इंद्र कुमार गुजराल (Inder Kumar Gujral) अप्रैल 1997 में देश के 12वें प्रधानमंत्री बने। हालांकि मई 1998 में उनकी सरकार गिर गई। वे महज 13 महीने पीएम की कुर्सी पर रहे, लेकिन इस छोटे से कार्यकाल में उन्होंने तमाम बड़े काम किये। मसलन, गुजराल के कार्यकाल में पड़ोसी मुल्कों से कूटनीतिक रिश्ते सुधारने की ठोस शुरुआत हुई।
इंद्र कुमार गुजराल साफ-सुथरी और नरम छवि के नेता थे। वे सिद्धांतों की राजनीति में यकीन करते थे। जून 1975 में जब इंदिरा सरकार ने देश में इमरजेंसी लगाई तो गुजराल सूचना एवं प्रसारण मंत्री हुआ करते थे। उन्हीं दिनों कांग्रेस ने दिल्ली के रामलीला मैदान में एक रैली आयोजित की। इसमें इंदिरा गांधी के अलावा उनके बेटे-बहू, राजीव और सोनिया के अलावा पोते-पोती राहुल और प्रियंका भी मौजूद थे। हालांकि सरकारी टीवी चैनल दूरदर्शन पर इस रैली का प्रसारण नहीं किया गया।
गुजराल का मानना था कि ये पार्टी का निजी कार्यक्रम था, इसलिये सरकारी खर्चे पर उसका प्रसारण सिद्धांतों के खिलाफ है। हालांकि इस घटना से संजय गांधी बेहद नाराज हो गए। एक खेमे ने संजय गांधी के कान भरे और कहा कि गुजराल पार्टी की बात नहीं मान रहे हैं। बाद में गुजराल से सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय का जिम्मा छीन लिया गया और उनको दिल्ली से दूर रखने के इरादे से मॉस्को में भारत का राजदूत बनाकर भेज दिया गया।
गुजराल की कलाई पर टिक गई निगाह: गुजराल जिस वक्त मॉस्को में भारत के राजदूत थे, उन्हीं दिनों इंदिरा गांधी वहां दौरे पर पहुंचीं। उनके स्वागत में क्रेमलिन में भव्य कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में सोवियत संघ के तत्कालीन प्रमुख लियोनिड ब्रेजनेव (Leonid Brezhnev) भी मौजूद थे। उन्होंने सूटेड-बूटेड गुजराल को देखा उनकी नजर गुजराल की कलाई पर ठहर गई।
इंदिरा कहती रहीं पर नहीं दी घड़ी: वरिष्ठ पत्रकार और लेखक रशीद किदवई अपनी किताब ‘भारत के प्रधानमंत्री’ में लिखते हैं कि आईके गुजराल ने अपने हाथ में एचएमटी (HMT) की चमचमाती घड़ी पहनी थी। ब्रेजनेव को उनकी घड़ी भा गई और इसके बारे में एक के बाद एक सवाल करने लगे। थोड़ी देर बाद जब इंदिरा गांधी ने देखा कि ब्रेजनेव घड़ी पर ही अटके हैं तो उन्होंने गुजराल से कहा, ‘इसको दे दो ना… उतार कर!’ लेकिन गुजराल को ये ठीक नहीं लगा।
बाद में भेजी थीं कई घड़ियां: थोड़ी देर बाद इंदिरा गांधी ने दोबारा कहा, ‘अरे भाई, अगर घड़ी उनको इतनी अच्छी लग रही है तो दे क्यों नहीं देते?’ गुजराल ने कूटनीतिक शिष्टाचार का हवाला देते हुए ब्रेजनेव को अपनी कलाई से उतार कर घड़ी देने से इंकार कर दिया, लेकिन उन्होंने वादा किया कि वो ब्रेजनेव को वैसी ही घड़ी लाकर देंगे। बाद में गुजराल ने अपना वादा निभाया। एक नहीं, बल्कि उसी तरह की कई घड़ियां रूसी प्रमुख ब्रेजनेव को भेंट की।