राजमाता विजयाराजे सिंधिया की आज 102वीं जयंती है। विजयाराजे सिंधिया जनसंघ की बड़ी नेता थीं। यही वजह थी कि साल 1975 में लगी इमरजेंसी के दौरान उन्हें जेल में डाल दिया गया था। इमरजेंसी लगने के बाद शुरुआत में वह अंडरग्राउंड हो गई थीं, लेकिन जैसे ही वह ग्वालियर पहुंचीं तो उन्हें गिरफ्तार कर दिल्ली की तिहाड़ जेल भेज दिया गया था।
राजमाता विजयाराजे के बेटे माधव राव सिंधिया भी उस दौरान जनसंघ के सांसद हुआ करते थे। माधव राव को जब इमरजेंसी की खबर मिली तो वह मुंबई में गोल्फ खेल रहे थे। इंदिरा गांधी की सरकार ने माधव राव के खिलाफ भी गिरफ्तारी का वारंट जारी कर दिया था। लेकिन तब तक वह भारत की सीमा लांघकर नेपाल जा पहुंचे थे। क्योंकि वहां उनकी ससुराल थी।
माननी पड़ी थी शर्त: विजयाराजे को जब इसकी सूचना मिली तो वह काफी चिंतित हो गई थीं। इंदिरा गांधी ने उनके सामने कुछ शर्तें रखी थीं, इसमें से एक थी कि वह राजनीति से दूर रहेंगी तो उनके बेटे की गिरफ्तारी नहीं की जाएगी। राजमाता ने तत्कालीन पीएम की ये बात स्वीकार कर ली और बाद में माधव राव के खिलाफ जारी गिरफ्तारी का वारंट वापस ले लिया गया। लेकिन राजमाता को एक तरफ ये डर था कि सरकार उनके बेटे पर बेवजह दबाव न बनाए और जबरन कांग्रेस का हिस्सा न बना ले।
इंदिरा गाधी ने माधव राव सिंधिया के आगे भी दो शर्तें रख दी थीं। इसमें एक थी कि अगर वह कांग्रेस में शामिल होते हैं तो उनकी शाही जायदाद को कुछ नहीं होगा, अन्यथा सभी संपत्तियों को जब्त कर लिया जाएगा। विजयाराजे सिंधिया के भाई ध्यानेंद्र सिंह ने एक इंटरव्यू में बताया था, जब राजमाता और माधव के संबंध खराब हुए तो कांग्रेस ने भी खूब फायदा उठाया था। इंदिरा गांधी ने हम लोगों को डराने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। हमारे ऊपर चोरी-डकैती समेत सभी संगीन आरोप लग चुके थे।
राजनीति छोड़ने का मन बना लिया था: इमरजेंसी के बाद वैसी ही हुआ जिसका अंदेशा राजमाता को पहले से था। साल 1980 में माधव राव ने जनसंघ से अपना नाता तोड़ कांग्रेस का हाथ थाम लिया था। दूसरी तरफ, इसी साल जनसंघ को नया रूप दिया गया था और इसका नाम भारतीय जनता पार्टी कर दिया गया था। लेखक रशीद किदवई ने एक इंटरव्यू में बताया था, राजमाता के सलाहकार सरदार बाल आंग्रे का उनके ऊपर गहरा प्रभाव था। ऐसा नहीं था कि वह राजनीति नहीं छोड़ना चाहती थीं, लेकिन बाल आंग्रे उन्हें ऐसा करने से बार-बार रोक रहे थे।
माधव राव सिंधिया को ये बात बिल्कुल भी पसंद नहीं थी कि उनकी मां बाल आंग्रे पर इतना विश्वास करें। एक बार तो उन्होंने बाल आंग्रे और उनमें से किसी एक को चुनने तक की भी शर्त रख दी थी। हालांकि राजमाता के अंतिम दिनों में मां और बेटे के रिश्तों में काफी सुधार हो गया था। वसुंधरा राजे ने एक इंटरव्यू में बताया था, जब भाई अस्पताल आते थे तो उन्हें देखकर मां के चेहरे पर एक अलग खुशी नजर आती थी और बिल्कुल चमक उठती थीं। 25 जनवरी 2001 को विजयाराजे सिंधिया का निधन हो गया था।