आरजेडी सुप्रिमो लालू प्रसाद यादव अपने ठेठ गंवई अंदाज के लिए चर्चित हैं। छात्रसंघ की राजनीति से सियासत की सीढ़ियां चढ़ने वाले लालू जेपी आंदोलन के दौरान जेल भी गए। 1974 में जब बिहार में जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में आंदोलन हुआ तो लालू प्रसाद यादव भी उस आंदोलन में कूद पड़े और उन्हें जेल जाना पड़ा। हालांकि जेल में बंद रहने के बावजूद युवा लालू दशहरा का मेला देख आते थे। यह किस्सा खुद उन्होंने ही सुनाया था।
लालू यादव ने ज़ी टीवी के चर्चित टॉक शो, ‘जीना इसी का नाम है’ में बताया था कि जब वो जेल से पीएमएससीएच (पटना मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल) के कैदी वार्ड में शिफ्ट किए गए तो सिपाहियों को चकमा देकर अक्सर बाहर निकल जाते थे। दशहरा का मेला भी वो इसी तरह देख आते थे।
लालू प्रसाद यादव ने बताया था, ‘6 महीने तक पीएमसीएच के प्रिजनर वार्ड में जेल के रूप में हमने समय बिताया। जब मन होता था बाहर निकलने का, तब तार का फेंसिंग था, सिपाही गेट पर होते थे तो जाकर तार के नीचे पेट के बल सो जाते थे और निकल जाते थे। इसी तरह दशहरा में मेला देखने भी निकल जाते थे। उधर से आकर फिर तार के नीचे लेट गए और जेल में आ जाते थे।’
राबड़ी के नाम पर हंसने लगे थे: 1997 में लालू प्रसाद का नाम जब चारा घोटाले में आया और उन पर गिरफ्तारी की तलवार लटकने लगी तब उनके अनेक सामने बड़ा प्रश्न ये था कि उनके बाद प्रदेश की कमान कौन संभालेगा। राष्ट्रीय जनता दल के अंदर यह चर्चा जोरों पर थी कि मुख्यमंत्री कौन हो लेकिन लालू यादव की पत्नी राबड़ी देवी के नाम की किसी ने चर्चा नहीं की। राबड़ी देवी राजनीति से दूर घर संभालती थीं और इसी कारण कोई यह नहीं सोच सका कि वो राज्य की मुख्यमंत्री बन सकती हैं। खुद जब लालू प्रसाद यादव को यह सलाह दी गई तो वो हंस दिए थे।
अपनी आत्मकथा, ‘गोपालगंज से रायसीना: मेरी राजनीतिक यात्रा’ में उन्होंने इस बात का जिक्र किया है। लालू प्रसाद यादव किताब में लिखते हैं कि राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बनाने का सुझाव सीताराम केसरी ने दिया था जो कि उन दिनों कांग्रेस अध्यक्ष थे। लालू प्रसाद यादव ने लिखा है, ‘सीताराम केसरी ही थे जिन्होंने मुझे निजी तौर पर सुझाव दिया कि मेरी पत्नी राबड़ी देवी मुख्यमंत्री के रूप में कार्य कर सकती हैं। मुझे उनके सुझाव पर हंसी आ गई थी।’
आखिरकार राबड़ी देवी ने 25 जुलाई 1997 को बिहार की पहली महिला मुख्यमंत्री होने का गौरव प्राप्त किया। लालू प्रसाद यादव और राबड़ी देवी की इस बात के लिए खूब आलोचना भी हुई। राबड़ी देवी ज्यादा पढ़ी लिखी नहीं थीं और उन्हें राजनीति की भी समझ नहीं थी, इस कारण विपक्ष ने भी राजद को घेरा था।

