खुद को पाने का सबसे अच्छा तरीका है, खुद को दूसरों की सेवा में खो दो। गांधी की यही बातें उन्हें औरों से अलग करती हैं। आज के इस परिदृश्य में जहां संपर्क के नए-नए तकनीक उपलब्ध हैं और मनुष्य पलक झपकते हीं करोड़ों लोगों से मीलों दूर संपर्क साध सकता है, तब हमें कोई ऐसा जनप्रिय शख़्सियत दिखाई नहीं देता जो जनसंपर्क और जनसमर्थन के मामले में गांधी का मुकाबला कर सकता हो। एंड्रॉइड फोन के जमाने में ट्विटर, फेसबुक और इंस्टाग्राम जैसे मीडिया साधनों पर फॉलोवर्स तो होते हैं लेकिन उनका समर्थन जुटा पाना संभव नहीं होता। इस डिजिटल युग में भी एक ओर जहां नेताओं का समर्थन किसी खास जाति, धर्म, क्षेत्र और बोली तक हीं सीमित है, वहीं दूसरी ओर तार और चिट्ठी-पत्री के युग में भी गांधी का जनसंपर्क देशभर में था। हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई हो या फिर बिहारी, गुजराती, बंगाली, मराठी, भारत का हर नागरिक बापू के एक आह्वान पर उठ खड़ा होता था। इस जनसमर्थन को उन्होंने 200 वर्षों से गुलाम भारत को आजाद करने में इस्तेमाल किया। सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलते हुए अंग्रेजी हुकूमत को अपने सत्याग्रह के जरिए घुटने टेकने पर मजबूर भी कर दिया। गांधी जी एक जनमान्य नेता थे, उन्हें जनसमर्थन हासिल था। बता दें कि यह समर्थन उन्हें उनके जनसंपर्क के कारण ही प्राप्त था। उनका मानना था कि सत्य बिना जनसमर्थन के भी खड़ा रहता है क्योंकि वह आत्मनिर्भर है। लेकिन क्या यह सम्भव है कि सत्य को जनसमर्थन न हासिल हो? जनसमर्थन का ही जादू था जो गांधी जी बेहद विनम्रता से दुनिया बदलने का माद्दा रखते थे।
दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद की नीति के खिलाफ आवाज उठायाः गांधी जी ने सर्वप्रथम अपने संपर्क के माध्यम से दक्षिण अफ्रीका में जनसमर्थन हासिल किया था। उन्होंने वहां भारतीयों पर हो रहे अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाई और टॉसवाल सरकार द्वारा जारी किए गए भारतीय जनता के पंजीकरण में आपत्तिजनक अध्यादेश का विरोध किया। उन्होंने वहां मौजूद लोगों को एकजुट कर रंगभेद की नीति के खिलाफ लड़ाई लड़ी और कई बार जेल जाने के बाद सफल भी हुए।
भारतीयों की समस्याओं का निदान के लिए हमेशा सोचतेः बापू का कहना था कि एक अच्छा इंसान हर सजीव का मित्र होता है और यही बात उन्हें खास बनाती थी। सभी लोगों से वे मित्रता की भाव रखते हुए ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की धारणा रखते थे। वे समुचित मानव जाति के विकास, कल्याण और उत्थान की बातें करते थे। गांधी जी दक्षिण अफ्रीका से वापस लौटने के बाद देश के कोने-कोने में गए और लगभग चार वर्षों तक भारतवर्ष में भ्रमण कर लोगों के हाल जानने की कोशिश की। साथ ही उनकी समस्याओं का निदान करने के ठोस विकल्पों के बारे में भी चिंतन करते रहे। उनके भारत आने पर जहां उनका जोरदार स्वागत किया गया, वहीं उन्होंने भारत में घूमने के लिए तृतीय दर्जे के रेलवे डिब्बों का चयन किया, ताकी वह भारत की आत्मा तक पहुंच सकें और उनके जीवनशैली को नजदीक से जान सकें। यह फैसला उनके जनसंपर्क के उत्कृष्ट विचारों को दर्शाता है।
