उत्तर प्रदेश में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव को देखते हुए सभी दलों ने तैयारी शुरू कर दी है। बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) सुप्रीमो मायावती ने साफ कर दिया है कि इस चुनाव में उनकी पार्टी किसी भी बाहुबली को टिकट नहीं देगी। पिछले कुछ चुनावों में बीएसपी का प्रदर्शन कुछ खास नहीं रहा, लेकिन साल 2007 में बीएसपी को बहुमत मिला था और मायावती चौथी बार यूपी की सीएम बनी थीं। अखिलेश यादव उस दौरान लोकसभा सांसद हुआ करते थे।
साल 2011 आते-आते अखिलेश यादव ने मायावती सरकार पर बिगड़ती कानून-व्यवस्था, व्यापक भ्रष्टाचार के आरोप लगाते हुए व्यापक अभियान छेड़ दिया था। यूपी के अलग-अलग शहरों में समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ता सड़कों पर उतर आए थे। इस पूरे आंदोलन का नेतृत्व अखिलेश यादव ही कर रहे थे। वह कई जनसभाओं में बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे थे। मायावती के लिए सपा कार्यकर्ताओं को नियंत्रित करना मुश्किल हो गया था और उन्होंने मार्च 2011 में कड़ा कदम उठाते हुए अखिलेश और मुलायम सिंह यादव को नजरबंद कर दिया था।
अखिलेश और मुलायम को नजरबंद करने के बाद पूरे प्रदेश में विरोध-प्रदर्शन और भी तेज हो गया था। लेखक मनीष तिवारी और राजन पांडे ने अपनी किताब ‘बैटलग्राउंड यूपी’ में भी इसका जिक्र किया है। बकौल मनीष तिवारी, ‘मायावती सरकार के लिए समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं को नियंत्रित करना मुश्किल हो चुका था। वह ऐसा करने में विफल नजर आ रही थीं। अखिलेश पार्टी दफ्तर से इस पर नजर रख रहे थे। वह अपनी पार्टी के शक्ति प्रदर्शन से बेहद खुश थे। क्योंकि बिल्कुल ऐसा लग रहा था कि ये सब पहली बार हो रहा है।’
संसद तक पहुंचा था मामला: दोनों नेताओं को नज़रबंद करने का मामला दिल्ली तक पहुंच गया था और लोकसभा तक में इसकी चर्चा हुई थी। तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार ने इस मामले पर केंद्रीय गृह मंत्रालय से रिपोर्ट मांगी थी। दरअसल ये सब सपा नेताओं के लोकसभा में विरोध दर्ज करवाने के बाद हुआ था। क्योंकि अखिलेश यादव उस समय लोकसभा सांसद थे और उन्होंने सदन में इस मुद्दे को जोर देकर उठाया था। अखिलेश ने सदन में कहा था कि उन्हें लखनऊ से गिरफ्तार तक कर लिया गया था और प्रदर्शनों में भाग लेने से रोका गया था।
गौरतलब है कि इसका फायदा अगले साल यानी 2012 में हुए विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी को हुआ भी। सपा को यूपी में बहुमत मिला था और मायावती को सीएम पद छोड़ना पड़ा था। मुलायम सिंह यादव ने अपनी जगह अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री बनाया था।