उत्तर प्रदेश में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए सभी पार्टियों ने तैयारियां शुरू कर दी हैं। बीएसपी के महासचिव सतीश मिश्रा ने साफ कहा है कि पार्टी आगामी चुनाव में अकेले ही मैदान में उतरेगी। उन्होंने उम्मीद जताई है कि इन चुनावों में बहुजन समाज पार्टी की एक-तरफा जीत होगी। हालांकि पार्टी के पिछले 10 सालों के प्रदर्शन पर नजर डालें तो कुछ खास नहीं रहा है। 2012 के विधानसभा चुनाव और उसके बाद हुए लोकसभा चुनावों में पार्टी का ग्राफ लगातार नीचे ही गया है।

करीबी अफसर को बना दिया था कैबिनेट सेक्रेटरी: साल 2007 में 200 से ज्यादा सीटें जीतकर मुख्यमंत्री बनने वालीं मायावती ने अपने करीबी माने जाने वाले अफसर शशांक शेखर सिंह को कैबिनेट सेक्रेटरी बना दिया था। शशांक शेखर सिंह की नियुक्ति पर कई सवाल उठे थे क्योंकि वो इस पद पर पहुंचने वाले नॉन-आईएएस अधिकारी थे। उनकी नियुक्ति को कोर्ट में चुनौती भी दी गई थी।

अजोय बोस ने अपनी किताब ‘बहनजी: ए पॉलिटिकल बायोग्राफी ऑफ मायावती’ में इसका जिक्र किया है। अजोय लिखते हैं, ‘मायावती के मुख्यमंत्री बनने के बाद उत्तर प्रदेश की कानून-व्यवस्था में अचानक सुधार देखा गया था। इस दौरान अपने शानदार चमकीले ऑफिस में बैठे कैबिनेट सेक्रेटरी से मैंने बात की थी तो उन्होंने कहा था, ‘अगर हम ऐसे ही एक साल तक रहे तो दिल्ली जीत लेंगे।’

बोस आगे लिखते हैं, ‘ये उनका मायावती के प्रति झुकाव ही था। यही वजह थी कि करीब तीन साल पहले मुलायम सिंह यादव के शासनकाल के दौरान उन्हें बिल्कुल किनारे कर दिया गया था। उन्होंने 2007 के चुनाव से पहले ही मायावती के जीतने का अनुमान लगा दिया था।’

पहले ही ले ली थी रिटायरमेंट: HT की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इलाहाबाद हाईकोर्ट में उनकी नियुक्ति को चुनौती मिलने के बाद शशांक को कैबिनेट मिनिस्टर की रैंक दे दी गई थी। मायावती की सरकार में शशांक इतने ताकतवर हो गए थे कि उनसे मिलने के लिए बड़े से बड़े मंत्रियों की लाइन लगा करती थी। शशांक पहले और आखिरी ऐसे अधिकारी थे जो आईएएस न होते हुए भी राज्य के कैबिनेट सेक्रेटरी बने थे।

साल 2012 में सूबे में समाजवादी पार्टी की सरकार बनने के बाद उन्होंने अपनी सेवा से रिटायरमेंट ले लिया था और राजनीति और अफसरशाही से दूर दिल्ली आ गए थे। हालांकि शशांक शेखर सिंह रिटायर तो साल 2010 में ही हो गए थे, लेकिन मायावती की सरकार में उन्हें दो साल का एक्सटेंशन दे दिया था। लेकिन कार्यकाल पूरा होने से पहले ही उन्होंने इस्तीफा दे दिया था। साल 2013 में शशांक का दिल्ली के मैक्स अस्पताल में बीमारी के चलते निधन हो गया था।