलनों में किसी भी राजनीतिक दल के नेता के मंच पर आने के सख़्त खिलाफ थे। यहां तक कि अपने गुरु चौधरी चरण सिंह की पत्नी गायत्री देवी और उनके बेटे अजित सिंह को भी एक बार मंच पर जाने से साफ मना कर दिया था। गायत्री देवी और अजित जब मंच के पास पहुंचे तो उन्होंने हाथ जोड़ कर कहा कि हमारे मंच पर कोई राजनीतिक व्यक्ति नहीं आ सकता।

बोट क्लब के आंदोलन से हिल गई थी सरकार: महेंद्र सिंह टिकैत से सरकारें खौफ खाती थीं। इसकी वजह यह थी कि उनकी एक आवाज पर लाखों किसान इकट्ठा हो जाते थे। ऐसा ही एक आंदोलन 25 अक्टूबर 1988 को हुआ। गन्ने का मूल्य, पानी और बिजली की दरों को कम करने और किसानों के कर्ज़े माफ़ जैसी मांगों को लेकर टिकैत ने दिल्ली के मशहूर बोट क्लब में डेरा डाल दिया। क़रीब पांच लाख किसान इकट्ठा हो गए।

विजय चौक से इंडिया गेट तक किसानों के ट्रैक्टर, ट्रॉलियां और बुग्गी ही दिख रही थीं। प्रशासन के हाथ-पांव फूल गए थे। तब भी पुलिस और सरकार ने आंदोलन को खत्म करवाने के लिए हर संभव हथकंडे अपनाए। पानी और खाने की सप्लाई रोक दी। इसके बावजूद किसान नहीं डिगे।

आपको बता दें कि 6 अक्टूबर 1935 को सिसौली में जन्में चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत जब बालियान खाप के चौधरी बने तो उनकी उम्र मात्र 8 साल थी। धीरे-धीरे पश्चिमी यूपी और फिर देश के दूसरे हिस्सों के किसानों के बीच उन्होंने अपनी पैठ बनाई। महेंद्र सिंह टिकैत अपनी ठेठ भाषा औऱ सादगी के लिए भी जाने जाते थे।

उन्हें जो बात पसंद नहीं आती थी, उसे परिणाम की परवाह किये बगैर मुंह पर कह देते थे। फिर चाहे तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिंहा राव से हर्षद मेहता केस में कथित घूस को लेकर सवाल करना हो या यूपी के तत्कालीन सीएम वीर बहादुर सिंह को उन्हीं के सामने खरी-खोटी सुनाना।