गर्भावस्था के दौरान जब बच्चा मां के पेट में होता है, तो पूरे 9 महीने उसे गर्भनाल से ऑक्सीजन और पोषण मिलता है। मां जो कुछ भी खाती है, उसका पोषण गर्भनाल से होते हुए बच्चे तक पहुंच जाता है। विज्ञान की भाषा में गर्भनाल को प्लेसेंटा या अम्बिलिकल कॉर्ड कहा जाता है। इसका एक सिरा गर्भाशय से जुड़ा होता है, तो दूसरा बच्चे की नाभि से। वहीं, डिलीवरी के बाद गर्भनाल को मां के शरीर से निकाल दिया जाता है जबकि बच्चे की नाभि से जुड़ा हिस्सा कुछ दिनों बाद खूद ही सूखकर निकल जाता है। यह बात तो अमूमन हर कोई जानता ही है, लेकिन क्या आपको पता है कि जिस तरह मां के गर्भ के अंदर गर्भनाल पौष्टिक चीजों को बच्चे तक पहुंचाती है और विषैली चीजों को उस तक पहुंचने से रोकती है, ठीक उसी तरह ये आगे चलकर भी कई बीमारियों से उसकी रक्षा कर सकती है?
क्या है प्लेसेंटा बैंकिंग?
हेल्थ एक्सपर्ट्स के मुताबिक, बेबी के पैदा होने के बाद अगर उसकी गर्भनाल के सेल्स को सेव कर लिया जाए, तो ये उसे आगे जीवन में कई घातक बीमारियों से बचने में मदद कर सकती है। इसी कड़ी में आजकल बच्चे की नाल को सहेजकर रखा जाने लगा है। इसे स्टेप सेल प्रिजर्व करना या प्लेसेंटा बैंकिंग (Placenta Banking) कहा जाता है।
क्यों की जाती है प्लेसेंटा बैंकिंग?
हावर्ड हेल्थ के अनुसार, गर्भनाल के भीतर का रक्त हेमटोपोइएटिक स्टेम सेल्स से भरपूर होता है। वहीं, स्टेम सेल्स 80 से अधिक बीमारियों का इलाज करने में सक्षम होती हैं। इनमें कैंसर, रक्त विकार, इम्यून डिसऑर्डर और जेनेटिक रोग भी शामिल हैं। गर्भनाल को संभालकर रखने से बच्चे की अनुवांशिक बीमारियों या फिर किसी भी मेडिकल केस हिस्ट्री को समझने में मदद मिलत सकती है और इस तरह उनसे जुड़ी हर बीमारी का सटीक इलाज किया जा सकता है। इतना ही नहीं, गर्भनाल की मदद से बच्चे के साथ-साथ आने वाली पीढ़ियों को भी फायदा पहुंच सकता है। अगर परिवार में कोई जेनेटिक प्रॉब्लम है जो बच्चे में भी हो सकती है, तो उसे कॉर्ड ब्लड से ठीक किया जा सकता है।
कब तक कर सकते हैं इस्तेमाल?
हेल्थ एक्सपर्ट्स के मुताबिक, अंबिलिकाल कॉर्ड को प्रिजर्व कराने के बाद इसका उपयोग लाइफ लॉन्ग कभी भी किया जा सकता है। एक मेडिकल अध्ययन में बताया गया है कि स्टेम सेल्स 23 साल तक प्रिजर्व रहने के बाद भी हेल्दी रह सकती सकती है और कई बीमारियों का इलाज करने में बच्चे की मदद कर सकती है। इसके अलावा भी स्टेम सेल्स के बीमारियों के इलाज में योगदान को लेकर कई रिसर्च अभी जारी हैं।