जाति, धर्म, क्षेत्र और भाषा की भेदभाव को खत्म करना चाहते थेः जनसंपर्क के दौरान एक बार जब उनसे पूछा गया कि क्या वह हिन्दू हैं, उनका जवाब था ‘हां मैं हिन्दू हूं। मैं एक ईसाई, मुस्लिम, बौद्ध और यहूदी भी हूं।’ यह था उनके मानवता के प्रति लगाव। उनके यही विचार जनचेतना लाने में कारगर सिद्ध हुए थे। जनसंपर्क बनाने के दौरान गांधी जी ने पाया कि समाज के हालात बेहद निराशाजनक है। उन्होंने समझा कि भारत के लोगों में आपसी भाईचारे, समानता, समावेश, सम्मान और सशक्तिकरण की अत्यधिक आवश्यकता है ताकि देश को मौजूदा उपनिवेशवाद से बचाने के लिए जनता को एकजुट किया जा सके। समाज में मौजूद जाति, धर्म, क्षेत्र और भाषा के नाम पर भेदभाव को खत्म करने के लिए उन्होंने कठिन परिश्रम व साधना की। समाज में पल रहे छुआ-छूत की परंपरा को नष्ट करने के लिए बापू ने अछूतों को हरिजन (हरि का जन) शब्द से अलंकृत किया। अछूतों को समाज में सम्मान व बराबरी दिलवाने के लिए गांधी ने देश के हर कोने में जाकर जनसंपर्क साधा और लोगों को जागरूक किया। इसके साथ ही उन्हें आपसी मतभेदों से ऊपर उठकर उपनिवेशवाद के खिलाफ संघर्ष में एकजुट होने के लिए प्रेरित किया।
Gandhi Jayanti Speech, Essay, Quotes: जब नेताजी ने दी बापू की उपाधि, पढ़ें गांधीजी का पूरा इतिहास
गांधी द्वारा सत्य और अहिंसा के रास्ते जनकल्याण के लिए किए गए कुछ महत्वपूर्ण आंदोलन निम्नलिखित हैं, जिन्हें न सिर्फ व्यापक जनसमर्थन प्राप्त हुआ, बल्कि इतिहास में सदा के लिए अंकित हो गए।
चंपारण सत्याग्रह (1917): गांधी जी का यह सत्याग्रह, उनकी ओर से स्वतंत्रता संग्राम की पहला व्यापक आंदोलन था। किसानों पर महंगी फसलें उपजाने के दबाव और उनके उचित मूल्य न देने के विरोध में चंपारण सत्याग्रह किया गया था। इस संग्राम के सफल होने के परिणामस्वरूप उन्हें महात्मा की उपाधि दी गई थी।
खिलाफत आंदोलन (1919): यह मुस्लिमों का आंदोलन था जिसमें तुर्की के खलीफा को पुनः स्थापित करने की मांग को लेकर गांधी ने उनका नेतृत्व किया। यह आंदोलन इस बात को दर्शाता है कि उनके जनसंपर्क का असर हर धर्म, हर तबके के लोगों पर था।
असहयोग आंदोलन (1920-1922): रॉलेट सत्याग्रह की सफलता के बाद गांधी जी ने असहयोग आंदोलन की शुरुआत की, जिसमें लोगों से आग्रह किया गया कि वे स्कूलों, कॉलेजों और न्यायालय न जाएं तथा कर न चुकाएं। संक्षेप में सभी को अंग्रेजी सरकार के साथ ;सभी ऐच्छिक संबंधों के परित्याग का पालन करने को कहा गया। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 1921 में 396 हड़तालें हुई जिनमें 6 लाख श्रमिक शामिल थे और इससे 70 लाख कार्यदिवसों का नुकसान हुआ था।
