दिग्गज नेता रामविलास पासवान का 74 साल की उम्र में पिछले साल निधन हो गया था। रामविलास पासवान की गिनती बिहार के मंझे हुए नेताओं में होती थी। रामविलास ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत जेपी आंदोलन से की थी। रामविलास पासवान इस आंदोलन के मुख्य चेहरों में से एक थे। इसके बाद उन्होंने साल 1977 में पहली बार हाजीपुर से लोकसभा चुनाव लड़ा। पासवान ने न सिर्फ चुनाव जीता बल्कि एक नया रिकॉर्ड भी स्थापित कर दिया।

रामविलास पासवान ने कांग्रेस प्रत्याशी को करीब सवा चार लाख मतों से शिकस्त दी थी। रामविलास पासवान की ये कोई पहली जीत नहीं थी। इसके ठीक आठ साल पहले उन्होंने सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर विधायक का चुनाव भी लड़ा था जिसमें उन्होंने एक तरफा जीत हासिल की थी। लेकिन उनके पिता बिल्कुल नहीं चाहते थे कि वह राजनीति को भी अपना भविष्य बनाएं। हालांकि पासवान ने अपने पिता की मर्जी के खिलाफ राजनीत में ही रहने का फैसला किया।

डीएसपी के लिए हो गया था चयन: रामविलास पासवान ने एक ऐसे ही किस्से का जिक्र ‘राज्यसभा टीवी’ के शो ‘The Quest’ में किया था। रामविलास पासवान बताते हैं, ‘जब मैं पटना आया तो देखा कि अनुसूचित जाति के लड़कों के लिए सिर्फ एक ही होस्टल था तो वहां से मेरा संघर्ष शुरू हुआ। मैंने 1965 में खूब संघर्ष किया और बिहार पब्लिक सर्विस कमिशन में मेरा चयन हो गया। मुझे डीएसपी भी मिल गया। हालांकि इस बीच ही चुनाव भी आ गए।’

चुनाव के बाद अपने पिता जी का जिक्र करते हुए रामविलास पासवान कहते हैं, ‘चुनाव में मुझे जीत मिली और मैं विधायक बन गया। मेरे सामने धर्म संकट था कि डीएसपी में जाएं या सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर चुनाव ही लड़ें। बाबू जी नहीं चाहते थे कि मैं सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ूं क्योंकि इस पार्टी के कार्यकर्ता तो हमेशा जेल में ही मिलते थे। हमारे कार्यकर्ता लक्ष्मी नारायण थे तो मैंने उनसे पूछा। उन्होंने कहा कि आप सरकार बनना चाहते हैं कि सर्वेंट बनना चाहते थे। अब ये तो आपको तय करना है। फिर मैं बाबू जी की इच्छा से परे राजनीत में आगे बढ़ा।’