बिहार के नेताओं में पप्पू यादव का नाम शीर्ष नेताओं की श्रेणी में शामिल किया जाता है। राजेश रंजन जिन्हें पप्पू यादव के नाम से जाना जाता है, कई पार्टियों से लोकसभा का चुनाव जीत चुके हैं। उन्होंने 1991 में लोकसभा का चुनाव निर्दलीय जीता फिर उसके बाद के विधान सभा चुनावों में वो समाजवादी पार्टी (1996), लोक जनता पार्टी (1999), राष्ट्रीय जनता दल (2004) से लड़े और जीतें भी। पप्पू यादव फिलहाल जन अधिकार पार्टी के नेता हैं। पप्पू यादव की पत्नी रंजीत रंजन कांग्रेस पार्टी की नेता हैं। दोनों की प्रेम कहानी और शादी का किस्सा बेहद मशहूर है। कुछ दिनों पहले पप्पू यादव ने लल्लनटॉप को रंजीत रंजन से मुलाकात और शादी का किस्सा सुनाया था।
उन्होंने बताया कि रंजीत का परिवार उनकी शादी के खिलाफ था। कई बड़े राजनीतिक लोग बीच में आए तब जाकर कहीं बात बनी। रंजीत रंजन पंजाब के सिख परिवार से थीं इसलिए भी दोनों की शादी में दिक्कतें आईं। उन्होंने अपनी पूरी प्रेम कहानी सुनाई, ‘उस वक़्त पटना क्लब में मैं कई लोगों के साथ चीफ गेस्ट के रूप में गया था। रंजीत नेशनल और इंटरनेशनल लॉन टेनिस खेलती थीं। 3 महीने बाद उन्हें इंटरनेशनल खेलने जाना था। मेरी मुलाक़ात वहीं हुई। मुलाक़ात बस मेरी हुई, उनकी मुझसे नहीं हुई। वो मेरे बारे में कुछ नहीं जानती थी। पंजाब यूनिवर्सिटी की स्टूडेंट थीं। पटना मगध कॉलेज से पढ़कर गईं थीं। टेनिस इंटरनेशनल खेलने की बात आई तो वो पंजाब में ही प्रैक्टिस करने लगीं। वहां से पटना खेलने आईं थीं। उनके पापा आर्मी के अधिकारी थे और रिटायर होने के बाद गुरुद्वारे के हेड हो गए।’
पप्पू यादव ने आगे बताया कि वो 3 सालों तक रंजीत का पीछा करते रहें लेकिन कभी मिले नहीं। उन्होंने बताया, ‘उस वक़्त पप्पू यादव को निकलने के लिए कम से कम सौ डेढ़ सौ फोर्स लगती थी, तब हम निकल पाते थे। लेकिन हम अकेले निकल जाते थे उनके पीछे। फिर भी 3 साल तक कभी मिलें ही नहीं। दो साल तक उनको पता भी नहीं चला कि कोई लड़का उनका पीछा कर रहा है। फिर वो चंडीगढ़ चली गईं। जैसा कि लव एंड वार में सबकुछ जायज़ होता है, एक इंटर रिलिजन फैमिली, वो भी अमृतसर की फैमिली, तो परिस्थितियां बहुत अच्छी नहीं थी।’
अपनी शादी में आई मुश्किलों का ज़िक्र करते हुए पप्पू यादव ने बताया, ‘अहलूवालिया साहब बीच में आए, पूरा पंजाब, सिख विरोध में था। पूरी फैमिली अलग हो गई कि शादी नहीं हो सकती। लेकिन मुझे था कि शादी तो वहीं करनी है।’
पप्पू यादव ने अपनी पुस्तक ‘द्रोहकाल का पथिक’ में अपनी प्रेम कहानी का ज़िक्र विस्तार से किया है। उन्होंने लिखा है कि जब किसी तरह रंजीत के परिवार वाले नहीं माने तो वो कांग्रेस के नेता एसएस अहलूवालिया से मिलने दिल्ली जा पहुंचे क्योंकि उन्हें किसी ने बताया कि वो उनकी मदद कर सकते हैं। एसएस अहलूवालिया ने रंजीत के सिख परिवार को मनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। बाद में रंजीत के माता पिता तो मान गए लेकिन सभी परिजन तैयार नहीं हुए। आखिरकार दोनों की शादी फरवरी 1994 में हो गई।