भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने फिरोज गांधी से साल 1942 में शादी की थी। इंदिरा के पिता नहीं चाहते थे कि उनकी बेटी फिरोज़ से शादी करें। फिरोज़ भी कांग्रेस पार्टी के सदस्य थे इसलिए नेहरू उन्हें पहले से जानते भी थे। लेकिन इंदिरा ने अपने पिता की बात को दरकिनार कर फिरोज गांधी से शादी की। लेकिन दोनों के बीच जल्द मतभेद भी शुरू हो गए थे। दोनों के रिश्ते में तल्खियां आने के कई कारण थे।
‘फिरोज : द फॉरगेटेन गांधी’ में बार्टिल फाल्क ने एक ऐसे ही किस्से का जिक्र किया है। साल 1984 में, फिरोज गांधी के भतीजे सरूश गांधी ने बार्टिल को बताया था, ‘दोनों की शादी के पक्ष में हमारा परिवार कभी नहीं था। बावजूद इसके हमने इंदिरा गांधी का अपने घर में स्वागत किया और उन्हें घर में रहने की इजाजत भी दी। लेकिन वह ये कभी नहीं भूल सकीं कि वह नेहरू की बेटी हैं और उन्होंने खुद को श्रेष्ठ दिखाने के लिए परिवार के बीच एक माहौल भी बनाया।’
सरूश आगे बताते हैं, ‘खैर, शादी के कुछ ही महीनों में उन्होंने घर छोड़ दिया। मेरे अंकल भी लखनऊ चले गए। यहीं से उन्होंने अपनी राजनीतिक जमीन भी तैयार की। उन्होंने इंदिरा जी द्वारा परिवार का किया जा रहा तिरस्कार भी कभी सहन नहीं किया और यहीं से दोनों के रिश्ते में खटास आनी शुरू हुई थी।’ इंदिरा गांधी की करीबी और उनकी जीवनी लिखने वाली पुपुल जयकर ने बताया था, शादी के कुछ ही समय बाद इंदिरा और फिरोज अपने किराए के घर में शिफ्ट हो गए थे।
इंदिरा ने सजाया था घर: पुपुल ने बताया था, ‘इंदिरा को इस घर को लेकर एक अलग ही तरह का चाव था। वह उस घर को सजा रही थीं और फिरोज ने उस घर के लिए खुद फर्नीचर भी तैयार किया था। फिरोज पहले से ही लकड़ी का काम जानते थे। ये देखने में बिल्कुल ऐसा लग रहा था जैसे ये उनका खुद का घर हो या ये उनका इलाहाबाद के स्टेनली रोड स्थित कोई शानदार बंगला हो, जहां गांधी परिवार का खुद का घर भी था।’
साल 1944 में इंदिरा ने राजीव गांधी को जन्म दिया। इसके बाद उनके दिल में राजनीति की दिलचस्पी जागने लगी। वह अपने पिता का साथ देने के लिए मायके आ गईं। फिरोज़ दूसरी तरफ अकेले पड़ गए। इसके बाद दोनों के रिश्ते पहले की तरह देखने को नहीं मिले। वह अपने पिता का कामकाज में हाथ बंटाने लगीं। फिरोज भी ‘नेशनल हेरल्ड’ की जिम्मेदारी संभालने लगे। साल 1946 में इंदिरा ने दूसरे बच्चे संजय गांधी को जन्म दिया था।