अनिता वर्मा

कहा गया है ‘मन के मते न चालिए, मन के मते अनेक’। पर हम कहां नियंत्रित हो पाते हैं? सुबह से लेकर सोने तक मन के अनुसार हमारी दिनचर्या निर्धारित होती रहती है। मन अच्छा हुआ तो खुश, मन खराब हुआ तो उदास। यही है मन। उसे समझना अत्यंत जटिल कार्य होता है और अगर मन में कुछ विचलन हो तो पूरा दिन बर्बाद हो जाता है। हम सब किसी न किसी रूप में इन स्थितियों का सामना करते हैं। प्रभावित होते हैं।

उग्रता, व्यग्रता, गुस्सा, आक्रोश, सब एक ही हैं

आखिर हम सब मनुष्य ही तो हैं! नकारात्मकता समूचे परिवेश को बदल देती है। उदाहरण के लिए उग्रता, व्यग्रता, गुस्सा, आक्रोश, सब एक ही हैं। ये न चाहते हुए भी अभिव्यक्त हो उठते हैं। यह प्रतिक्रिया स्वाभाविक होती है। इसका परिणाम कई बार मानसिक अवसाद की स्थिति ले आता है। प्रत्यक्ष रूप से तो व्यक्ति अपने प्रति किए गए गलत व्यवहार को महसूस कर प्रत्युत्तर दे सकता है, पर अप्रत्यक्ष रूप से गलत इरादे से निर्मित नकारात्मकता को वह कैसे समझे? क्या करे?

चिंतन ही जीवन को दिशा प्रदान करता है

यह सब हमारे चिंतन से जुड़ा हुआ है। चिंतन ही जीवन को दिशा प्रदान करता है। हम क्या सोचते हैं, कैसे सोचते हैं, मन में यह द्वंद्व सदैव चलता रहता है। किसी ने जरा-सी प्रशंसा कर दी, तो हम खुश हो जाते हैं। किसी ने जरा-सा कह दिया कि ‘यह कुछ जमा नहीं…’, तो हम विचलित हो उठते हैं। जैसे कि हमारे प्रत्येक कार्य के लिए ऐसे लोगों का प्रमाणपत्र जरूरी हो।

मन कोमल-चंचल है, यह भावनाओं के साथ बहता चलता है

जीवन में गतिशीलता और आगे बढ़ने के लिए सहज, सरलमना लोगों का साथ होना अत्यंत जरूरी है। निर्मल स्वच्छ जलधारा लहराती बलखाती कल-कल नाद के साथ निर्बाध गति से आगे बढ़ती रहती है। उसके बहाव के साथ रास्ते का कूड़ा-कचरा भी साथ-साथ चलते हुए कुछ समय बाद एक तरफ झाड़ियों में उलझ कर रह जाता है और जलधारा जो स्वच्छ और निर्मल है, आगे गतिमान रहती है।

किसी भी क्षेत्र में, सामाजिक परिवेश में, कार्यस्थल पर असहमति विवाद का कारण बनती रही है। जीवन इसी का नाम है। सबसे बचकर अपने लक्ष्य को हासिल करना और सकारात्मकता को आत्मसात करते हुए आगे बढ़ना चाहिए। मन कोमल-चंचल है, यह भावनाओं के साथ बहता चलता है। यह प्रत्येक मनुष्य को प्रभावित करता है। अपने मन को नियंत्रित करते हुए आगे बढ़ना ही जीवन की सार्थकता है।

वरना हम अपने जीवन में आए आनंद के उन क्षणों को भी खो देते हैं, जिन्हें हमने बड़े संघर्ष परिश्रम, योग्यता और कौशल से प्राप्त किया है। नकारात्मक वातावरण से लोग उस आनंद को गौण कर देते हैं। या यों कहें कि हम उसे भूलकर उनकी बातों पर अपना ध्यान केंद्रित कर लेते हैं, जिनका हमारे जीवन में हमारे लिए कोई महत्त्व ही नहीं होता। यही हमारे अवचेतन में गहरे पैठ बना लेता है और यही चिंता और तनाव का कारण बन जाता है।

जिस ऊर्जा, आत्मविश्वास, दृढ़ता, उमंग, उत्साह को हमारे भीतर तरंगित होना चाहिए, वहां हम सोचने लगते हैं कि लोग क्या कहेंगे। ऐसी व्यर्थ की बातों में उलझने लगते हैं। कभी इतना व्यग्र हो जाते हैं कि ऐसे लोगों के सामने स्वयं को व्याख्यायित करने लगते हैं, जबकि इसकी कोई आवश्यकता भी नहीं होती। अपने मन की चाबी हम किसी और को क्यों दें? जीवन को संतुलन और एकाग्रता से ही सकारात्मक ऊर्जा मिलती है। यह प्रक्रिया हमारे भीतर उसी तरह संचालित होती है, जैसे शांत जल में कोई कंकड़ डाल दे तो उसमें हलचल होने लगती है। हमारे मन पर भी आसपास के परिवेश जनसमुदाय या जिन व्यक्तियों के साथ हम अधिकांश समय व्यतीत करते हैं, प्रभाव डालते हैं।

छोटी-छोटी खुशियां मन को समृद्ध बनाती हैं। जैसे फूल को खिलते देखना, प्रकृति को निहारना, किसी की किसी भी रूप में मदद करना, मित्रों के साथ संवाद कर सकारात्मक वातावरण तैयार करना, घर-परिवार और आसपास जितना बन सके, सहयोग करना। ये सभी बातें मन के लिए मरहम का काम करती हैं। एक छोटी-सी खुशी से प्रफुल्लित मन चाबी भरे खिलौने के समान द्रुतगति से दौड़ने लगता है।

जो कुछ हमारा अपना है, उपलब्धि है या कुछ ऐसा कार्य, जो हमें खुशी प्रदान करता है। जैसे किसी से बात करना, मिलना। सुख-दुख, आशा-निराशा, हास-परिहास, ईर्ष्या-द्वेष, गम और खुशी, सफलता-असफलता, जीवन के ही अंग हैं। कभी किसी का पलड़ा भारी तो कभी हल्का। मन बहुत ही संवेदनशील भी है, मन की स्थितियां भी विविध होती हैं और यह महसूस करने की बात है। जैसे कोई कहता है कि ‘आज इस घटना से मेरा मन खराब हो गया… उसने ऐसा कहा कि मन खराब हो गया..!’

प्रश्न यही है कि किसी ने अपने मन के विकारों-कुंठाओं को आपके ऊपर उड़ेल दिया। वह तो मुक्त हो गया और आपके भीतर विचलन शुरू हो जाता है। मन हमारा है, उसे अपने तरीके से नियंत्रित करना चाहिए। सारी समस्याएं जड़ से समाप्त हो जाएंगी। फिर ताजी हवा का झोंका हमारे मन को खुशगवार बना देता है।