आजादी के समय भारत 500 से ज्यादा छोटी-बड़ी रियासतों में विभाजित था। इन रियासतों पर राजा, महाराजा, नवाब या निज़ाम का पूरा हक हुआ करता था। यही वजह थी कि इन्हें भारतीय सीमा में शामिल करना भी आसान नहीं था। इन रियासतों को भारत में शामिल करने की जिम्मेदारी सरदार वल्लभ भाई पटेल ने ली थी और वी.पी मेनन उनकी मदद कर रहे थे। 15 अगस्त 1947 तक जिन राज्यों ने विलय पत्र पर हस्ताक्षर नहीं किए थे उनमें से एक जूनागढ़ भी था।

जूनागढ़ भारत के लिए बहुत महत्वपूर्ण राज्य था। यहां का नवाब एक मुसलमान था, जबकि अधिकांश प्रजा हिंदू थी। जूनागढ़ तीन दिशाओं से या तो हिंदू राज्यों या हिंदुस्तान की सरहदों से घिरा था। 1947 में जूनागढ़ का नवाब मोहम्मद मोहबत खान था और तरह-तरह के कुत्ते पालना उसकी दीवानगी थी। जूनागढ़ की सीमा के अंदर ही हिंदुओं का पवित्र स्थल सोमनाथ भी पड़ता था। 1947 की गर्मियों में जूनागढ़ का नवाब यूरोप में छुट्टियां मना रहा था। जब वह बाहर था तो उसी समय उसके तत्कालीन दीवान को हटाकर सर शाहनवाज भुट्टो को जूनागढ़ का दीवान बना दिया गया था जो मोहम्मद अली जिन्ना का करीबी था।

नवाब जब यूरोप से वापस लौटे तो दीवान ने उन पर भारतीय संघ में न मिलने के लिए दवाब बनाया। 14 अगस्त को सत्ताहस्तांतरण के दिन नवाब ने घोषणा कर दी कि वह पाकिस्तान में मिल जाएगा। इतिहासकार रामचंद्र गुहा अपनी किताब ‘इंडिया आफ्टर गांधी’ में लिखते हैं, नवाब के इस फैसले का भौगोलिक रूप से कोई मतलब नहीं था क्योंकि रियासत की 82 फीसदी प्रजा हिंदू थी। कुछ समय मौन बैठने के बाद पाकिस्तान ने 13 सितंबर को नवाब के फैसले को स्वीकार कर लिया। ऐसा लगता था कि जूनागढ़ का इस्तेमाल जिन्ना जम्मू-कश्मीर पर सौदेबाजी के लिए करना चाहता थे। क्योंकि वहां की ज्यादातर प्रजा मुस्लिम थी और राजा हिंदू।

भारत ने भेजी सैनिक टुकड़ी: पाकिस्तान के जूनागढ़ के विलय को स्वीकार कर लिए जाने से सरदार पटेल बहुत निराश हुए। क्योंकि वह इसी इलाके से आते थे। जबकि जूनागढ़ के दो सरदारों ने कहा था कि उन्हें भारत में मिलने का अधिकार है, लेकिन नवाब ने इसे खारिज कर दिया था। पटेल से चर्चा के बाद भारत सरकार ने जूनागढ़ की तरफ छोटी सी सैनिक टुकड़ी कब्जा करने के उद्देश्य से भेज दी। बाद में वी.पी मेनन ने दीवान से मुलाकात की। दीवान ने कहा कि इस मुद्दो को जनमत संग्रह द्वारा हल किया जाना चाहिए। इस बीच जूनागढ़ की वैकल्पिक सरकार का गठन बंबई में कर दिया गया। दूसरी तरफ, जूनागढ़ में कई आंदोलन भी चल रहे थे।

नवाब इन सभी घटनाओं से काफी घबरा गया और अपने प्रिय कुत्तों के साथ कराची भाग गया। 27 अक्टूबर को जूनागढ़ के दीवान ने जिन्ना को एक पत्र भी लिखा। इसमें कहा गया, ‘लगता है काठियावाड़ के मुसलमानों में पाकिस्तान के प्रति सारा उत्साह काफूर हो गया है।’ दस दिन बाद शाहनवाज ने भारत सरकार को विलय की सूचना दे दी। माउंटबेटन को संतुष्ट करन के लिए भारत सरकार ने एक जनमत संग्रह का आयोजन करवाया था। 20 फरवरी 1948 को हुए जनमत संग्रह में जूनागढ़ के 91 फीसदी लोगों ने हिंदुस्तान में शामिल होने का फैसला कर लिया था।