बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) आज अपना 73वां जन्मदिन मना रहे हैं। बिहार के फुलवरिया में जन्में लालू का सियासी सफर ‘फर्श से अर्श’ की चढ़ाई जैसा रहा है। निम्न मध्यमवर्गीय परिवार में जन्में लालू को शुरुआती दिनों में तमाम मुश्किलों का सामना करना पड़ा। न तो रहने को ढंग का घर था और न ही दूसरी सुविधाएं। 6 भाई-बहनों में पांचवें नंबर के लालू का परिवार दूध का व्यवसाय करता था। हालांकि इससे इतनी आमदनी नहीं होती थी कि सभी जरूरतें पूरी की जा सकें।
मां ने गुस्से में भेजा था पटना: गांव के प्राथमिक विद्यालय से शुरुआती पढ़ाई लिखाई के बाद लालू यादव अपने सबसे बड़े भाई मुकुंद राय के साथ पटना आ गए। पटना आने की कहानी भी दिलचस्प है। दरअसल, एक बार लालू के गांव में हींग बेचने वाला आया। उसने हींग का झोला एक कुएं के पास रख दिया।
इसी दौरान लालू ने शरारत वस हींग का झोला कुएं में फेंक दिया। इस पर खूब हंगामा मचा। हींग बेचने वाले ने लालू के परिवार से शिकायत की। इसी दौरान लालू के भाई मुकुंद राय पटना से अपने घर आए हुए थे। उन्हें पटना के वेटनरी कॉलेज के फार्म हाउस में काम मिल गया था। लालू की मां ने उन्हें मुकुंद के साथ पटना भेजने की ठान ली।
प्रिंसिपल ने की पढ़ाई की व्यवस्था: प्राइमरी और मिडिल स्कूल की पढ़ाई के बाद लालू ने पटना के मिलर हाईस्कूल में दाखिला लिया। अपनी आत्मकथा ‘गोपालगंज से रायसीना: मेरी राजनीतिक यात्रा’ में लालू यादव लिखते हैं, ‘मिलर स्कूल के प्रिंसिपल नंद किशोर सहाय को जब मैंने बताया कि मैं गरीब परिवार से हूं और मेरे पास किताबें और स्टेशनरी के पैसे नहीं हैं, तो उन्होंने निर्धन छात्र कोष से मेरे लिए स्कॉलरशिप की व्यवस्था कर दी। मैं हर दिन 5 किलोमीटर पैदल चलकर स्कूल जाता था। धीरे-धीरे मिलर हाईस्कूल में मेरी पहचान बनने लगी। खेलों में मैं बढ़-चढ़कर भाग लेता था, खासकर फुटबॉल में।
CM बनते ही बदल दिया स्कूल का नाम: कई वर्षों बाद जब लालू प्रसाद यादव बिहार के मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने पटना के मिलर हाईस्कूल का नाम बदलने का आदेश दे दिया। इसकी वजह बताते हुए लालू कहते हैं कि स्कूल के मूल नाम के खिलाफ मेरे मन में कोई दुर्भावना नहीं थी, लेकिन मुझे लगा कि बिहार के किस सम्मानित व्यक्ति के नाम पर स्कूल का नाम होना चाहिए।
इसलिए मिलर की जगह स्कूल का नाम देवीपद चौधरी के नाम पर कर दिया गया, जो कि एक स्वतंत्र सेनानी थे और ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ के दौरान अपनी जान गंवाई थी। देवीपद चौधरी भी मिलर स्कूल में ही पढ़े थे, इसलिए इससे अच्छा दूसरा नाम नहीं हो सकता था।
जेपी ने 200 रुपये दिये तो रो पड़े थे लालू: पटना में पढ़ाई के दौरान ही लालू यादव जेपी यानी जयप्रकाश नारायण के संपर्क में आए। उन दिनों में छात्र आंदोलन चरम पर था। लालू को जेल भी जाना पड़ा। इसी दौरान का एक किस्सा साझा करते हुए लालू अपनी आत्मकथा में लिखते हैं, ‘एक बार जेपी ने मुझे कदमकुआं वाले अपने घर पर बुलाया।
बातों-बातों में उन्होंने मेरी आर्थिक स्थिति के बारे में पूछा। मैंने उनसे अपनी आर्थिक विपन्नता के बारे में बताया और 200 रुपये मांगे। जेपी ने तुरंत अपनी दराज खोली और मुझे पैसे दे दिए। इसके बाद मेरी आंखों से आंसू निकल आए। जेपी ने अपने सचिव सच्चिदानंद को मेरे परिवार की देखरेख और आर्थिक मदद करने के लिए भी कहा।