छोटे पर्दे के सबसे लोकप्रिय शो में से एक ‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ के नट्टू काका की कहानी दिलचस्प है। शो में दिखने वाले नट्टू काका का असली नाम घनश्याम नायक है। वे पिछले 50 सालों से सालों से एक्टिंग की दुनिया में सक्रिय हैं। हालांकि उनके लिए अभिनय के क्षेत्र में अपनी पहचान बनाना इतना आसान नहीं था। उन्होंने तमाम संघर्ष किये और उतार-चढ़ाव देखे।
गुजरात में जन्मे घनश्याम नायक के अंदर कला का बीज उनके परिवार से ही पनपा। वे गुजरात के लोकनाट्य कला “भवई” के मंझे कलाकार रहे हैं। उनके पिता और दादा को भी इस कला में महारत हासिल थी। वे बताते हैं कि उनके पिताजी और दादाजी भी मंचों पर नाट्य प्रस्तुत करते थे, जहां से उन्हें ये सब सीखने को मिला।
76 साल के घनश्याम नायक ने साल 1960 में आई फिल्म ‘मासूम’ से बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट करियर की शुरुआत की थी। नायक बताते हैं कि एक दौर था जब उन्हें पूरा दिन काम करने के सिर्फ तीन रुपये मिलते थे। लेकिन संघर्ष के दिनों में भी उन्होंने कभी हिम्मत नहीं हारी और हर तरीके के छोटे रोल कर जीवन की गाड़ी खींचते रहे। उन्होंने अपने जुनून को कभी नहीं छोड़ा।
‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ से पहले उन्हें काफी स्ट्रगल करना पड़ा था। शुरुआती दौर में जब उन्हें अच्छा पैसा नहीं मिलता था, तब स्थिति ऐसी आ गई थी कि पड़ोसियों से पैसे उधार लेकर बच्चों की फीस और घर का किराया देना पड़ा था। 60-70 के दशक में तीन दिन के शूट के लिए उन्हें महज 90 रुपये ही मिलते थे, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी।
घनश्याम नायक सभी तरह के प्लेटफार्म पर काम कर चुके हैं। अपने करियर में वे अब तक 100 से भी ज्यादा नाटक, 250 के करीब हिन्दी और गुजराती फिल्मों में अभिनय और 350 से अधिक सीरियल में काम कर चुके हैं। हालांकि उन्हें पहचान ‘नट्टू काका’ के किरदार से ही मिली। 2008 से तारक मेहता का उल्टा चश्मा सीरियल में नट्टू काका के किरदार के बाद उनकी दुनिया बदल गई।
मुंबई में दो घर के मालिक: ‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ के बाद से घनश्याम नायक की आर्थिक स्थिति भी सुधरी है। अब अकेले मुंबई में उनके पास दो घर हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक तारक मेहता में ‘नट्टू काका’ के रोल के लिए घनश्याम नायक को प्रति एपिसोड करीब 30 हजार रुपये फीस मिलती है। एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि अब उनके पास सबकुछ है, लेकिन सिर्फ एक बात का मलाल है। वे कहते हैं कि अब लोग उनको नट्टू काका के नाम से ही पहचानने लगे हैं। इस बात का उन्हें मलाल रहता है कि लोग उन्हें उनके असली नाम से नहीं पहचानते हैं।