प्रदूषण, धूम्रपान, संक्रमण और जीवनशैली की वजह से बढ़ती अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, एलर्जी सहित सांस संबंधी विभिन्न बीमारियों का होमियोपैथी में न केवल इलाज मुमकिन है बल्कि मरीज एंटीबायोटिक दवाओं के दुष्प्रभावों से भी बच जाता है। यह बात राजधानी स्थित नेहरू होमियोपैथिक मेडिकल कॉलेज व अस्पताल के श्वसन विभाग के रीडर डॉ. संजय पांडेय ने संस्थान में छह मार्च को आयोजित ‘श्वसन संबंधी समस्याएं एवं होमियोपैथी’ पर निरंतर चिकित्सा शिक्षा की शृंखला की शुरुआत करते हुए कही। डॉ. पांडेय ने कहा कि सबसे अहम बात यह है कि होमियोपैथी में दवाओं के दुष्प्रभाव नहीं होते जबकि अस्थमा, एलर्जी और ब्रोंकाइटिस के मरीजों के लिए दवाओं के दुष्प्रभाव बहुत बड़ी मुश्किल साबित होते हैं।
इस मौके पर होमियोपैथी मेडिकल एसोसिएशन आॅफ इंडिया (एचएमएआइ) के अध्यक्ष डॉक्टर एके गुप्ता ने कहा कि अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, एलर्जी, न्यूमोनिया और सीओपीडी जैसी श्वसन संबंधी समस्याओं के कारण कफ, दर्द, निगलने में परेशानी, सांस लेने में दिक्कत आदि तकलीफें होती हैं। इनके मुख्य कारण प्रदूषण, धूम्रपान, भीड़, संक्रमण से लेकर जीवन शैली तक हो सकते हैं। राहत के लिए अक्सर लोग एंटीबायोटिक, इनहेलर, पफ और अन्य दवाएं लेते हैं जिनसे फौरी राहत तो मिल जाती है लेकिन समस्या खत्म नहीं होती।
बीएलके अस्पताल में रेस्पिरेटरी मेडिसिन एंड इंटरवेंशनल पल्मोनोलॉजी विभाग में कंसल्टेंट डॉ. सनी कालरा ने बताया कि कई मरीजों को इनहेलर, पफ और स्टेरॉयड के दुष्प्रभाव हो जाते हैं। स्टेरॉयड और एंटीबायोटिक के दुष्प्रभाव लंबा असर छोड़ सकते हैं, लेकिन होमियोपैथी में ऐसा नहीं होता। इस शृंखला में 90 से अधिक होमियोपैथी डॉक्टरों ने हिस्सा लिया। डॉ. गुप्ता ने बताया कि 9 और 10 अप्रैल को राजधानी के विज्ञान भवन में होमियोपैथी पर एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित किया जा रहा है जिसका उद्घाटन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी करेंगे।