बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने इंदिरा सरकार की नीतियों के खिलाफ आंदोलन छेड़ दिया था। जय प्रकाश के नेतृत्व में प्रदर्शन करने वाले लालू देखते ही देखते बिहार के लोकप्रिय नेता बन गए थे। इमरजेंसी के दौरान वह करीब दो साल तक जेल में रहे थे। जेपी आंदोलन में एबीवीपी के कार्यकर्ता भी शामिल हुई थे, जिसमें रविशंकर प्रसाद और सुशील मोदी का नाम भी शामिल है। एक बार रविशंकर और सुशील मोदी ने एक लिस्ट से छेड़छाड़ कर दी थी, जिससे जेपी दोनों पर काफी गुस्सा हो गए थे।

लालू प्रसाद यादव ने अपनी आत्मकथा ‘गोपालगंज से रायसीना: मेरी राजनीतिक यात्रा’ में इस घटना का जिक्र किया है। लालू लिखते हैं, ‘जेपी ने संघर्ष के लिए 11 सदस्यीय मार्गदर्शक कमेटी का गठन किया था, जिसका मुझे समन्वयक बनाया गया था। उन्होंने अपने निजी सचिव सच्चिदानंद सिन्हा मीडिया को इस बारे में बताने और मुझे इस बारे में सूचित करने के लिए कहा, लेकिन उन्होंने ये जानकारी पहले ही लीक कर दी। रविशंकर और सुशील मोदी ने मेरे खिलाफ षड्यमंत्री रचा और मेरा नाम लिस्ट से बाहर कर दिया।’

चुपचाप निकले रविशंकर और सुशील मोदी: लालू ने बताया, ‘मैं ये देखकर हैरान रह गया और जेपी को इस बारे में बताया तो वह भी स्तब्ध रह गए थे। उन्होंने रविशंकर और अन्य एबीवीपी के लोगों को अपने घर बुलाया। जेपी इस पर नाराज हो गए और उन्होंने कहा ‘मैंने लालू को समन्वयक घोषित किया था, तुम लोगो की हिम्मत कैसे हुई लिस्ट से छोड़छाड़ करने की।’ इससे रविशंकर और सुशील शांत हो गए और चुपचाप वहां से निकल गए। बाद में मेरा नाम फिर से शामिल किया गया।’

लालू के कारण दो बार बेघर हो गए थे नीतीश कुमार: साल 1990 में नीतीश कुमार कैबिनेट मंत्री थे, लेकिन 1990 में वीपी सिंह की सरकार गिरने के बाद नीतीश ने दिल्ली से बिहार का रुख किया। नीतीश बिहार आने के बाद गेस्ट हाउस में ठहरना चाहते थे, लेकिन उन्हें मुख्यमंत्री लालू यादव ने इजाजत नहीं दी। मजबूरन उन्हें अपने इंजीनियर दोस्त के सरकारी आवास में शरण लेनी पड़ी। लालू को जब इसकी खबर मिली तो उन्होंने इंजीनियर का तबादला दूसरी जगह कर दिया और नीतीश एक बार फिर बेघर हो गए थे। हालांकि बाद में वह अपने एक बिजनेमैन दोस्त के घर पर रुके थे।