आज कहानी उस अपहरण कांड की जिसने समूचे देश को सन्न करके रख दिया था। साल 1989, तारीख 8 दिसंबर। श्रीनगर में भीषण ठंड थी लेकिन इस दिन अचानक से गर्मी बढ़ गई। दोपहर के साढ़े तीन बजे थे, एक 22-23 साल की युवती लालदेड़ मेडिकल हॉस्पिटल से बाहर निकली। फिर थोड़ी देर बाद वह युवती मिनी बस में सवार हो गई। मिनी बस नौगाम के रास्ते में कुछ दूर गई ही थी कि चार हथियार बंद लोग बस में चढ़े, ये सभी जम्मू कश्मीर लिब्रेशन फ्रंट से जुड़े थे।
इसके बाद उन लोगों ने उस युवती को घेर लिया और बस दूसरी दिशा में मुड़ गई। थोड़ी दूर जाने के बाद बस रूकी उन हथियारबंद लोगों ने युवती को बस से नीचे उतरने को कहा। बस यही वह समय था जिसके बाद देश भर में हड़कंप मचने वाला था। थोड़ी देर बाद युवती को अगवा करके गए लोगों ने एक अखबार के कार्यालय में फोन कर कहा कि जम्मू कश्मीर लिब्रेशन फ्रंट (जेकेएलएफ) ने भारत के केंद्रीय गृह मंत्री मुफ़्ती मोहम्मद सईद की बेटी का अपहरण कर लिया है।
दरअसल, जिस युवती का अपहरण हुआ था, उसका नाम रूबिया सईद था। रूबिया सईद, लालदेड़ मेडिकल हॉस्पिटल में मेडिकल इंटर्न थी। इस अपहरण कांड के वक्त फारूक अब्दुल्ला जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री थे। रूबिया सईद को रिहा करने के बाद 5 आतंकियों को छोड़ने की मांग रखी गई, जिनमें गुलाम नबी भट, मोहम्मद अल्ताफ, नूर मोहम्मद कलवाल, जाविद जरगर और अब्दुल हमीद शेख जैसे नाम शामिल थे। फारुख अब्दुल्ला ने मांग ठुकरा दी, लेकिन जब सरकार को बर्खास्त करने का डर दिखा तो वह मान गए। केंद्रीय गृह मंत्री इस अपहरण कांड के कुछ वक्त पहले ही देश में विश्वनाथ प्रताप सिंह की नई नवेली सरकार बनी थी, वह रिस्क नहीं लेना चाहते थे।
अपहरण भी किसी ऐसे-वैसे व्यक्ति का नहीं बल्कि देश के तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री की बेटी का हुआ था। अपहरणकर्ताओं से बातचीत के सारे चैनल खोल दिए गए। इंद्र कुमार गुजराल, जार्ज फर्नांडिस व आरिफ मोहम्मद खान पर्दे के पीछे से बातचीत के प्लान को अंजाम दे रहे थे। 8 तारीख को अपहरण हुआ, लेकिन समझौता होते-होते 13 दिसंबर की तारीख आ गई। 13 दिसंबर 1989 को भारत सरकार ने जेकेएलएफ के कैदियों को रिहा किया और कुछ घंटों बाद रूबिया को सोनवर स्थित जस्टिस मोतीलाल भट्ट के घर पहुंचा दिया गया। इसके बाद उसी रात को रुबिया को विशेष विमान से दिल्ली भेज दिया गया।
बेटी की सुरक्षित वापसी पर मुफ़्ती मोहम्मद सईद ने कहा कि वह पिता के रूप में खुश हैं लेकिन एक नेता के तौर पर मैं समझता हूं कि ऐसा नहीं होना चाहिए था। हालांकि, इस बीच में देश एक ही घटना से जुड़ी दो प्रतिक्रियाएं देख रहा था। इधर रुबिया दिल्ली आ रही थी तो उधर कश्मीर घाटी में चरमपंथियों की रिहाई की खुशी में गली गली में एक नारा गूंज रहा था- ”जो करे खुदा का खौफ वो उठा ले कलाश्निकोव”।