भारत छोड़ो आंदोलन (1942): दूसरे विश्व युद्ध के बाद गांधी जी ने अंग्रेजों को भारत से भगाने के लिए इस आंदोलन की शुरुआत की। इसी आंदोलन में उन्होंने करो या मरो का नारा भी दिया। इस आंदोलन में पूरे देश के लोगों ने भाग लिया, नतीजन अंग्रेजी हुकूमत को यह एहसास हो गया कि अब भारत में उनके आखिरी दिन ही बचे हैं।
गांधी जी अपना काम खुद से करतेः लोगों में नीची जातियों के खिलाफ नफरत और द्वेष को खत्म करने और उनमें मानवता के भाव जगाने के क्रम में महात्मा गांधी ने बिहार में आई प्राकृतिक विपदा के दौरान जनता को संबोधित करते हुए कहा था की यह संकट तो सिर्फ शरीर को नाश करने वाला है, किंतु अस्पृश्यता से जन्मा संकट हमारी आत्मा नष्ट कर रहा है। इसलिए हमें इस विपत्ति से सीख लेना चाहिए और सांसो के शेष रहते हमें अस्पृश्यता के इस कलंक से मुक्ति पाकर अपने आपको सृजनहार के समक्ष स्वच्छ हृदय लेकर उपस्थित होने योग्य बना लेना चाहिए। गांधी जी कहते थे ‘खुद वह बदलाव करें, जो आप दुनिया में देखना चाहते हैं’ और अपने इस बात पर वे ताउम्र अमल करते रहे। शुद्र के हाथों से खाना हो या फिर खुद अपने मलकक्ष साफ करना हो – ये तमाम चीजें बताती हैं कि गांधी जी जो बदलाव समाज में चाहते थे, सर्वप्रथम उसे अपने ऊपर लागू करते थे।
सत्याग्रह के दौरान उन्हें जेल भी जाना पड़ाः अंग्रेजी हुकूमत के विरुद्ध सत्याग्रह के दौरान उन्हें कई बार जेल जाना पड़ा तथा उनके कई साथियों को जान गंवानी पड़ी। उस दौर के बारे में गांधी जी कहते हैं, ‘जब कभी भी मैं निराश होता हूं, मैं याद करता हूं कि समस्त इतिहास के दौरान सत्य और प्रेम की ही हमेशा विजय होती है। कितने हीं तानाशाह और हत्यारे हुए हैं, कुछ समय के लिए वो अजय लग सकते हैं, लेकिन अंत मे उनका पतन ही होता है। क्योंकि भविष्य इस बात पर निर्भर करता है कि आप आज क्या कर रहे हैं।’
संयुक्त राष्ट्र महासभा ने उनके जन्मदिवस पर अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस मनायाः महात्मा गांधी का जनसंपर्क एक अदभुत और अप्रतिम कीर्तिमान साबित हुआ है। उनके संपर्क और समर्थन का लोहा दुनियाभर में माना जाता है, नतीजन दुनिया के हर कोने में उनकी प्रतिमा, उनके नाम के स्मारक, संग्रहालय व पुस्तकालय मौजूद है। यहां तक कि संयुक्त राष्ट्र महासभा के द्वारा उनके जन्मदिवस को अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस मनाने का घोषणा की गई है। राष्ट्र के प्रति उनके प्रेम और देशवासियों की ओर से उन्हें सम्मान देने के लिए सुभाषचंद्र बोस ने उन्हें राष्ट्रपिता कहकर बुलाया, वहीं उनके जनसंपर्क और जनसमर्थन को देखते हुए महान वैज्ञानिक आइंस्टीन ने उनके बारे में कहा कि, हजार साल बाद आने वाली नस्लें इस बात पर मुश्किल से विश्वास करेंगी की हाड़-मांस से बना कोई ऐसा इंसान भी धरती पर आया था।
‘व्यक्ति अपने विचारों से निर्मित प्राणी है, वह जो सोचता है वही बन जाता है’ – महात्मा गांधी
वर्तमान परिदृश्य में गांधी जी की कही ये बातें बिल्कुल सटीक बैठती है।
(यह लेख माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय में जनसंचार तृतीय वर्ष का छात्र ऋषभ राज सिंह ने लिखा है।)