कांग्रेस के दिवंगत नेता और पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव की आज जयंती है। साल 1991 में जब सफेद धोती और गोल्डन सिल्क कुर्ता पहने नरसिम्हा राव ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी तो लोगों को उनसे कई उम्मीदें थीं। उनके कार्यकाल में ऐसा हुआ भी। हालांकि राजधानी के सियासी गलियारों में अपनी धमक जमाने वाले नरसिम्हा राव का निधन के बाद यहां अंतिम संस्कार तक नहीं हो पाया था। तमाम सियासत के बाद उनके शव को अंतिम संस्कार के लिए हैदराबाद ले जाया गया था।
विनय सीतापति ने अपनी किताब ‘द हाफ लायन’ में नरसिम्हा राव के निधन के बाद किस्से का विस्तार से जिक्र किया है। 23 दिसंबर 2004 को नरसिम्हा राव ने 11 बजे AIIMS में आखिरी सांस ली। तत्कालीन गृह मंत्री शिवराज पाटिल ने राव के छोटे बेटे प्रभाकर को सुझाव दिया कि अंतिम संस्कार हैदराबाद में किया जाए। नरसिम्हा राव का शव उनके निवास स्थान 9 मोती लाल नेहरू मार्ग पर लाया गया। यहां कांग्रेस के दिग्गज नेता गुलाम नबी आजाद ने भी परिवार से शव हैदराबाद ले जाने के लिए कहा।
परिवार को शव हैदराबाद ले जाने की सलाह: थोड़ी देर बाद कांग्रेस के दिग्गज नेता और आंध्र प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री राजशेखर रेड्डी पहुंचते हैं और राव के परिवार को ये विश्वास दिलाने में लग जाते हैं कि उनका अंतिम संस्कार जन्मभूमि में पूरे सम्मान के साथ किया जाएगा। कहा गया कि कांग्रेस का आला कमान नहीं चाहता था कि राव का अंतिम संस्कार दिल्ली में हो। घंटों सियासत के बाद आखिरकार परिवार अपना फैसला बदलता है और तय होता है कि नरसिम्हा राव का अंतिम संस्कार दिल्ली नहीं हैदराबाद में होगा। अगले दिन 24 दिसबंर को शव एयरपोर्ट के लिए निकलता है।
कांग्रेस मुख्यालय के गेट खुलने का इंतजार करता रहा परिवार: बीच में वो ऑफिस आता है जहां से नरसिम्हा राव के सीएम और पीएम बनने का रास्त साफ हुआ था। ये था- कांग्रेस मुख्यालय। अमूमन पार्टी के किसी बड़े नेता के निधन के बाद उसके शव को कुछ समय पार्टी ऑफिस में रखने की प्रथा थी। ताकि कार्यकर्ता श्रद्धांजलि अर्पित कर सकें। लेकिन राव के साथ ऐसा नहीं था, अपने अंतिम दिनों में वह कांग्रेस से थोड़ा नाराज भी थे। एयरपोर्ट के रास्ते राव का शव लेकर परिजन जब कांग्रेस मुख्यालय के बाहर पहुंचे तो गेट ही नहीं खुला।
विनय सीतापति लिखते हैं कि ‘राव का शव करीब आधे घंटे तक कांग्रेस पार्टी के दफ्तर के बाहर एयर फोर्स की गाड़ी पर रखा रहा। परिजन अंदर जाने का इंतजार करते रहे। जब गेट नहीं खुला तो थक हारकर एयरपोर्ट की तरफ रवाना हो गए। हालांकि उस वक्त सोनिया गांधी भी पार्टी दफ्तर के अंदर ही मौजूद थीं।।
देश के पहले एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर: वरिष्ठ पत्रकार संजय बारू अपनी किताब ‘1991 हाउ पीवी नरसिम्हा राव मेड हिस्ट्री’ में लिखते हैं कि नरसिम्हा राव इस देश के पहले एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर थे। बारू लिखते हैं कि साल 1947 के बाद अगर भारत के इतिहास में कोई साल महत्वपूर्ण है तो वो यही साल है जब नरसिम्हा राव देश के प्रधानमंत्री बने थे। संजय बारू ने एक इंटरव्यू में अपनी किताब के बारे में बताया था कि राव ने इसी साल अपना नाम इतिहास के पन्नों में दर्ज कर लिया था क्योंकि भारत में कई फैसले होने बाकि थे और उन्हें राव ने पूरा कर अपनी अलग जगह बनाई, लेकिन इस बीच ही वह कांग्रेस से दूर भी होते गए।
राजीव गांधी के साथ मिलकर किया कंप्यूटर लाने का फैसला: साल 1986 में देश के प्रधानमंत्री की कुर्सी पर राजीव गांधी थे और वह हर बड़े फैसले पार्टी नेताओं की मर्जी से ही लेना पसंद करते थे। यही वजह थी कि जब उन्होंने कंप्यूटर को भारत में लाने का फैसला किया तो उन्होंने अपने मित्र से सबसे पहले कहा कि पता नहीं कांग्रेस के पुराने सदस्य मेरी बात को कैसे लेंगे। इस बात की जिक्र बीबीसी की एक रिपोर्ट में किया गया है। उस दौरान देश के रक्षा मंत्री नरसिम्हा राव थे। नरसिम्हा राव के बेटे प्रभाकर भी उस दौरान कंप्यूटर से जुड़ा सामान बनाने की कंपनी स्थापित करने का फैसला कर चुके थे।
नरसिम्हा राव ने अपने बेटे से फोन पर बात की और अपने बेटे से कंप्यूटर का सैंपल दिल्ली मंगा लिया। सैंपल दिल्ली आया और एक व्यक्ति को उन्हें कंप्यूटर सिखाने की जिम्मेदारी दी गई। नरसिम्हा राव शुरू से ही टेक्नोलॉजी में रुचि रखते थे तो उन्होंने इसे सीखने के लिए पूरी मेहनत भी की। करीब छह महीने तक रात-दिन वह इसमें जुटे रहे और आखिरकार कंप्यूटर सीखकर ही दम लिया। उन्होंने न सिर्फ कंप्यूटर चलाना सीखा बल्कि कोडिंग तक भी सीख डाली। बाद में फिर राजीव गांधी और नरसिम्हा राव के कारण ही भारत में कंप्यूटर आयात का रास्ता साफ हो पाया।