बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव को चारा घोटाले में जमानत मिल गई है। कुछ समय दिल्ली में बिताने के बाद लालू अब बिहार पहुंच चुके हैं। पहली बार इस घोटाले में लालू की साल 1997 में गिरफ्तारी हुई थी। इस दौरान लालू को गिरफ्तार करने पहुंची सीबीआई टीम के भी पसीने छूट गए थे। सीबीआई के जॉइंट डायरेक्टर यू.एन बिस्वास के नेतृत्व में टीम लालू को गिरफ्तार करने पहुंची और वह तब बिहार के मुख्यमंत्री थे।

लालू प्रसाद यादव ने अपनी आत्मकथा गोपालगंज से रायसीना: मेरी राजनीतिक यात्रा’ में इस घटना का जिक्र किया है। लालू यादव बताते हैं, ‘सीबीआई के जॉइंट डायरेक्टर मुझे गिरफ्तार करने पर आतुर थे। सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल मेरी गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी। मैंने भी घोषणा कर दी थी कि मैं निर्धारित तिथि पर खुद आत्मसमर्पण कर दूंगा। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि वो मुझे गिरफ्तार करने पर क्यों आतुर थे।’

लालू प्रसाद यादव आगे लिखते हैं, ‘मुझे गिरफ्तार करने के लिए बिस्वास दानापुर के सेना मुख्यालय पहुंच गए थे और वहां अधिकारियों से मदद मांगी थी। ये सब देखकर सेना के अधिकारी भी हैरान रह गए थे। क्योंकि ऐसा पहले कभी नहीं देखा गया था कि एक सामान्य व्यक्ति के गिरफ्तार करने के लिए सशस्त्र बलों से संपर्क किया गया हो। सेना ने बिस्वास की मदद की गुहार को खारिज कर दिया था। मैं भी सीबीआई अधिकारियों की कार्रवाई से हैरान रह गया था।’

गृह मंत्री ने दी थी सफाई: लालू प्रसाद यादव बताते हैं, ‘बिस्वास की इस कार्रवाई की गूंज संसद तक सुनाई दी। कांग्रेस, वामपंथी दलों ने सीबीआई की इस कार्रवाई का विरोध किया। तत्कालीन गृह मंत्री इंद्रजीत गुप्ता ने संसद को बताया था कि सीबीआई अधिकारी ने सुरक्षा के मुद्दे पर मुख्य सचिव से मदद नहीं मिल पाने के बाद ही सेना से संपर्क किया था। लेकिन गुप्ता ने ये भी स्वीकार किया था कि बिस्वास मुझे गिरफ्तार करने की जल्दी में थे।’

पत्रकार बनकर किया था फोन: लालू प्रसाद यादव उस दौरान बिहार के मुख्यमंत्री थे और लाल कृष्ण आडवाणी के रथ को रोकना चाहते थे। आडवाणी के साथ बहुत सारे समर्थक थे और वो रथ यात्रा के बीच में गेस्ट हाउस में रुके हुए थे। लालू ने पत्रकार बनकर गेस्ट हाउस में फोन किया था और उनके समर्थकों के बारे में जानकारी ली थी। जब ये पक्का हो गया कि आडवाणी वहां अकेले हैं तो उन्हें तुरंत गिरफ्तार करने का आदेश दे दिया था।