उत्तर प्रदेश की सियासत में 90 का दशक बेहद उठा-पटक भरा रहा है। मंदिर आंदोलन की पृष्ठभूमि में कारसेवकों पर गोलीबारी और बाद में विवादास्पद ढांचे को गिराने से राज्य में सियासी उबाल आ गया था। अक्टूबर 1990 के आखिरी सप्ताह तक अयोध्या में विवादित ढांचे के आसपास हजारों की तादाद में कारसेवक इकट्ठा हो गए। पुलिस भीड़ को संभालने की पुरजोर कोशिश और मशक्कत कर रही थी। इसी बीच 30 अक्टूबर को कारसेवकों की भीड़ बैरिकेट्स को तोड़ते हुए विवादित ढांचे तक पहुंच गई और गुंबद पर भगवा ध्वज लहरा दिया।

सरकार ने दिया फायरिंग का आदेश: उस वक्त मुलायम सिंह यादव उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री हुआ करते थे। 30 अक्टूबर वाली घटना के बाद कारसेवक और उग्र हो गए और आगे बढ़ने लगे। पुलिस-प्रशासन मशक्कत कर रही थी। इसी बीच राज्य सरकार ने स्थिति को संभालने के लिए फायरिंग का आदेश दे दिया।

2 नवंबर 1990 को हुई गोलीबारी में कई कारसेवकों की जान गई। इसके बाद यूपी समेत पूरे देश में मुलायम के खिलाफ जगह-जगह विरोध प्रदर्शन होने लगे। पूरा विपक्ष लामबंद हो गया। खासकर बीजेपी तीखे हमले करने लगी।

मुलायम को देना पड़ा था इस्तीफा: कारसेवकों पर गोलीबारी के बाद मुलायम सिंह पर इतना दबाव पड़ा कि उन्होंने इस्तीफा दे दिया। बाद में हुए विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने 221 सीटें जीतीं और कल्याण सिंह राज्य के मुख्यमंत्री बने। मंदिर आंदोलन की आंच केंद्र की सत्ता तक भी पहुंच रही थी। ऐसे में प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने देश में बढ़ते सांप्रदायिक तनाव से निपटने के लिए 1991 के आखिरी महीनों में नेशनल इंटीग्रेशन काउंसिल की एक बैठक बुलाई।

बैठक में मुलायम पर बिफर गए वाजपेयी-आडवाणी: नेशनल इंटीग्रेशन काउंसिल (NIC) की उस बैठक में मुलायम सिंह भी शामिल हुए। अखिलेश यादव की जीवनी ‘विंड्स ऑफ चेंज’ में इस घटना का जिक्र करते हुए वरिष्ठ पत्रकार सुनीता एरॉन मुलायम के हवाले से लिखती हैं, ‘मैंने बैठक में बीजेपी नेताओं का नाम लिए बगैर उनकी तीखी आलोचना की।

इसी दौरान बीजेपी नेता अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी मुझ पर भड़क गए। उन्होंने कहा, मुलायम सिंह जी आपका पॉलिटिकल करियर खत्म हो गया है। अब आप दोबारा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री नहीं बन सकते हैं।