उत्तर प्रदेश में अगले साल होने वाले चुनाव को देखते हुए राजनीतिक दलों का गठजोड़ शुरू हो गया है। जनसत्ता दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया ने कहा कि उन्होंने चुनाव लड़ने के लिए 100 से ज्यादा सीटों को चिन्हित कर लिया है। ऐसे में सियासी गलियारों में चर्चा है कि राजा भैया अन्य छोटे दलों के साथ चुनाव मैदान में उतर सकते हैं। हाल ही में एक इंटरव्यू के दौरान उनसे बीजेपी को लेकर भी कई सवाल भी पूछे गए थे, जिसमें बीजेपी को लेकर उनका नरम रुख बरकरार था।

‘इंडिया टीवी’ के कार्यक्रम में उनसे पूछा गया था, ‘उत्तर प्रदेश की मौजूदा सरकार को लेकर विरोधी दल कहते हैं कि विधायकों की नहीं चलती, अफसरों की भी नहीं चलती, लेकिन मंत्रियों की बहुत चलती है। आपको ऐसा लगता है?’ इसके जवाब में राजा भैया ने कहा था, ‘अब ये सब सत्तापक्ष के विधायकों से पूछते तो ज्यादा ठीक रहता है। हम सत्तापक्ष के विधायक तो नहीं हैं। हम विपक्ष के विधायक हैं। अब सत्तापक्ष के विधायक क्या उम्मीद लेकर आए थे और उनकी कितनी पूरी हुई है, ये तो वही बता पाएंगे।’

राजा भैया से अगला सवाल किया जाता है, ‘आपने खुद कहा कि उत्तर प्रदेश अपराध के मामले में तो अभी सही चल रहा है। आपको लगता है कि प्रशासन अभी सही काम कर रहा है?’ उन्होंने जवाब दिया था, ‘जहां तक अभी के हालात हैं तो कोरोना काल में डॉक्टर्स से लेकर सफाई कर्मियों तक सबने लंबी लड़ाई लड़ी। इसमें सबका नुकसान हुआ है। विधानसभा में भी 6-7 सदस्य नहीं रहे। यूपी की आबादी के हिसाब से देखें तो अमेरिका या पश्चिमी देशों के मुकाबले हमारा शरीर मजबूत होता है। इसलिए हमारा नुकसान उनकी तुलना में कम भी हुआ है।’

किसके आशीर्वाद से शुरू करते हैं नया काम? राजा भैया को उत्तर प्रदेश की सियासत का सबसे माहिर खिलाड़ी भी कहा जाता है। क्योंकि वह सात बार कुंडा सीट से चुनाव जीत चुके हैं। एक इंटरव्यू में उनसे इस बारे में पूछा था तो उन्होंने कहा था, ‘हमारे सिर पर हमेशा गुरुजी पूज्य देवरहा बाबा का आशीर्वाद रहता है और हम कुछ भी नई चीज शुरू करने से पहले उनसे आशीर्वाद जरूर लेते हैं। उनकी कृपा से ही हमने जीवन में सबकुछ हासिल किया है।’

निर्दलीय चुनाव क्यों लड़ते हैं? राजा भैया ने एक अन्य इंटरव्यू में बताया था, ‘हम कॉलेज के दिनों से ही राजनीति कर रहे हैं। जब हमने कॉलेज के बाद चुनाव लड़ने का फैसला किया तो किसी दल के बिना ही मैदान में उतर गए थे। उस चुनाव में हमें जीत भी हासिल हो गई थी। यही वजह है कि उसके बाद किसी दल को जॉइन करने की हमारी इच्छा नहीं हुई।’