समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) का निधन हो गया। उन्होंने 82 साल की उम्र में मेदांता हॉस्पिटल में आखिरी सांस ली। कभी उत्तर प्रदेश की सियासत की धुरी रहे मुलायम सिंह का जीवन तमाम उतार-चढ़ाव से भरा था। 1939 में जन्में मुलायम के पिता सुघर सिंह चाहते थे कि उनके सभी बच्चे खेती-बाड़ी और पशुओं की देखभाल करें और खासकर अपने शरीर का का भी ध्यान रखें। शरीर से उनका मतलब था पहलवानी की तरफ था।

दसवीं की पढ़ाई के बाद मुलायम ने करहल के जैन इंटर कॉलेज में दाखिला लिया, जो सैफई से कुछ किलोमीटर दूर था। उन्होंने अपने छोटे भाईयों का भी दाखिला यहीं कराया।

मुलायम, इटावा के केके कॉलेज और फिरोजाबाद के शिकोहाबाद कॉलेज भी गए। हालांकि पढ़ाई के सिलसिले में मुलायम भले ही सैफई से दूर हुए हों लेकिन उन्होंने पहलवानी नहीं छोड़ी। वे लगातार प्रैक्टिस कर रहे थे और तमाम प्रतियोगिताओं में हिस्सा ले रहे थे। 12वीं आते-आते वे अपने एज ग्रुप के चैंपियन बन गए थे, फिर कॉलेज में पढ़ाई के दौरान भी जिले और रीजनल लेवल पर अपना लोहा मनवाया था।

चरखा दांव से बड़े पहलवानों को भी कर देते थे चित: अखिलेश यादव की बायोग्राफी ”विंड्स ऑफ चेंज” में वरिष्ठ पत्रतकार सुनीता एरॉन मुलायम के चचेरे भाई प्रो. राम गोपाल यादव के हवाले से लिखती हैं कि उन दिनों मुलायम का ‘चरखा दांव’ खूब चर्चित था। मुलायम भले ही छोटे कद के रहे हों, लेकिन बड़े-बड़े पहलवान भी उनसे खौफ़ खाते थे। चरखा दांव का प्रयोग कर मुलायम अपने कद से बड़े पहलवान को भी चित कर देते थे।

शिक्षक बनने के बाद छोड़ दी पहलवानी: कॉलेज की पढ़ाई तक मुलायम लगातार कुश्ती प्रतियोगिताओं में भाग लेते रहे। हालांकि घर की परिस्थितियों को देखते हुए साल 1965 में उन्होंने उसी जैन इंटर कॉलेज में नौकरी ज्वाइन कर ली, जहां से वे खुद पढ़े थे। यहां पढ़ाने के साथ-साथ वे आगरा यूनिवर्सिटी से प्राइवेट मोड में पॉलिटिकल साइंस में एमए भी कर रहे थे। सुनीता एरॉन लिखती हैं कि मुलायम ने शिक्षक बनने के बाद पूरी तरह पहलवानी को अलविदा कह दिया था।

यूं हुई थी गुरु से मुलाकात: हालांकि बहुत कम लोग जानते हैं कि मुलायम की पहली बार अपने राजनीतिक गुरु नाथू सिंह से मुलाकात पहलवानी के अखाड़े में ही हुई थी। दरअसल साल 1962 में मैनपुरी में एक 3 दिवसीय कुश्ती प्रतियोगिता आयोजित की गई थी। 23 साल के नौजवान मुलायम सिंह यादव भी इस प्रतियोगिता में हिस्सा ले रहे थे। उसी साल हो रहे विधानसभा चुनाव में जसवंत नगर से प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार नाथू सिंह भी इस प्रतियोगिता में पहुंचे थे। वे मुलायम के प्रदर्शन से बेहद प्रभावित हुए।

28 की उम्र में बने थे विधायक: सुनीता एरॉन लिखती हैं कि नाथू सिंह मुलायम से इतने प्रभावित हुए कि अगले विधानसभा चुनाव (1967 में) मुलायम को अपनी सीट उपहार के तौर पर दे दी और उन्हें जसवंत नगर से चुनाव लड़वाया। नाथू सिंह ने ही पहली बार मुलायम की मुलाकात डॉ. राम मनोहर लोहिया से करवाई थी और कहा था कि मैं आपको एक तेज तर्रार नौजवान सौंप रहा हूं। आपको बता दें कि मुलायम सिंह यादव ने साल 1967 के विधानसभा चुनाव में जसवंत नगर सीट से बाजी मारी और सबसे कम उम्र में विधायक बनने का खिताब अपने नाम किया। उस वक्त वे महज 28 साल के थे।