कांग्रेस के दिवंगत नेता माधव राव सिंधिया का 30 सितंबर 2001 को हवाई जहाज दुर्घटना में आकस्मिक निधन हो गया था। माधव राव को गांधी का परिवार का करीबी नेता माना जाता था। यही वजह थी कि उनके निधन के तुरंत बाद बेटे ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भी कांग्रेस से अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की थी। कांग्रेस में आने वाले सिंधिया परिवार के माधव राव पहले शख्स थे। जबकि उनकी मां राजमाता विजयाराजे सिंधिया तो बीजेपी की संस्थापक सदस्यों में शामिल थीं।

विजयाराजे नहीं चाहती थीं कि उनका बेटा विपरीत विचारधारा पर चले और विरोधी दल में शामिल हो जाए, लेकिन माधव राव सिंधिया अपने फैसले और उन पर डटे रहने के लिए ही जाने जाते थे। उन्होंने बिना किसी की परवाह किए कांग्रेस का हाथ थामा और केंद्रीय मंत्री तक बने। सियासी गलियारों में चर्चा थी कि राजमाता और माधव राव के रिश्तों में तल्खियों का एक मुख्य कारण ये भी था।

1975 में इमरजेंसी लगने के बाद जनसंघ की बड़ी नेता होने के कारण विजयाराजे सिंधिया को गिरफ्तार कर दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद कर दिया गया था। वरिष्ठ पत्रकार और लेखक रशीद किदवई एक इंटरव्यू में बताते हैं, ‘इमरजेंसी के दौरान माधव राव सिंधिया नेपाल चले गए थे। राजमाता 1970 के बाद राजनीति में सक्रिय भी नहीं रहना चाहती थीं, लेकिन बाल आंगरे की सलाह पर वह ऐसा नहीं कर पाईं।’

नेपाल बॉर्डर से लौट आती हैं विजयाराजे: किदवई बताते हैं, ‘इमरजेंसी के बाद माधव राव कलकत्ता से नेपाल चले गए थे। नेपाल जाने से पहले उनकी ख्वाहिश थी कि मां और दोनों बहनें भी उनके साथ आ जाएं। वो राजमाता को इसको लेकर एक संदेश भी भेजते हैं और विजयाराजे तैयार भी हो जाती हैं। विजयाराजे मोटर से भारत-नेपाल बॉर्डर तक पहुंच जाती हैं। लेकिन सलाहकार सरदार आंगरे कहते हैं- ये आप क्या कर रही हैं? देश आपकी तरफ देख रहा है और आप यहां से जा रही हैं।’

इसके बाद, राजमाता अपने बेटे के फैसले को दरकिनार कर देती हैं। वह वापस भारत आ जाती हैं। 3 सितंबर 1975 को विजयाराजे सिंधिया को तिहाड़ जेल में लाया जाता है।

दिवंगत राजनेता और लेखक मृदुला सिन्हा अपनी किताब ‘राजपथ से लोकपथ पर’ में लिखती हैं, ‘ग्वालियर के राजमहल से तिहाड़ जेल में विजयाराजे को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा था। यहां उनकी मुलाकात जयपुर की राजमाता गायत्री देवी हुई थी। दोनों को एक ही शौचालय इस्तेमाल करना पड़ता था। शौचालय में पानी का नल तक भी नहीं होता था। जेल में उनकी पहचान केवल कैदी नंबर 2265 से होती थी।’