2 अक्टूबर 2019 को महात्मा गांधी की 150 वीं जयंती मनाई जाएगी। गुजरात के पोरबंदर में जन्मे महात्मा गांधी को यूं कि देश का राष्ट्रपिता नहीं कहा जाता। जिन अंग्रेजों को गोली बारूद से देश से बाहर नहीं निकाला जा सका उन्हें बापू ने बिना हथियार उठाए बाहर निकाल दिया। यही वजह कि आज बापू के जाने के इतने साल बाद भी हम उन्हें याद करते हैं। बापू के बारे में कई किस्से और कहानियां तो आपने सुने ही होंगे। इसके पीछे उनके कई अहम योगदान हैं। हम सभी जानते हैं कि बापू जहां भी नजर आते थे धोती में ही नजर आते थे। पर क्या आप जानते है कि महात्मा गांधी ने आखिर कपड़ों का त्याग क्यों किया ? और उनके धोती पहनने के पीछे क्या वजह थी? आइए आज इतिहास के इस पहलू से रूबरू होते हैं। जिसकी वजह से बापू ने धोती पहननी शुरू की थी।
जब गांधी ने जूता न पहनने का लिया फैसलाः महात्मा गांधी उर्फ मोहनदास करमचंद गांधी ने इंगलैंड से अपनी पढ़ाई पूरी की। उस समय वह सूट-बूट टाई पहना करते थे। लेकिन उनके भारत आने के बाद एक वाक्ये ने उन्हें बदल दिया। यह किस्सा है 15 अप्रैल 1917 का जब गांधी जी दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद नीति आंदोलन चलाने के बाद भारत के चंपारण के मोतिहारी में किसानों से मिलने पहुंचे। उस समय उन्होंने शर्ट धोती घड़ी सफेद गमछा, चमड़े के जूते टोपी इत्यादि पहना हुआ था। इस दौरान किसानों ने बापू को उन पर अंग्रेजों द्वारा किए जाने वाले जुल्म के बारे में जानकारी दी। किसानों की दयनीय स्थिति सुन वह काफी आहत हुए। किसानों ने उन्हें बताया कि अंग्रेज नील की खेती पर काम करने वाले नीची जाति के लोगों को जूते पहनने नहीं देते थे। जिसके बाद बापू ने फैसला किया कि वो भी कभी जूता नहीं पहनेंगे। इस वजह से गांधी जी ने जूते पहनने छोड़ दिए।
उतारकर दिया अपना चोगाः गांधी जी की पत्नी कस्तूरबा गांधी एक बार खेती करने वाली महिलाओं को सफाई के बारे में जानकारी दे रही थी। इस दौरान वहां मौजूद एक महिला ने उनसे कहा कि बा आप मेरे घर की हालत देखिए क्या आपको यहां कोई सूटकेस या अलमारी नजर आ रही है जो कपड़ो से भरा हुआ हो। महिला ने बा को बताया कि उसके पास केवल एक ही साड़ी है जो उसने पहनी हुई है। अब वह ही उसे बताए कि वह कैसी साड़ी को साफ करे और कैसे उसे धोए। अगर वह अपनी साड़ी धोने के लिए डालती है तो फिर वह क्या पहनेगी ? महिला ने बा से कहा कि वह महात्मा गांधी से कहकर उन्हें दूसरी साड़ी दिलवा दें ताकि वह रोज साड़ी धोकर पहन सके। इसके बाद गांधी जी ने अपना चोगा महिला को दे दिया और चोगा ओढ़ना हमेशा के लिए बंद कर दिया। इसके बाद कुछ साल गांधी जी कपड़े और अभिव्यक्ति को लेकर प्रयोग करते रहे।
खादी पहनने ली प्रतिज्ञाः साल 1918 में बापू अहमदाबाद में कारखाना मजदूरों की रैली में शामिल हुए। वहां उन्होंने देखा कि जितने लंबे कपड़े से बनी वह पगड़ी पहना करते थे। उससे कम से चार लोगों के तन ढकने का कपड़ा हो जाता था। यह आभास होने पर उन्होंने पगड़ी पहनना भी छोड़ दिया। इसके बाद साल 1920 में खेड़ा में उन्होंने खादी को लेकर प्रतिज्ञा ली कि आज के बाद वो ताउम्र केवल हाथ से बने हुए खादी के बने कपड़े का ही इस्तेमाल करेंगे। यह प्रतिज्ञा उन्होंने इसलिए ली ताकि उन्हें कपास की खेती के लिए मजबूर न किया जा सके। गांधी जी का कहना था कि उन्होंने इस तर्क के पीछे की सच्चाई को महसूस किया कि उनके पास बनियान टोपी नीचे तक पहनने के लिए धोती थी।
यह पहनावा अधूरा सच बयां करता था जहां पर देश में लाखों लोग निर्वस्त्र रहने के लिए मजबूर थे। वहां चार इंच की लंगोट के लिए लोगों का संघर्ष उनके जीवन की मुश्किल सच्चाई को बयां कर रहा था। उनका कहना था कि वह उन लोगों का दर्द क्या समझ पाते जब तक खुद उनकी पंक्ति में आकर खड़े नहीं होते। तब तक वह उनके अहसास को महसूस नहीं कर पाते। इसके बाद उन्होंने केवल धोती पहनना शुरू कर दिया। इस तरह गांधी जी का कपड़ों के हो रहे बहिष्कार सत्याग्रह आंदोलन का प्रतीक बन गया। यही उनके अंतिम समय तक पोशाक बनी रही।