जापानी लोगों ने अपने एक से बढ़कर एक अविष्कारों से दुनिया को बदल दिया है। एनीमे और मंगा से लेकर कराटे, जूडो और यहां तक ​​कि प्लेस्टेशन और निंटेंडो जैसे वीडियो गेम तक उन्हीं की देन हैं। जापानी लोगों के अविष्कारों ने हमारी जिंदगी को बेहतर बनाने में बेहद मदद की है। इंसान को अधिक प्रोडक्टिव बनाने और आलस को दूर करने का समाधान भी इन जापानियों के पास मौजूद है। उनका बेहतरीन आविष्कार है काइज़ेन (Kaizen)।

यह एक जेपनीस मैनेजमेंट फिलॉसफी है जो निरंतर सुधार पर केंद्रित है। कैज़ेन जापानी लोगों की सफलता की कुंजी है। दुनिया भर में कई कंपनियां अब काइज़न को एक स्थायी प्रतिस्पर्धा में बढ़त हासिल करने की रणनीति के रूप में देखती हैं। काइज़न दो शब्दों से बना है पहला काई (Kai) जो परिवर्तन का प्रतीक है और दूसरा ज़ेन (Zen), जिसका अर्थ है अच्छा। हालांकि इसे मूल रूप से व्यावसायिक संदर्भ में उपयोग करने के लिए बनाया गया था।

काइज़ेन के सिद्धांतों को व्यक्तिगत विकास और आलस्य पर काबू पाने के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है। केयर हॉस्पिटल्स, बंजारा हिल्स, हैदराबाद के मनोचिकित्सक सलाहकार डॉ मज़हर अली के अनुसार किसी भी काम को करने के लिए अगर तरकीब का इस्तेमाल किया जाए तो उस काम को छोटा और आसान बनाया जा सकता है। डॉक्टर मज़हर ने बताया कि नियमित रूप से छोटे-छोटे काम करके ना सिर्फ गति को बनाए रखा जा सकता है बल्कि धीरे-धीरे आलस पर भी काबू पाया जा सकता है। आइए एक्सपर्ट से जानते हैं कि काइजेन कैसे सफलता की कुंजी है और इसका इस्तेमाल करके कैसे आलस पर काबू पाया जा सकता हैं।

काइजेन कैसे सफलता की कुंजी है

मनोवैज्ञानिक डॉ. निशा खन्ना ने बताया कि काइज़ेन तकनीक में किसी भी स्थिति के मूल कारण का विश्लेषण करना भी शामिल है, क्योंकि इससे स्थिति को हल करने में मदद मिलेगी। इस तकनीक के मुताबिक आपको पहले समस्या को समझना होगा। फिर इसे हल करने के लिए एक योजना बनानी होगी। फिर ये जानना होगा कि किसी काम को करने में विफलता क्यों हासिल हुई? इस तकनीक के तहत योजना बनाएं कि अगली बार आप इसे बेहतर तरीके से कैसे कर सकते हैं।

डॉ. खन्ना के मुताबिक आलस हमारे स्वभाव का हिस्सा है लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि आप कोई काम पूरा नहीं कर सकते। आप काइज़ेन तकनीक को समझकर अधिक प्रोडक्टिव बन सकते हैं।

हेल्थ एंड फिटनेस

डॉ. अली के अनुसार, समय के साथ डाइट और एक्सरसाइज की आदतों में छोटे-छोटे बदलाव करने से संपूर्ण हेल्थ में महत्वपूर्ण सुधार हो सकते हैं। डॉ. खन्ना ने बताया कि काम करने की इच्छा नहीं होना या काम करते समय आलस्य होना हमारे शरीर में डोपामाइन के कम स्तर के कारण हो सकता है जो हमारे उत्पादकता के स्तर से जुड़ा हुआ है। उन्होंने नियमित रूप से व्यायाम करने और डाइट में मछली, अंडे, नट्स और सोयाबीन जैसे एल-टायरोसिन से भरपूर खाद्य पदार्थों को शामिल करने की सलाह दी है। ये फूड्स आपके डोपामाइन के स्तर को बढ़ाने में मदद करेंगे।

लर्निंग और व्यक्तिगत विकास है जरूरी

नए कौशल सीखने या ज्ञान प्राप्त करने के लिए उस काम को अपना वक्त दें। आप किसी भी कौशल को सीखने के लिए समय देते हैं तो किसी की क्षमताओं और व्यक्तिगत विकास का विस्तार करने में मदद मिल सकती है। डॉ. अली ने ने बताया कि विकास की हमेशा गुंजाइश रखें क्योंकि विकास के जरिए ही आप नए विचार और व्यक्तिगत विकास को जन्म दे सकते हैं।

प्रोडक्टिविटी और टाइम मैनेजमेंट है जरूरी

अगर आप अपनी रोजमर्रा की रूटीन में छोटे से बदलाव करेंगे, संगठन के तरीकों या प्राथमिकता निर्धारण तकनीकों में बदलाव करेंगे तो प्रोडक्टिविटी और दक्षता में इज़ाफा होगा। डॉ. अली के अनुसार आप सबसे पहले ये तय करें कि आप क्या हासिल करना चाहते हैं, फिर इसे छोटे, प्रबंधनीय कार्यों में विभाजित करें। इस योजना को बनाकर किसी भी काम की शुरुआत करना और गति बनाए रखना आसान हो जाता है।

भावनात्मक लगाव भी है जरूरी

छोटी-छोटी आदतों का अभ्यास करें, जैसे माइंडफुलनेस या कृतज्ञता अभ्यास आपकी सकारात्मक मानसिकता और भावनात्मक लचीलेपन में योगदान कर सकता है। अपनी जिंदगी के सकारात्मक पहलुओं के लिए आभार व्यक्त करने की आदत डालें। आपका साथ देने वाले लोगों के साथ वक्त गुजारें। उन कामों में अपने को लगाएं जो आपको खुशी देते हैं और सकारात्मक भावनाओं को बढ़ाते हैं।