देश के कई हिस्सों में भीषण सर्दी की शुरुआत हो गई है। वहीं, ठंड की शुरुआत होते ही सांसों पर प्रदूषण की मार पड़ने लगती है। दरअसल, प्रदूषण अब एक राष्ट्रीय चिंता का विषय बन चुकी है। हालत यह है कि ज्यादातर लोगों के सामने सुरक्षित सांस लेना भी एक चुनौती बन गई है। और रोज वे सांसों की समस्या से दो-चार होते हैं।
दरअसल, इस मौसम में हवा भारी हो जाती है, जिसकी वजह से उसमें मौजूद धूल-धुआं आसानी से ऊपर नहीं जा पाता। इसी कारण प्रदूषण का स्तर बढ़ जाता है और वायु में मौजूद प्रदूषक तत्त्वों के कारण श्वास नली में सिकुड़न आ जाती है। इसके बाद व्यक्ति खांसी, घरघराहट और सांस लेने में तकलीफ के दौर से गुजरने लगता है। कई बार तो समय पर समस्या के कारण की पहचान नहीं हो पाने की वजह से यह परेशानी जटिल हो जाती है।
किस तरह करें पहचान
प्रदूषण की वजह से व्यक्ति के फेफड़े प्रभावित हैं या नहीं, यह तय करने के लिए सबसे पहले तो सांस लेने में दिक्कत की पहचान खुद के स्तर पर करनी पड़ती है। अगर असहजता होती है, तब चिकित्सक के पास जाकर जांच कराना सबसे प्राथमिक काम होना चाहिए।
आमतौर पर फेफड़ों के प्रभावित होने के बारे में स्पष्टता के लिए चिकित्सक पल्मोनरी फंक्शन जांच करते हैं। इससे पता चल पाता है कि फेफड़ों में दिक्कत की वजह से सांस लेने की प्रक्रिया बाधित हो रही है या नहीं। इसके बाद ही लक्षणों के उपचार की प्रक्रिया शुरू की जाती है।
हवा की मुश्किल
आज के समय वायु प्रदूषण कई तरह की स्वास्थ्य समस्याओं का जनक हो चुका है। सबसे ज्यादा यह फेफड़ों के सामान्य तरीके से काम करने की स्थितियों को प्रभावित कर सकता है। इसमें खासतौर पर अस्थमा से पहले से परेशान लोगों के सामने दिक्कत ज्यादा जटिल हो जा सकती है, क्योंकि प्रदूषण का स्तर अस्थमा और सीओपीडी को बढ़ा सकता है और श्वसन तंत्र के संक्रमण और फेफड़ों की समस्या को और जटिल कर सकता है। कई बार चिकित्सक कैंसर तक की आशंका जताते हैं।
वायु प्रदूषण से होती है कई तरह की परेशानी
वायु प्रदूषण से दिल के दौरे का खतरा भी बढ़ता है, इससे कोरोनरी धमनी रोग और आघात होता है। वाहनों की ज्यादा आवाजाही वाले इलाकों में रहने वाले लोगों में वायु प्रदूषण संबंधी स्वास्थ्य समस्याओं का जोखिम ज्यादा होता है। वायु प्रदूषण के संपर्क में ज्यादा वक्त रहने से सांस लेने में परेशानी, छाती में दर्द और श्वसन तंत्र की अतिसंवेदनशीलता देखी जा सकती है। जो बच्चे ओजोन प्रदूषण वाले दिनों में बाहरी गतिविधियों में ज्यादा हिस्सा लेते हैं, उन्हें अस्थमा होने की आशंका ज्यादा होती है।
क्यों बढ़ रहा वायु प्रदूषण
घर के अंदर वायु प्रदूषण में बाहरी वायु प्रदूषण का बड़ा योगदान है। इसके अलावा, घर के अंदर वायु प्रदूषण के स्रोतों में तंबाकू का धुआं, घर के अंदर खाना पकाना, निर्माण कार्य भी शामिल हैं। खाना पकाने और गर्म करने के लिए बायोमास र्इंधन, यानी लकड़ी, अपशिष्ट या पराली आदि जलाना प्रदूषण का एक बड़ा स्रोत है, जो सांस की समस्याएं पैदा करता है।
कैसे करें बचाव?
जोखिम को कम करने पर जोर देने के अलावा, लक्षणों से राहत के लिए उपचार के क्रम में अस्थमा के इलाज के लिए इस्तेमाल की जाने वाली दवाइयां कुछ राहत दे सकती हैं। इससे श्वास नली खुल सकती है और राहत मिलती है। जोखिम को कम करने के लिए बाहरी वायु प्रदूषकों के संपर्क को रोकना या कम करना जरूरी है।
खास कर हृदय या फेफड़ों के विकारों से पीड़ित लोग प्रदूषण के दिनों में बाहरी गतिविधियों को नियंत्रित कर सकते हैं। जब हवा की गुणवत्ता खराब हो, तो बाहरी व्यायाम को कम करना चाहिए और घर के अंदर रहना चाहिए। धूम्रपान और खाना पकाने जैसे स्रोतों के संपर्क को कम करना भी जरूरी है।
