पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के सामने इंदिरा गांधी ने जब फिरोज से शादी करने की इच्छा जाहिर की थी तो उन्होंने इसका विरोध किया था। हालांकि फिरोज गांधी भी कांग्रेस से जुड़े थे और नेहरू उन्हें पहले से जानते थे, लेकिन वे दोनों की शादी के खिलाफ थे। हालांकि बाद में नेहरू ने इंदिरा के फैसले को न चाहते हुए भी स्वीकार किया। शादी के कुछ वक्त बाद ही इंदिरा और फिरोज के रिश्तों में तल्खियां आनी शुरू हो गई थीं।
इंदिरा ससुराल छोड़कर वापस इलाहाबाद आ गईं। वहीं, फिरोज गांधी ‘नेशनल हेराल्ड’ अखबार की जिम्मेदारी संभालने लगे। इसके बाद इंदिरा और फिरोज के बीच रिश्ते कभी पहले जैसे नहीं हो पाए। साल 1958 में पहली बार फिरोज गांधी को दिल का दौरा पड़ा तो इंदिरा गांधी भूटान जा रही थीं। वह जल्दबाजी में भारत वापस लौटीं, लेकिन तब तक फिरोज खतरे से बाहर आ चुके थे। दूसरी बार साल 1960 में जब फिरोज की तबीयत खराब हुई, तब भी इंदिरा उनके साथ नहीं थीं।
इंदिरा गांधी को जब फिरोज की तबीयत के बारे में पता चला तो वह आनन-फानन में त्रिवेंद्रम से दिल्ली पहुंचीं। हवाई अड्डे से सीधा वह अस्पताल पहुंचीं, जहां उनके पति फिरोज गांधी भर्ती थे। अंतिम समय में इंदिरा फिरोज के साथ ही मौजूद थीं। 8 सितंबर 1960 को फिरोज ने दुनिया को अलविदा कह दिया था। ‘बीबीसी’ के मुताबिक, जब उन्हें पहली बार दिल का दौरा पड़ा था तो उन्होंने अपने दोस्तों से कह दिया था कि वो हिंदू तरीकों से अपनी अंतयेष्टि करवाना पसंद करेंगे, क्योंकि उन्हें अंतिम संस्कार का पारसी तरीका पसंद नहीं था जिसमें शव को चीलों के लिए खाने के लिए छोड़ दिया जाता है।
पंडित नेहरू भी थे हैरान: लेखक कैथरीन फ्रैंक ने अपने किताब ‘द लाइफ ऑफ इंदिरा नेहरू गांधी’ में भी इसका जिक्र किया है। इंदिरा ने इससे पहले ये भी सुनिश्चित किया था कि उनके शव को दाह संस्कार के लिए ले जाने से पहले पारसी रस्मों का भी पालन किया जाए। 9 सितंबर को जब फिरोज गांधी का शव निगमबोध घाट की तरफ बढ़ा तो सड़क के दोनों तक लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा था। 16 साल के राजीव गांधी ने फिरोज गांधी को मुखाग्नि दी थी। उनका अंतिम संस्कार हिंदू रीति-रिवाजों से किया गया था। फिरोज गांधी के अंतिम दर्शन करने पहुंचे लोगों को देखकर पंडित नेहरू भी हैरान रह गए थे।
बर्टिल फाक अपनी किताब फिरोज-द फॉरगॉटेन गांधी में लिखते हैं, वहां मौजूद भीड़ को देखकर नेहरू के मुंह से निकला था, मुझे पता नहीं था कि फिरोज लोगों के बीच इतने लोकप्रिय हैं। पति के निधन के बाद इंदिरा गांधी अंदर से टूट गई थीं। कई सालों बाद एक इंटरव्यू में इंदिरा ने कहा था, फिरोज गांधी की मौत ने मुंझे अंदर तक हिला दिया था। फिरोज अपने साथ मेरे जीवन के सारे रंग भी ले गए। यही वजह है कि मैं कई सालों तक सफेद रंग की साड़ी ही पहनती रही।