कभी उत्तर प्रदेश की सियासत के धुरी रहे समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव के पिता सुघर सिंह यादव चाहते थे कि उनके पांचों बेटे खेती-किसानी में उनकी मदद के अलावा पहलवानी में हाथ आजमाएं। मुलायम कुश्ती के अखाड़े में भी उतरे और सियासत के मैदान में भी अपना लोहा मनवाया। उनके दो और सगे भाई शिवपाल यादव और राजपाल यादव भी अपनी जिंदगी में आगे बढ़ गए।
मुलायम की ही तरह शिवपाल भी सियासत में रम गए, जबकि राजपाल यादव भी सेंट्रल वेयरहाउसिंग कॉरपोरेशन की नौकरी से वीआरएस लेकर पार्टी का कामकाज देखने लगे। लेकिन मुलायम के दो अन्य भाई रतन सिंह और अभय राम लाइमलाइट से दूर ही रहे। 6 भाई-बहनों में सबसे बड़े रतन सिंह अब इस दुनिया में नहीं हैं। कुछ साल पहले उनका निधन हो गया था। वे कुछ वक्त तक सेना में भी रहे थे और साल 1962 के भारत-चीन और 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में भी हिस्सा लिया था। बाद में चोट लगने के कारण नौकरी छोड़ गांव लौट आए थे और यहीं रम गए थे।
राजनीति से नहीं है खास साबका: मुलायम के सगे भाई अभय राम अब भी लाइमलाइट से दूर रहते हैं और गांव में ही खेती-किसानी कर अपना वक्त बिता रहे हैं। भले ही यादव परिवार की तीसरी पीढ़ी को मिलाकर एक दर्जन से ज्यादा सदस्य सियासत में सक्रिय हों, लेकिन अभय राम इससे खास साबका नहीं रखते हैं। अखिलेश यादव की जीवनी ‘विंड्स आफ चेंज’ में वरिष्ठ पत्रकार और लेखक सुनीता एरॉन मुलायम सिंह यादव के हवाले से लिखती हैं, ‘मेरे पिता चाहते थे कि अभय राम और पढ़ाई करे, लेकिन दसवीं की परीक्षा पास करने के बाद उसने पढ़ाई छोड़ दी…हालांकि मैंने पढ़ाई जारी रखी…’।
न तो मुलायम के शपथ में गए और न ही अखिलेश के: सुबह 5 बजे जगकर पशुओं के लिए चारे का इंतजाम करना और फिर खेत में काम के लिए निकल जाना ही मुख्य रूप से अभय राम की दिनचर्या रही है। उनका ज्यादातर वक्त गौशाला में ही बीतता है। सुनीता एरॉन लिखती हैंं कि भले ही अभय के सगे भाई मुलायम सिंह और उनका भतीजा अखिलेश उत्तर प्रदेश जैसे देश के सबसे बड़े सूबे के मुख्यमंत्री रहे हों, लेकिन उन्हें साइकिल से चलने में किसी तरह की शर्म महसूस नहीं होती है। राजनीति से उनकी ऐसी बेरुखी है कि मुलायम या अखिलेश के शपथ समारोह में लखनऊ भी नहीं गए थे।
गांव ही है सबकुछ: अभय राम के के लिए अपना गांव ही सबकुछ है। मुलायम परिवार को करीब से जानने वाले स्थानीय पत्रकार बीपी सिंह ने Jansatta.Com से बातचीत में बताया कि वे (अभय राम) तड़के जग जाते हैं। पशुओं को चारा-पानी देने के बाद खेतों की तरफ निकल जाते हैं। वहां से लौटने के बाद गांव के हमउम्र बुजुर्गों के साथ बैठकी लग जाती है। इस बैठकी की ज्यादातर चर्चा खेती-किसानी के इर्द-गिर्द ही घूमती है। इसे बड़े भाई का डर कहें या अदब, बीड़ी पीने के शौकीन अभय राम कभी मुलायम के सामने बीड़ी का जिक्र भी करना पसंद नहीं करते हैं।
अपनी सादगी के लिए चर्चित अभय राम का ज्यादा वक्त सैफई में परिवार के पैतृक मकान से चंद कदम दूर गौशाला की पहली मंजिल पर बीतता है। वो परिवार के पुराने मकान (जिसमें उनके बेटे अनुराग रहते हैं) और दूसरे बेटे धर्मेंद्र के साथ उनके नए मकान में भी वक्त बिताते हैं।